रविवार, 26 जुलाई 2009

शंकर जी ने मारा अग्निबाण और खुद गर्भ में आ गये


आज से लगभग बारह वर्ष पूर्व की यह घटना है. उन दिनो दुर्ग ज़िले में ज़िला साक्षरता समिति के अंतर्गत हम लोगों ने एक अन्द्धश्रद्धा निर्मूलन जत्था बनाया था । बाबाओं के भंडाफोड़ का नया नया शौक लगा था । एक दिन हमे खबर मिली कि पास ही डोंडीलोहारा विकासखन्ड के एक गाँव सुरेगाँव में एक स्त्री पर शंकर जी आये हुए हैं और वहाँ श्रद्धालुओं का मेला लगा हुआ है ,हज़ारों रुपये चढ़ावे में आ रहे हैं अखबार में भी खबरें छप रही थीं कि सुरेगाँव की इस महिला को शंकर जी ने अग्निबाण मारा है और उसके शरीर पर नाग, त्रिशूल जैसे चिन्ह उभर गये हैं साथ ही उस स्त्री के गर्भ में शंकर जी ने प्रवेश कर लिया है और शीघ्र ही अवतार लेने वाले हैं हम लोग समझ गये कि हो न हो वह स्त्री किसी षयंत्र का शिकार हुई है दुर्ग से समिति के प्रमुख निदेशक डी.एन. शर्मा जी के नेतृत्व में बुजुर्ग कार्यकर्ता बी.एल.परगनिहा , कलाकार डोमार सिंह , महिला कार्यकर्ता सुश्री उषा सिंह तथा सुषमा भंडारी के साथ हम लोग सुरेगाँव के लिये रवाना हो गये रास्ते में हम लोगों ने ग्रामीण वेशभूषा धारण कर ली ताकि अजनबी से ना लगें वहाँ जाकर हमें क्या करना है इसकी भी हमने तैयारी कर ली रास्ते में ही बेशरम के पौधे से निकलने वाले दूध से हमने अपने हाथों पर नाग त्रिशूल जैसी आकृतियाँ बना लीं हमने तय किया कि फिलहाल सिर्फ देखा जाये और यदि कुछ सकारात्मक हो सकता है तो विरोध किया जाये इसके लिये हमने समिति के अध्यक्ष व जिलाधीश के सहयोग से स्थानीय पुलिस को भी साथ रख लिया था

जीप हमने गाँव के बाहर खड़ी कर दी और आम श्रद्धालुओं की तरह उस पंडाल में पहुंचे जहाँ वह स्त्री बैठी हुई थी । अद्भुत दृश्य हमने देखा ,एक स्त्री बाल खोले हुए झूम रही है ,उसके दोनो हाथ सामने हैं जिन प उसे जलाये जाने के निशान मौजूद हैं , एक कुंड में अगर्बत्तियाँ जल रही हैं पास ही नारियल का ढेर लगा है, लोग साक्षात दंडवत कर रहे हैं , और रुपये चढा रहे हैं । हमने भी शंकर भगवान की जय कहकर लोगों से बात शुरू कर दी. अचानक हमारे एक कार्यकर्ता से रहा नहीं गया और उसने ज़ोरों से कहना शुरू कर दिया “यह सब बकवास है ,इसे कोई शंकर जी ने बाण-वाण नहीं मारा है, यह ढोंग कर रही है. ‘आदि आदि । हमारा प्लान यहीं गड़बड़ा गया । लोग हमारे विरोध मेंड़े हो गये । हाँलाकि हमने समझाने की कोशिश की । अपने हाथ पर बनाये अदृश्य निशानों पर राख रगड़कर बताया कि निशान ऐसे बनते हैं ,यहाँ तक कि शर्मा जी ने जलती अगरबत्ती लेकर अपने हाथों पर वैसे ही निशान बनाकर बता दिये । लेकिन अन्द्धश्रद्धालू जनता ने हमे कुछ कहने नहीं दिया । अंतत: पुलिस संरक्षण में हमें वहाँ से बचकर आना पड़ा ।

