शनिवार, 30 जनवरी 2010

ऐसा हमारे घर में शुरू से चला आ रहा है ।


“ हम जानते हैं कि जो कुछ हमारे पास मूल्यवान है  वह सब हमें विज्ञान ने प्रदान किया है । विज्ञान ही एक मात्र सभ्य बनाने वाला है । इसने गुलामों को मुक्त कराया , नंगों को कपड़े पहनाये , भूखों को भोजन दिया , आयु में वृद्धि की , हमें घर परिवार चूल्हा दिया , चित्र तथा किताबें दीं ,जलयान ,रेलें , टेलीग्राफ, तथा तार तथा इंजन जो असंख्य पहियों को बिना थके घुमाते हैं और इसने भूत पिशाचों , शैतानों ,पंखों वाले दैत्यों जो असभ्य जंगली लोगों के दिमाग पर छये रहते थे ,का नामोनिशान मिटा दिया । “
                                                                   - राबर्ट ग्रीन इंगरसोल (1833-1899)

          प्रसिद्ध तर्कशास्त्री राबर्ट ग्रीन इंगरसोल के इस कथन को 100 से भी ज़्यादा वर्ष बीत चुके हैं । हम सभ्यता के नये युग में प्रवेश कर चुके हैं । आज के दौर में अन्धविश्वास को लेकर बात करना बेमानी हो गया है । हम जैसे जैसे सभ्य होते जा रहे हैं सड़ी-गली मान्यतायें और रूढ़ियाँ अपने आप दूर होती जा रही हैं । हम विज्ञान के नये नये अविष्कारों का उपभोग कर रहे हैं । पहले परिवर्तन 100 वर्षों में रेखांकित किया जाता था ,फिर यह अवधि दस वर्ष हुई और अब तो प्रति वर्ष होने वाला परिवर्तन महसूस किया जा सकता है ।
          यदि ऐसा है तो फिर हमें यह सब लिखने की क्या आवश्यकता है । शायद इसलिये कि अभी भी हमारे मन के किसी कोने में असभ्यता का अन्धकार है जिसे हम महसूस नहीं कर पा रहे हैं । बिल्ली के रास्ता काट देने पर अभी भी हम ठिठक जाते हैं , घर से निकलते हुए किसी के छींक देने पर  पल भर के लिये ही सही ठहर जाते हैं , गृहिणी के हाथ से बर्तन गिरने पर कहते हैं कि कोई आ रहा है ,शनिवार के दिन हजामत नहीं बनाते या गुरुवार के दिन नये कपड़े नही पहनते और ऐसे ही ढेर सारे विश्वास । ठीक है हम में से अधिकांश लोग इन्हे नहीं मानते और केवल परम्परा के पालन के रूप में इनका निर्वाह करते हैं । नई पीढ़ी के युवाओं से पूछा जाये कि वे यह सब क्यों मानते हैं तो उनका जवाब होता है ..ऐसा हमारे घर में शुरू से चला आ रहा है ।
यह केवल इन छोटे-मोटे अन्द्धविश्वासों को मानने की बात तक सीमित नहीं है । दर असल हम इन विश्वासों की वज़ह से निरंतर पिछड़ते जा रहे हैं और उन चालाक लोगों के गुलाम होते जा रहे हैं जो सायास हमें मस्तिष्क  के स्तर पर गुलाम रखना चाहते हैं । वे हमें भावनात्मक स्तर पर ब्लैकमेल कर रहे हैं और हम उनकी चाल समझ नहीं पा रहे हैं ।हम सभी लकीर के फकीर हैं जो चल रहा है उसमें कोई परिवर्तन नहीं चाहते , कभी कोई तर्क करना नहीं चाहते और एक यथास्थितिवादी की तरह जो विरासत में मिला है उसे जस का तस स्वीकार कर लेते हैं । देखा जाये तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है । परम्पराओं का सम्मान करने की प्रवृत्ति हमें विरासत में मिली है । लेकिन वहीं हम नया ज्ञान प्राप्त करते समय तर्क करते हैं , स्कूल-कॉलेज में पढ़ते हुए प्रश्न करते हैं और जब तक हमारा समाधान नहीं हो जाता उस प्रश्न से जूझते हैं ।इसका अर्थ यही हुआ ना कि हम में समझने की क्षमता है लेकिन हम जानबूझ कर समझना ही नहीं चाहते ?
मनुष्य के स्वभाव की यह विशेषता है कि वह जो कुछ नूतन है उसे तो आत्मसात कर लेता है लेकिन जो पुरातन ताज्य है उसे छोड़ नहीं पाता । यह ज़रूरी भी नहीं है क्योंकि यदि हम सब कुछ जो पुरातन है उसे त्याग देंगे तो न हमारे पास इतिहास रह पायेगा न,परम्परा न संस्कृति ,न संस्कृति का गौरव । लेकिन क्या यह ज़रूरी नहीं कि हम अपने अतीत से जो कुछ ग्रहण करने योग्य है उसे ग्रहण करें और उस आधार पर नूतन की विवेचना करें । यह बिलकुल आवश्यक नहीं है कि प्राचीन मान्यताओं को आधार बनाकर हम विसंगतियों को जीवित रखने  के लिए अनावश्यक कारणों की तलाश  करें । अतीत की किसी विसंगति को सिर्फ इसलिए जायज़ नही  ठहराया जा सकता कि  हमारे  पूर्वज ऐसा किया करते थे । ध्यान इस बात पर दिया जाना चाहिये कि उनकी इस सोच और कार्य के पीछे क्या कारण थे और देश- कालानुसार क्या परिस्थितियाँ थीं । आज जब हम पुरातन समय में चमत्कारिक समझी जाने वाली घटनाओं के विश्लेषण में  समर्थ है इस बात की कोई आवश्यकता नही रह जाती की सामाजिक विसंगतियों को  चमत्कारों के  जरिये  दूर होने की आशा करें या किसी अवतार की प्रतीक्षा करें ।

