पिछली पोस्ट से इतना ज़रूर याद रखें - मान लीजिये हमारी पृथ्वी की आबादी लगभग छह सौ करोड़ है ,इस तरह हम हमारी पृथ्वी के 600 करोड़वें हिस्से हैं । हमारा सौर परिवार हमारी आकाशगंगा का 64 करोड़वाँ हिस्सा है तथा हमारी पृथ्वी हमारी आकाशगंगा का 25 हज़ार करोड़वाँ हिस्सा है । अब बताइये इस आकाशगंगा में हम कहाँ हुए ? फिर ऐसी करोड़ों आकाशगंगाएं बृह्मांड में हैं तो हम बृह्मांड में कहाँ हुए ? गणना छोड़िये , यह सोचिये कि जब हम बृह्मांड में इतने नगण्य हैं तो मामूली कुत्ते,बिल्ली,चीटीं और मच्छरकी क्या स्थिति होगी ? उनसे भी छोटे हैं कीटाणु जो आकार में मिलीमीटर के हज़ारवें भाग तक होते हैं जो केवल माईक्रोस्कोप से देखे जा सकते हैं और जिन्हे माईक्रोमीटर में नापते हैं। इनसे भी छोटे होते हैं अणु । अणु के विभिन्न हिस्से हैं परमाणु जो पदार्थ का सूक्ष्मतम भाग है। समस्त बृह्मांड इन्ही अणुओं से बना है। परमाणु को इलेक्ट्रोन ,प्रोटान व न्यूट्रान में विभाजित कर सकते हैं । ये मूलभूत कण हैं , इलेक्ट्रोन इनमें सबसे छोटा कण है ।
पृथ्वी पर रहने का किराया दो
पृथ्वी पर रहने का किराया दो
मकान खरीदने से पहले हम हमेशा जानना चाहते हैं यह किसने बनाया है या ज़मीन खरीदने से पहले यह कि वह ज़मीन किसकी है । हम इस बात के प्रति आश्वस्त हो जाना चाहते हैं कि हम कहीं ठगे तो नहीं जा रहे । सही बात है , आखिर ज़मीन या मकान का पैसा दे रहे हैं भाई । ज़मीन या मकान ही नहीं छोटी से छोटी वस्तु भी हम यदि खरीदते हैं या किराये पर लेते हैं तो उसकी बारे में जानना चाहते हैं ।ऐसा है तो फिर हम यह क्यों नहीं जानना चाहते कि जिस पृथ्वी पर अपने पुरखों के ज़माने से हम रह रहे हैं वह कहाँ से आई ? आप कहेंगे पृथ्वी हम खरीद थोड़े ही रहे हैं या इस पर रहने का किराया थोड़े ही दे रहे हैं । सही है ,जो चीज़ मुफ्त में मिल रही हो या जिसके लिये किराया ना देना पड़ रहा हो उसके बारे में क्या पूछना । कहीं से भी आई हो पृथ्वी हमने तो इसे माल-ए-मुफ्त समझकर इसके टुकड़े टुकड़े कर बाँट लिया है । जो दिमाग से जितना चालाक उसका हिस्सा उतना बड़ा । जो बड़ा ज़मीन्दार उसके पास सैकड़ों एकड़ ज़मीन और जो सीधा-सादा गरीब उसके पास कुछ नहीं ।
चलिये सामाजिक विषमताओं की बात छोड़िये पृथ्वी कहाँ से आई यह देखते हैं । हर धर्म में पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बन्धी ढेरों पौराणिक और प्राचीन मान्यताएँ हैं लेकिन फिलहाल इन्हे एक ओर रखकर इसका वैज्ञानिक उत्तर ढूंढते हैं । भौतिक विज्ञान के महत्वपूर्ण नियम गुरुत्वाकर्षण (जय हो बाबा न्यूटन) के नियमानुसार द्रव्य के दो पिंडों के बीच आकर्षण होता है । एक पिंड दूसरे पिन्ड को अपनी ओर खींचता है तथा उसके करीब पहुंचते पहुंचते यह आकर्षण बढ़ता जाता है व खिंचने की गति भी बढ़ जाती है । इस प्रकार जब दो पिंड एक दूसरे के बहुत निकट आ जाते हैं तो गुरुत्वाकर्षण के फलस्वरूप दोनों पिंडों से एक लम्बा तंतु निकलता है ।(ऐसा कीजिये आज रसोई में आटा गून्धिये । अपने दोनो हाथ मे अलग अलग आटे के गोले लीजिये फिर दोनो को मिलाइये और खींचकर देखिये तंतु ऐसे ही निकला होगा ) कालांतर में यह तंतु ठंडा होता है द्रव्य का शीतलीकरण होता है व छोटे छोटे पिंड बन जाते हैं इस प्रकार उत्पन्न पिंड अपने उत्पादक पिंड के चारों ओर चक्कर लगाते हैं । यह सिद्धांत सन 1916 में प्रसिद्ध ब्रिटिश वैज्ञानिक जेम्स जिंस ने स्थापित किया ।
