सोमवार, 17 मई 2010

मटर पनीर की सब्ज़ी की तरह बनता है हमारा शरीर

     लेखमाला : मस्तिष्क की सत्ता - हमारा और अन्य सजीवों का शरीर कैसे बनता है -  
 
आपसे यदि पूछा जाये कि सजीवों के कुछ प्रमुख लक्षण बताइये तो आप क्या कहेंगे ? सजीव वही है जो जीवित है या जिसके पास एक जीवित देह है ।फिर पूछा जाये कि जीवित देह में क्या होता है तो आप कहेंगे ,, एक सिर दो हाथ ,दो पाँव, दो आँखें ,दो कान ,एक दिल, एक पेट वगैरह वगैरह । और बेशक एक दिमाग़ भी ..। मेरे जैसे कुछ कविनुमा लोग कुछ और कहेंगे ..मसलन कटीली आँखें , पत्थर जैसा दिल ,कुँये जैसा पेट आदि आदि । लेकिन माफ कीजिये , मैं सिर्फ मनुष्यों के बारे में थोड़े ही पूछ रहा हूँ । मेरा आशय तो हर उस शरीर से है जिसे हम सजीव कहते हैं ।  बिलकुल सही फरमाया आपने लेकिन यह शरीर जिसके हम मालिक हैं इसकी यह बेहद उबाऊ  ही सही लेकिन वैज्ञानिक परिभाषा जानना भी तो ज़रूरी है ।
आइये कुछ विस्तार से देखें सजीवों का यह शरीर कैसे बनता है और इसके प्रमुख लक्षण क्या क्या होते हैं । इनमे सबसे पहला है  जीव द्रव्य  : सजीवों का शरीर जीव द्रव्य से बनता है । इस जीव द्रव्य में मुख्यत: कार्बनिक व अकार्बनिक ठोस पदार्थ ,प्रोटीन वसा, कार्बोहाइड्रेटस नयूक्लीइक एसिड ,लवण तथा जल होता है । ये सभी यौगिक निर्जीव तत्वों से बनते हैं  । यह पारदर्शी ,चिपचिपा ,रवेदार ,जेलीनुमा ,अर्धतरल पदार्थ होता है । यह कोशिका की कोशिका झिल्ली के भीतर अवस्थित होता है ।  निर्जीव तत्वों से बने इन यौगिकों के एक विशेष तरह के अणु संग्रह में जीवन होता है । 
सजीवों का दूसरा लक्षणहै एक निश्चित शारीरिक संगठन : शरीर का निर्माण करने वाला जीव द्रव्य छोटे छोटे टुकडों में कोशिका कला से घिरकर शरीर की वह इकाई बनाता है जिसे कोशिका कहते हैं । कुछ जीवों का शरीर एक कोशिका से बना होता हैं । ये ‘ एक कोशिकीय जीव ‘ कहलाते है जिसे अमीबा,वालवॉक्स आदि । मनुष्य,अन्य जंतु व पौधे जो अनेक कोशिकाओं से बनते हैं ‘ बहुकोशिकीय जीव ‘ कहलाते हैं । इनके शरीर में असंख्य कोशिकाओं से मिलकर बनते हैं ‘ ऊतक ‘। विभिन्न ऊतकों से अंग बनते हैं। कई अंगो को मिलाकर तंत्र बनता है तथा तंत्रों के संगठन से शरीर का निर्माण होता है। इस तरह बने हुए शरीर की एक निश्चित पहचान होती है जैसे मनुष्य का शरीर,भैंस, हाथी , कुत्ता ,गाय .मख्खी और गधे आदि का शरीर । ऐसे ही पौधे की भी एक निश्चित आकृति होती है जिससे हम पहचानते हैं यह पीपल का पेड़ है या आम का ।
आइये इसे एक उदाहरण से समझते हैं । मटर पनीर की सब्ज़ी बनाने के लिये पहले कढाई में तेल डालते हैं । फिर उसमें जीरा , प्याज़,लहसुन ,अदरक,मिर्च,धनिया,हल्दी डाल देने से बनता है मसाला , इसमे पानी डाल दें तो बन जाती है तरी,उसमें मटर डाल दें तो कहलाती है मटर की सब्जी । अगर इसमें पनीर भी डाल दें तो कहलाती है मटर-पनीर की सब्जी । इसकी अपनी पहचान इसी नाम से  होती है और  अन्य तत्वों के नाम लुप्त हो जाते हैं ।
मैने अपने एक व्याख्यान के दौरान जब यह उदाहरण दिया तो एक महिला ने कहा “ सर ,आपने इतना भाषण दे दिया लेकिन इस क्रम में आपकी सब्ज़ी (मतलब मटर-पनीर की सब्ज़ी ) बन ही नहीं सकती । मैने पूछा "कैसे ?"तो उसने कहा " आपने गैस तो जलाई ही नही।  मैने कहा बिलकुल ठीक । मैं यह बताना भूल ही गया । सब्जी पकाने से पहले गैस जलाना ज़रूरी है ।अंत में यही एक बात कि जैसे पकाने के लिये उर्जा ज़रूरी है वैसे ही जीवन के निर्माण और सजीव को जैविक क्रियाओं के लिये भी उर्जा ज़रूरी है ।
अगली किश्त में देखेंगे सजीवों के अन्य लक्षण । 
आज उपसर्ग में प्रस्तुत है शरीर के लिये और जीवन के लिये ज़रूरी इस उर्जा या इस आग पर कवि निरंजन श्रोत्रिय की यह एक कविता ,उनके संग्रह "जुगलबंदी " से साभार ।