यही सब सोचकर मैने लगभग बीस लेखों की इस लेखमाला का विचार किया है और इसे अपने ब्लॉग “ना जादू ना टोना “ पर प्रस्तुत करना चाहता हूँ ।मेरा उद्देश्य जादू-टोने या अन्द्धविश्वासों पर बहस करना नहीं है न ही सायास कोई बात मैं आप लोगों से मनवाना चाहता हूँ । मैं चाहता हूँ के हम सब मिलकर इस समाज की सोच में कुछ परिवर्तन कर सकें । आप सभी से निवेदन है कि इस सम्वाद में हिस्सा लें और अपने विचारों से मुझे अवगत करायें ।यह लेखमाला मैं सोमवार 1 फरवरी 2010 से प्रारम्भ करने जा रहा हूँ और प्रत्येक सोमवार को इसका प्रकाशन होगा । हो सकता है इसमें सम्मिलित विषय सामग्री आपकी पढ़ी हुई हो लेकिन उसे नये नज़रिये से देखने का यह अवसर है । इसकी भाषा भी शास्त्रीय नहीं है और रोचक उद्धरणों से मैने अपनी बात समझाने की कोशिश की है । इस बहाने हम आपस में ,और उससे अधिक अपने आप से संवाद तो कर सकेंगे ।

   भवदीय

शरद कोकास   


शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

छह माह पहले आप ही ने तो यह कहा था .......




19 टिप्पणियाँ: Arvind Mishra ने कहाआगे बढ़ते चलिए और इस जन्म को सार्थक करिए !स्वप्नदर्शी ने कहाYou can also visit my blog, I do write often about science, biotech and society and science often.बालसुब्रमण्यम ने कहायह बहुत अच्छा प्रयास है। मेरा सुझाव है कि इसे व्यापक स्वरूप देने के लिए हर स्कूल में एक विज्ञान मंडली स्थापित करने पर विचार करें, जिसके कुछ शिक्षक और 9वीं से लेकर 12वीं तक के छात्र-छात्राएं स्वेच्छा से सदस्य बन सकते हैं।विज्ञान की चर्चाएं इस मंडली में नियमित रूप से की जा सकती है। मंडली के सदस्य नुक्कड नाटक आदि के माध्यम से समुदाय में भी वैज्ञानिक चिंतन को प्रसारित कर सकते हैं और अंधविश्वासों का उन्मूलन कर सकते हैंAlbelaKhatri.com ने कहाsharadji, aap ek nek aumaanavhit ka mahti kaarya kar rahe hain......paakhand k viruddh satya ka dhvaj khada karna saral nahin hota lekin aap jaise himmatvan jab saamne aakar muqabla karenge toh mujhe yakin hai ki satya ka divakar zaroor ujaagar hoga