आइये ,इस सिद्धांत के आधार पर देखें कि हमारी पृथ्वी कैसे बनी । साढ़े चार अरब वर्ष पूर्व सूर्य के निकट से एक पिन्ड गुजरा ,दोनों पिन्डों में आकर्षण हुआ । सूर्य से जो तंतु निकला कालांतर में उसके ठंडे होने पर तथा द्रव्य के शीतली करण के कारण उसके छोटे छोटे पिंड बने । ये तमाम पिंड उस सूर्य की परिक्रमा करने लगे जो उनका जनक था । यह सभी पिंड ग्रह कहलाये जिनमें हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह है और उसके भाई बहन हैं अन्य ग्रह । हमारे सबसे करीब यही ग्रह है जिस पर हम खड़े हैं लेकिन इसका हमारी कुंडली में कहीं कोई स्थान नहीं है । और वह पिन्ड जिसके आकर्षण के फलस्वरूप हमारे सौरमंडल की उत्पत्ति हुई हो सकता है अपनी संतानों के साथ बृह्मांड में कहीं विचरण कर रहा हो ।
इस प्रकार यह पृथ्वी जन्म लेने के पश्चात प्रारम्भ में विभिन्न प्रकार की गैस से मिलकर बना एक विशालकाय पिंड थी जो अपने अक्ष पर घूमती हुई सूर्य की परिक्रमा कर रही थी । ताप के विकीरण के फलस्वरूप यह पिंड ठंडा हुआ ,द्रव्य व गैसों का शीतलीकरण हुआ तथा तरलीय व अर्धसान्द्रीय अवस्थाओं से होता हुआ वर्तमान अवस्था तक पहुंचा। बाहरी तल से घनीकरण प्रारम्भ हुआ,उपरी सतह पर पपड़ी जमी जो भीतर की ओर मोटी होती गई। गर्भ भाग में आकुंचन हुआ, पपड़ी में झुर्रियाँ व दरारें पड़ीं फलस्वरूप हिमालय जैसे पर्वत और नदियाँ बनीं । यह सब घटित होने में कई करोड़ साल लगे ।
दिमाग पर ज़्यादा ज़ोर मत लगाइये चलिए अपने घर में ठंडे होते हुए दूध पर मलाई जमते हुए देखिए और इस पर विचार कीजिए । और किराये की बात भी भूल जाईये यह तो एक बहुत बड़ा बाड़ा है जो जितना पुराना किरायेदार उसका उतना हक़ । वही किरायेदार वही मकान मालिक, जैसे अफ्रिका जैसे बड़े देश और हमारे जैसे छोटे ,फिर देश में भी बड़े बड़े धन्ना सेठ और हमारे जैसे फूटपाथिये । इस धरती पर रहने की कीमत न वो देते है न हम । कीमत तो छोड़िये पृथ्वी पर रहकर हम पृथ्वी का ही नुकसान करते हैं,प्रदूषण फैलाते हैं ,जंगल काटते हैं, ज़मीन से पानी चूस लेते हैं और भी बहुत सा नुकसान करते हैं इस पृथ्वी का । मुम्बई की चालें देखी हैं ना जब तक धराशायी नहीं होती लोग खाली ही नहीं करते ,फिर कई लोग दब कर मर भी जाते हैं । हम भी धीरे धीरे अपनी पृथ्वी को वहीं ले जा रहे हैं जहाँ न ये पृथ्वी रहेगी न हम ।आप कहेंगे हमे क्या ? हमारी आनेवाली पीढ़ीयाँ जानें । हम तो चैन से रह ही लेंगे अपने जीते जी ।
दुख के दिनो सी कठोर है बीते समय की पीठ
जिस पर खुदे हैं सहनशीलता के दस्तावेज़
जिसमें उन्माद है राह बदलती नदियों का
बेचैनी में करवट बदलती धरती का अभिशाप
सत्तालोलुपों के आक्रमण सिंहासन की अभिलाषा में
मवेशियों के रेवड़ हासिल करने के लिये
घास के मैदान पर पशुपालकों की जीत
और इन्ही के बीच कहीं अस्पष्ट सी लिखावट में
अपने अस्तित्व का अर्थ ढूँढते मनुष्य का संघर्ष ....