                आग

हमारा बहुत सारा जीवन
उसकी तलाश में निकल जाता है
जबकि वह मौजूद होती है
हमारे बहुत करीब

जब हम रगड़ते हैं दियासलाई
वह सिमटी होती है छ: हज़ार डिग्री सैल्सियस
धधकते सूरज से उतरी धूप के भीतर
जब हम ढूँढते हैं ठंडी राख के भीतर कोई अंगारा
वह दुबकी होती है टेसू के सिंदूरी –पीले रंग में

रात को ठंडी पड़ी भट्टी की ईटों और
गुस्से में उबलती कलम की नोंक में
छुपा होता है उसका संगीत

वह भरी हुई है मरी खाल के फ़ेफ़ड़े के भीतर
पिघलाने को बहुत सा लोहा
वह प्रतीक्षा कर रही है हथेलियोँ की रगड़ की

हम अपना सारा जीवन उसे इधर-उधर खोजने में लगा देंगे
और वह प्रकट हो जायेगी यूँ ही एक हल्की चोट में
वहाँ जहाँ चकमक पत्थरों से खेल रहे हैं बच्चे |
                
                       निरंजन श्रोत्रिय  

बुधवार, 5 मई 2010

मुझे नही पता ,आप ही बताइये यह जीवन क्या हैं ?