meri haardik shubh kaamnaayen अनुनाद सिंह ने कहाआपने बहुत महान कार्य के लिये स्वयं को समर्पित किया है।  संगीता पुरी ने कहासमाज से अंधविश्‍वास दूर करने का आपका यह प्रयास सराहनी हैं .. शुभकामनाएं।दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi ने कहाआप इस काम को करिए, इस की बहुत आवश्यकता है। आरंभ कर डालिए।अल्पना वर्मा ने कहाकल भी एक बाबा लाला साईं गिरफ्तार हुए...जिस तरह हर दिन एक नए भंडा फोड़ हो रहा है ,सुनने में लगता है जन -जाग्रति आई है..लेकिन जिस तरह से आसानी से यह अपना जाल फैलाते हैं मुझे यही लगता था कि कोई कानून इन्हें रोकने के लिए बना ही नहीं.अब आप ने बताया कि ऐसा कोई कानून बना है! 
जन जाग्रति बहुत जरुरी है मगर सिर्फ जनजागृति से कुछ नहीं होगा..क्योंकि एक आम नागरिक अगर शिकायत दर्ज कराये और उसकी शिकायत दर्ज न की जाती हो फिर?
इस लिए अंधविश्वास फैलाने वाले पाखंडियों के खिलाफ सख्त कानून के साथ चुस्त प्रशासन की भी बहुत जरुरत है .धन्यवाद.लवली कुमारी / Lovely kumari ने कहाजब तक भगवान,भूत,परा शक्तियों की अवधारना हमारे समाज में व्याप्त रहेंगी ..चाँद मुठ्टी भर लोग कुछ नही कर सकते ..जरुरत है व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलाने की, जो सिर्फ ब्लॉग से संभव नही है.आप अच्छा कार्य कर रहें हैं, अपना कार्य करते रहे.महामंत्री - तस्लीम ने कhहा आपके द्वारा दी गयी जानकारी ने इस कार्यक्रम के प्रति रूचि उत्‍पन्‍न कर दी है लेकिन इस बात पर संशय है कि विभिन्‍न प्रस्‍तुतियों के द्वारा मन में अंधविश्वास कैसे निकल जाता है। वैसे यह अच्‍छा प्रयास है, इसे जारी रखें। राज भाटिय़ा ने कहायह बाबा, यह ढोंगी, ओर यह साधू सब हमारे बनाये हुये है, जब हम इन की बातो मै आना बन्द कर देगे, लालच मै नही आयेगे तो कोई भी हमे उळ्ळू नही बना पायेगा, सब पाखंड है,Murari Pareek ने कहामुझे सबसे ज्यादा चिढ इन बाबाओं से है, बिचारे भोले भाले इंसानों से क्या क्या नहीं करवाते, कोई साईं, कोई बापू, बड़े बड़े गुंडे हैं !! जो धर्म की आड़ मैं न जाने क्या क्या गुल खिलाते हैं !!!!आपका प्रयास अच्छा है !! लगे रहिये !!अजित वडनेरकर ने कहाशरद भाई बहुत ही सुंदर काम कर रहे हैं आप। धीरे धीरे आपके सभी ब्लाग पर नज़र डाल रहा हूं। वक्त का तोड़ा ऐसा ही कि क्या कहें। सब साथी ब्लागर जो कुछ कर रहे हैं, उसे नजर भर देखना नसीब में नहीं है। विज्ञान का मैं भी विद्यार्थी रहा हूं, अंधश्रद्धा निर्मूलन मुहीम में रुचि है। धार्मिक कर्मकांडों से बिदकता हूं। शुरू में विज्ञान विषयक चिट्ठा बनाने की ख्वाहिश थी, पर भाषाविज्ञान मुझ पर हावी रहा है और शब्दों का सफर के नाम अपना सारा समय सुरक्षित है। 
आप सबके काम को लगातार देखता रहूंगा। शोभना चौरे ने कहाaapke blog par phli bar hi aana hua hai . aapne jo kam shuru kiya hai bhut hi nek kam hai jiski aaj samaj ko sakhat jarurat hai .
shubhkamnaye swekare.Babli
 ने कहाइस नेक काम की शुरुयात के लिए बहुत बहुत शुभकामनायें! महफूज़ अली ने कहाअन्धविश्वासों के खिलाफ आगे आयें:------ main aapke saath hoon. मथुरा कलौनी ने कहाबहुत ही महत्‍वपूर्ण कार्य कर रहे हैं आप। यह एक प्रकार का यज्ञ है। Suman ने कहाsriman ji,agar andhvishvash jaadu, tona khatam ho jayega to samaj k dharmik thekedaaro ka kya hoga .is sambandh mein bharat bhushan ki ye linein sateek hai . बेनामी ने कहाbhoot preyat jaisi joi cheez nahi hoti bas se insaano ka veham hota hai unhe aisa lagta hai ki koi unhe dekh raha hai koi unka peecha karr raha hai .....aaj ke zaamaney me aise cheezo parr bas vo hi log vishvash karte hai jo ki ill-litrate hai jaise villagers log .......ye log aaj bhi bhoot preeto me vishvash karte hai.....