अगले दिन अखबारों में भी हमारी असफलता पर बहुत कुछ छपा लेकिन हम निराश नही हुए ।हमने जो कुछ देखा था वह तत्कालीन जिलाधीश श्री बसंत प्रताप सिंह को बताया । उन्होने अगले ही दिन वहाँ पुलिस भिजवाकर यह गोरखधन्धा बन्द करवा दिया । पुलिस की तफ्तीश से पता चला कि विगत पाँच वर्ष पूर्व उस स्त्री के पति ने उसे प्रताड़ित कर त्याग दिया था तथा वह अपने मायके में रह रही थी । वहाँ रहते हुए वह गर्भवती भी हो गई थी तथा इस वज़ह से मानसिक आघात लगने के कारण वह विक्षिप्तों की तरह व्यवहार करने लगी थी । उसे पुन: ससुराल में स्थापित करने और उसे मोहरा बना कर कमाई करने के उद्देश्य से उसके पिता तथा ससुर ने एक बैगा के साथ मिलकर यह षड़यंत्र किया तथा उसे जलती सलाख से दाग कर उसके शरीर पर नाग,त्रिशूल, डमरू जैसे निशान बनाये तथा प्रचारित किया कि उसे शंकर जी ने अग्निबाण मारा है तथा स्वयँ उसके गर्भ में आ गये हैं .अन्द्धश्रद्धालू जनता ने इसमे कहीं कोई तर्क नहीं किया और इस झूठी कहानी को आस्था वश सच मानकर उसकी पूजा करने लगी.पुलिस ने सच उगलवाया और सब दोषियों पर कार्यवाही कर केस दर्ज़ कर लिया.इस तरह यह सब बन्द हुआ ।

लेकिन ज़रा ,रूकिये अभी कथा का उपसंहार नहीं हुआ है .कुछ माह बाद ऐसे ही एक और स्था पर जहाँ लता नामकी एक लड़की को हर सोम वार और गुरूवार को देवी आती थी (य़ह किस्सा अगली बार ) व स्त्री हमे मिली तब तक उसकी मानसिक स्थिति सुधर चुकी थी और वह वहाँ अपनी रिश्तेदारी में आई थी ।उससे हमने पूछा “ क्यों शंकर जी का क्या हुआ ? तो उसने शरमाकर कहा , “लड़की हुई है “। हमने कहा कोई बात नहीं ,शंकर जी नहीं आये तो क्या हुआ पार्वती जी को तो भेज दिया ।चलो....खुश रहो ।

सावन के महीने में, इस किस्से में मज़ा आया हो तो अगली बार और सुनाऊँ ?

आपका शरद कोकास

(सभी चित्र गूगल से साभार )

सोमवार, 13 जुलाई 2009

आप सभी के प्रति आभारी हूँ

आदरणीय दिनेश राय द्विवेदी जी, अजित वडनेरकर जी,सर्वश्री अरविन्द मिश्रा,बालसुब्रमणियम जी, अनुनाद सिंह,अलबेला खत्री जी,स्वप्नदर्शी ,महामंत्री तस्लीम,राज भाटिया जी, मुरारी पारीक,महफूज़ भाई,मथुरा कलौनी,सुश्री लवली कुमारी,शोभना चौरे,सुमन जी,संगीता पुरी,अल्पना वर्मा जी,वन्दना जी,पाबला जी,भाई संजीव तिवारी और मेरे अन्य बहुत सारे मित्र । मेरे निवेदन “वैज्ञानिक चेतना के ब्लॉगर्स कृपया सलाह दें “ पर आप सभी की हार्दिक शुभेच्छाओं का मै स्वागत करता हूँ । आप लोगों के उत्साहवर्धन के फलस्वरूप मैने अपने अन्धश्रद्धा निर्मूलन सम्बन्धी क्रियाकलापों तथा व्याख्यानों को शब्द रूप देना प्रारम्भ कर दिया है ।और अभी तक लगभग तीस पृष्ठ मैं लिख चुका हूँ ।भारी भरकम वैज्ञानिक शब्दावली और सैद्धांतिक बातों से अलग हटकर इसे रोचक रूप में प्रस्तुत करने का मेरा प्रयास है । इस बात के लिये भी सतर्क हूँ कि सरलीकरण ऐसा भी ना हो कि यह बाल साहित्य लगने लगे । हमारे इधर लेखकों में यह उक्ति काफी प्रसिद्ध है कि कठिन लिखना तो सरल काम है लेकिन सरल भाषा में लिखना अत्यंत कठिन है । इस बात का अनुभव मुझे अब हो रहा है ।बहरहाल आप लोगों की प्रेरणा से मै इस महत्वपूर्ण काम में लगा हूँ और समाधानकारक स्थिति में पहुंचते ही इस लेखन को ब्लॉग पर देना प्रारम्भ करूंगा । इस बीच आप लोग इस ब्लॉग को विस्मृत न कर दें इसलिये अपने अनुभवों के भंडार से कुछ कथायें यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ । तो लीजिये प्रस्तुत है यह किस्सा