                                  
आप कहेंगे यह भी कोई सवाल है । सही है आप में से ऐसा कोई नहीं होगा जिसने कभी इस प्रश्न के बारे में न सोचा हो । अभी इस सवाल के उत्तर में आप धड़ाधड़ लिखना शुरू कर देंगे । कोई कहेगा ज़िन्दगी एक पहेली है कोई कहेगा जीवन पानी का बुलबुला है ,जीवन एक उड़ती हुई पतंग है,जीवन एक साँप है , जीवन एक सज़ा है  , एक उड़ता हुआ पंछी है ,वगैरह वगैरह ।जीवन के बारे में हर कवि ने दो चार पंक्तियाँ तो लिख ही डाली हैं मसलन ..”जीवन क्या है,चलता फिरता एक खिलौना है / दो आँखों में एक से हंसना एक से रोना है ।" मुझे भी जीवन के बारे में कविताएँ बहुत अच्छी लगती हैं और जीवन को परिभाषित करने वाली एक कविता तो मुझे बेहद पसन्द है ..” ज़िन्दगी क्या है जान जाओगे / रेत पे लाके मछलियाँ रख दो “
        चलिए कवियों को अपना काम करने दीजिये, हम जीवन की वैज्ञानिक परिभाषा देखते हैं ।   पृथ्वी पर जीवन का आरम्भ हो चुका था लेकिन मानव जीवन के आगमन में अभी समय था । पेड़-पौधे ,कीड़े-मकोड़े, रेंगने वाले जीव तैरने वाले जीव और उड़ने वाले जीवों का आगमन हो रहा था । यह सब सजीव थे और इनमें जीवन के सभी लक्षण मौजूद थे । हमें तो मनुष्य के जीवन से मतलब है इसलिये मनुष्य के जन्म का समाचार जानने से पहले हम जान लें ,आखिर यह सजीव होना क्या है ?
जीव का अर्थ आत्मा नहीं होता - जीवन के बारे में अगर आप जानते हैं तो आपको यह भी पता ही होगा कि हम मनुष्य,अन्य प्राणि,कीट-पतंगे और पेड़-पौधे सभी सजीवों की श्रेणि में आते हैं । सजीवों के कुछ विशेष लक्षण होते हैं जैसे जन्म लेना,बढ़ना, सांस लेना, गति, उत्तेजना तथा संतानोपत्ति और अंतत: मृत्यु आदि। ये सजीव अपने आसपास से अपने जीवन के लिये आवश्यक वस्तुयें ग्रहण करते हैं । सजीवों के सभी लक्षण जीवन के फलस्वरुप ही होते हैं । सजीवों के शरीर में जीवन के लिये आवश्यक क्रियाशीलता बनी रहती है । यह क्रियाशीलता उनके पदार्थ जीव द्रव्य विभिन्न तत्वों तथा यौगिकों का विशिष्ट संगठन हैं। इस प्रकार जीव संगठित द्रव्य है तथा जीवन उसकी क्रियाशीलता । जीवन के होने के लिये एक शरीर आवश्यक है। शरीर से बाहर जीवन नहीं हो सकता । शरीर और जीवन का तालमेल ही एक सजीव को होने का अर्थ प्रदान करता है । जीवन को बेहतर तरीके से जानने के लिये जरूरी है शरीर को जानना । 
सजीवों के इन प्रमुख लक्षणों को तो हम अगली पोस्ट में देखेंगे , इस बार तो आप यह बताइये कि आप से अगर पूछा  जाये कि जीवन क्या है ? तो आप एक दो पंक्ति में इसका क्या उत्तर देंगे ? जीवन की आपकी अपनी परिभाषा जानने की प्रतीक्षा में - आपका -  शरद कोकास 
अरे हाँ उपसर्ग की कविता तो लिखना भूल ही गया , इस बार लीजिये पढ़िये कवि कुमार अम्बुज की यह कविता जिसमें आपको जीवन की प्रचलित परिभाषाओं से अलग जीवन का एक नया ही अर्थ दिखाई देगा ।श्री कुमार अम्बुज हिन्दी के बहुत प्रसिद्ध कवि हैं और भोपाल में रहते हैं । उनका एक ब्लॉग भी है , " कुमार अम्बुज "... इसे भी देखियेगा । 


                                    इस नश्वर संसार में

लाखों करोड़ों सालों से
इतना ही जीवित चला आ रहा है
यह नश्वर संसार

नश्वरता की घोषणा करने वाले
नष्ट हो गये
नश्वर संसार नष्ट नहीं हो रहा है

तमाम नश्वरता के बावज़ूद
भंगी अपनी झाड़ू बचा लेता है
धोबी अपने घाट का पत्थर
एक मिस्त्री बचा लेता है अपने औज़ार
और किसान गेहूँ की बाली
लोहार अपना घन
समय की छाती पर पटक देता है

तोते अपनी चोंच की लाली बचा लेते हैं
कोयल अपनी कूक
स्त्री अपनी मादकता बचा लेती है
पुरुष अपना ताप
काल के विकराल मुँह से छीन लेता है एक बच्चा
अपनी अमर हँसी

इस नश्वर संसार में
जीवन अमर हो रहा है लगातार
नश्वरवादियों के शवों पर
अट्टहास करता हुआ । 

                - कुमार अम्बुज 

चित्र गूगल से और कुमार अम्बुज की कविता उनके संग्रह " किवाड़ " से साभार ।तस्वीर मेरे मोबाइल कैमरे से ..-शरद कोकास