छह माह पूर्व मैने इस ब्लॉग पर आप सभी मित्रों से एक सलाह मांगी थी और प्रसन्नता का विषय है कि इस  पर आप सभी ने मेरा साथ दिया । आपके सुझावों पर अमल करते हुए मैने एक लेखमाला तैयार की है जिसका प्रकाशन मैं आगामी एक फरवरी से करना चाहता हूँ । आप सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करने के लिये मैं इस पोस्ट और इस पर प्राप्त आपकी टिप्पणियों का पुनर्प्रकाशन  कर रहा हूँ ,कृपया इसे स्वीकार करें ।
२३ जून २००९



वैज्ञानिक चेतना के ब्लॉगर्स सलाह दें

ब्लॉगिंग की दुनिया में घोषित रूप से वैज्ञानिक दृष्टि में विश्वास रखने वाले ब्लॉग्स बहुत कम है जिनमें ब्लॉग कुदरतनामा के ज़रिये श्री बाल्सुब्रमणियम भुजंग के ज़रिये सुश्री लवली कुमारी और श्री अरविन्द मिश्रा तथा साईंस ब्लोगर असोसिएशन एवं तस्लीम के माध्यमसे श्री ज़ाकिर अली रजनीश , डॉ.अरविन्द मिश्रा,श्री ज़ीशानहैदर ज़ैदी सुश्री अर्शिया अली और् कवि कुमार अम्बुज जैसे लोग यह काम बखूबी कर रहे हैं.वर्तमान समय में इस बात की आवश्यकता है कि सामान्य जन के भीतर न केवल वैज्ञानिक दृष्टि अपितु इतिहास बोध भी जागृत किया जावे.वस्तुत: वर्तमान दौर में पूंजीवाद ने बाज़ार के साथ-साथ धर्म पर भी आधिपत्य कर लिया है. यह इतनी चालाकी के साथ हुआ है कि पूरी नई पीढी इसकी चपेट में आ गई है.धार्मिक जुलूस पहले भी निकाले जाते थे लेकिन अब उनमें उन्माद का प्रदर्शन होने लगा है.एक धर्म की प्रतिद्वन्दिता में दूसरा धर्म इस उन्माद का प्रदर्शन और अधिक ज़ोर शोर से करता है.धर्म और ईश्वर पर अवलम्बिता बढती ही जा रही है अत: धार्मिक स्थलों पर भीड भी बढने लगी है.ईश्वर को चढाये जाने वाले प्रसाद ने अब घूस का रूप धारण कर लिया है और मनुष्य तथाकथित पाप से मुक्त होकर तमाम अनैतिक कार्यों में लिप्त रहने लगा है.मनुष्य की धर्मभीरुता और अन्धविश्वास के प्रति सकारात्मक सोच के फलस्वरूप न केवल धर्म की शक्तियाँ बल्कि बाज़ार की शक्तियाँ तथा राजनैतिक शक्तियाँ भी इसका लाभ उठाने में लगी हैं.इसलिये अन्धश्रद्धा का शिकार होने या तांत्रिकों द्वारा ठगे जाने को अब केवल किसीकी व्यक्तिगत हानि मानकर नज़र अन्दाज़ नहीं किया जा सकता.अन्द्धश्रद्धा निर्मूलन समिति,तर्कशील सोसायटी और अन्य संस्थाओं द्वारा दिये गये चमत्कार साबित करने विषयक चेलेंज को स्वीकार करने हेतु कोई पाखंडी बाबा या ज्योतिषी सामने नहीं आता इसलिये कि वे जानते हैं अन्धश्रद्धालू जनता जब तक उनके साथ है वे धनार्जन करते रहेंगे.सत्ताधीशों और पूंजीपतियों का प्रश्रय भी उन्हे प्राप्त है.ड्रुग एण्ड मेजिकल रेमेडी एक्ट 1954 में लागू हुआ था लेकिन इसके तहत अब तक कितने लोगों पर कारवाई हुई है? हमारे शहर मे कोई बाबा आता है किसी लॉज में ठहरता है,स्थानीय अखबार में विज्ञापन देता है और पुत्र उत्पन्न होने की भभूत बेचकर पैसा लूटकर चला जाता है. कितने लोग है जो इस बात की शिकायत करते है.कितने लोगों को पता है कि इस एक्ट के अंतर्गत न केवल बाबा पर बल्कि अखबार के मालिक पर भी मुकदमा दायर किया जा सकता है.दर असल यह सब आम जन के बीच वैज्ञानिक चेतना ना होने की वज़ह से है .और इस चेतना के प्रसार के लिये जनता के उचित प्रशिक्षण की आवश्यकता है.लेकिन प्रश्न यह है कि यह सब कौन करेगा.क्या हमारे जैसे चन्द ब्लॉगर मिलकर इस काम को कर सकेंगे? वर्षों से अनेक संस्थायें इस दिशा में कार्य रत हैं लेकिन यह समस्या कम होने की बजाय बढती ही जा रही है. फिर भी यह निराश होने का समय नही है.मिल जुल कर मनुष्य को इस मनुष्य निर्मित आपदा से बचाया जा सकता है.