ज़मीन से डेढ़ फूट उपर चलने वाले भूत का किस्सा

महाराष्ट्र के ही एक गाँव का यह किस्सा है । बिलकुल गाँव जैसा ही गाँव था वह । ज़्यादातर किसान और मज़दूर ,कुछ छोटे-मोटे दुकानदार और लोहा,लकड़ी,चर्म आदि का काम करने वाले शिल्पी इन्ही की बस्ती थी ।एक प्रायमरी स्कूल और एक मिडिल स्कूल । अपनी रोज़मर्रा की परेशानियों के अलावा कुल मिलाकर ठीक-ठाक ही बीत रहा था सबका जीवन । अचानक एक दिन गाँव में खबर फैल गई कि गाँव के ही एक लड़के रामू ने शुक्रवार की शाम नहर के पार एक बड़ा सा भूत देखा है । फिर क्या था अगले ही शुक्रवार नहर के करीब लोगों की भीड़ जुट गई। ठीक आठ बजे लोगों ने देखा कि नहर की मेढ़ के उस पार ज़मीन से लगभग डेढ़-दो फीट उपर एक सफेद रंग का साया चला जा रहा है । सब साँस रोके उसे देखते रहे । धीरे धीरे वह साया आंखों से ओझल हो गया । अब यह होने लगा कि शुक्रवार आते ही सुबह से सारे लोग किसी अज्ञात आशंका से भयभीत हो जाते । बच्चों को उस दिन स्कूल नहीं जाने दिया जाता और लोग सारे काम जल्द ही निपटाकर अन्धेरा होने से पहले ही घर में दुबक जाते ।कुछ साहसी लोग फिर भी नहर के किनारे खड़े रहते और उस साये को निकलता हुआ देखते ।हाँ यह तैयारी उनकी ज़रूर रहती कि यदि वो साया गाँव की तरफ रुख करे तो दौड़कर अपने घरों में घुस जायें।फिर क्या था गाँव में कोई बीमार हो,किसी का जानवर मर जाये ,कोई भी अनहोनी हो उसका कारण वह साया माना जाने लगा ।खबर फैली तो नागपुर से कुछ अन्धश्रद्धा निर्मूलन समिति के कार्यकर्ता वहाँ पहुंचे ।शुक्रवार की शाम से ही उन्होने गाँव भर के लोगों को अपने विश्वास में लेकर वहाँ इकठ्ठा कर लिया ।जैसे ही आठ बजे और वह विचित्र साया नहर के पार दिखाई दिया कार्यकर्ता उस ओर बढ़ने लगे ।बुज़ुर्गों ने मना किया “काहे भैया जान जोखिम में डालते हो” लेकिन पाँच मिनट बाद ही लोगों ने देखा कि वे कार्यकर्ता उस साये को साथ लिये चले आ रहे हैं ।करीब आने पर लोगों ने देखा कि वह एक साँवले रंग का एक जवान आदमी था जो घुटनों तक धोती पहने हुए था और उसके कन्धों पर एक बूढ़ा बैठा हुआ था ।‘लो भई यह रहा आपका भूत” कार्य कर्ताओं ने कहा । पूछने पर पता चला कि वह पास के ही गाँव का एक किसान था जो हर शुक्रवार अपने लकवाग्रस्त कमज़ोर पिता का इलाज़ कराने पड़ोस के गाँव में किसी वैद्य के पास उन्हे ले जाता था । घुटने तक धोती पहने होने की वज़ह से और नहर की मेड़ के कारण काली टांगों वाला उसके नीचे का हिस्सा अन्धेरे में नहीं दिखाई देता था फलस्वरूप वह हवा में चलता हुआ महसूस होता था और कन्धे पर बूढ़े के बैठे होने के कारण उसकी लम्बाई सामान्य मनुष्य से अधिक और अजीब सी दिखाई देती थी । बस यही है इस कथा में रहस्य । और सन्देश यह कि जब भी कोई अजीब सी आकृति दिखे भूत समझ कर उससे डरो नहीं ,हिम्मत करके पास जाओ रहस्य अपने आप समझ में आ जायेगा
आपका-शरद कोकास