मै अपने स्तर पर यह कार्य कर रहा हूँ.तथा स्कूलों,कॉलेजों मे छात्रों के बीच जाकर अपने व्याख्यान "मस्तिष्क की सत्ता' के माध्यम से वैज्ञानिक दृष्टि का प्रसार करता हूँ.इस व्याख्यान को रोल प्ले तथा सहायक सामग्री फ्लिप चार्ट आदि की सहायता से मैं प्रस्तुत करता हूँ.इसके अंतर्गत बृह्मांड की उत्पत्ति से लेकर सूर्य,गृहों व पृथ्वी के जन्म ,मनुष्य के जन्म तथा उसके आज तक के विकास में अथवा उसके अन्धविश्वास में उसके मस्तिष्क की भूमिका,व्यक्तित्व का विकास,संस्कारों की भूमिका ,आत्मा का अस्तित्व,मनोविज्ञान के laws of suggetions भूत-प्रेत व ढोंगी बाबाओं के किस्से आदि को मै अत्यंत रोचक एवं मनोरंजक ढंग से समझाताहूँ.कवितायें, चुटकुले,मीमीक्री आदि तत्वों से युक्त मेरा प्रस्तुतिकरण इतना रोचक होताहै कि लगभग ढाई-तीन घंटे कोई अपने स्थान से हिलता नही हैं.इतनी देर मे सारे अन्धविश्वास दिमाग से निकल जाते है. ब्लॉग के माध्यम से इस आवश्यक एवं महत्वपूर्ण कार्य को करने वाले अपने अनेक साथियों को देखकर मुझमें आशा का संचार हुआ है और यह विचार मन में आया है कि इस व्याख्यान को स्क्रिप्ट का स्वरूप देकर और इसकी रोचकता को यथावत रखकर इसे ब्लॉग पर प्रस्तुत करूँ.आप सभी शुभचिंतकों,ब्लॉगर्स एवं पाठकों की राय इस बारे में आमंत्रित है. इसे यह नया स्वरूप देने में मुझे कुछ समय लग सकता है.तब तक बाबाओं के किस्से,पोल खोल के किस्से और चमत्कारों का भंडाफोड आदि चलते रहेंगे. कृपया इस बारे मे सुधी साथी मुझे सुझाव दें ।
आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद । प्रकाशन के पहले ..कल एक निवेदन और करना चाहूँगा .. उस पर भी एक नज़र डालियेगाशरद कोकास