बुधवार, 25 अप्रैल 2012

कामिनी से लेकर कमीने तक


                                      
मनुष्य के मस्तिष्क ने अपने ऐतिहासिक विकासक्रम में  भाषा की  क्षमता अर्जित की है । आदिम मनुष्य ने अपने दैनिक क्रियाकलाप में शामिल व्यवहार में संकेतों को धीरे धीरे शब्द दिये । कालांतर में यही शब्द  कार्य व्यवहार में लाये गये  । स्मृति में शब्दों का समावेश तथा शब्दों द्वारा वाक्य संरचना की  इस क्षमता का विकास हमारे मस्तिष्क में हमारे बचपन में ही हो जाता है और हम अक्षर जोड़ जोड़ कर शब्द बनाने लगते हैं । हमारे माता- पिता और समाज के लोग इस क्षमता के विकास में हमारे सहायक होते हैं  । शाला में यह कार्य भलिभाँति सिखाया जाता है और मस्तिष्क अपनी यह विशेष क्षमता प्राप्त कर लेता है । जिन बच्चों मे यह क्षमता देरी से विकसित होती है वे पूरे शब्द बोलने में देर लगाते हैं या शब्दों का  ग़लत उच्चारण करते हैं ।
पाल ब्रोका 
सर्वप्रथम शरीरक्रिया विज्ञानी फ्लोरेंस ने कबूतरों पर प्रयोग कर मस्तिष्क के विभिन्न क्रियाकलापों पर अध्ययन किया । उन्होंने यह निष्कर्ष दिया कि मस्तिष्क के विभिन्न भागों की अलग अलग विशेषतायें होती हैं तथा इनके गुण भी अलग अलग होते हैं । अलग अलग स्थानों के अलग अलग कार्यों के बावज़ूद स्नायुमंडल समग्र रूप से कार्य करता है । फ्लोरेंस के कार्यों को पाल ब्रोका ने आगे बढ़ाया और उन्होंने सन 1861 में मस्तिष्क के भाषा क्षेत्र की खोज की । उन्होंने बताया कि बायें मस्तिष्कीय गोलार्ध के बगल में भाषा का केन्द्र अवस्थित होता है । मनोवैज्ञानिक ब्रोका के इस योगदान के फलस्वरूप मस्तिष्क के इस केन्द्र को मनोविज्ञान के क्षेत्र में ' ब्रोकाज़ एरिया ' के रूप में जाना जाता है । ब्रोका के इस कार्य को अन्य शरीर क्रिया विज्ञानियों फ्रिट्श तथा हिटज़िग ने आगे बढ़ाया ।
मस्तिष्क के इस क्षेत्र में अक्षरों से शब्द बनाने का काम होता है । मान लीजिये मैं आपको चार अक्षर देता हूँ ल ब ग और र और कहता हूँ कि इनसे कोई शब्द बनाईये तो आप तुरंत कहेंगे “ब्लॉगर “ । उसी तरह मैं आपको तीन शब्द दूँ ' म ' ' क ' और ' न ' तो आप  मकान, नमक , कान ,नाक, कमान, काका, नाना, मामा, कमान, नमक, और कामिनी से लेकर कमीने तक सारे सम्भाव्य शब्दों की रचना कर डालेंगे । उसी तरह ' म ' ' न ' और ' र ' अक्षरों से आप  मन , नर , मर ,राम ,मार , मरन , रमन ,नरम ,मीनार आदि शब्द बना सकते हैं ।
 अक्षरों से शब्दों के निर्माण में उनका उच्चारण विशेष महत्व रखता है । एक बच्चे ने अपने अध्यापक से कहा “ सर  ‘ नटूरे ‘ यानि क्या होता है ? “ अध्यापक ने कभी इस तरह का शब्द नहीं सुना था अत: उसने कहा " ऐसा कोई शब्द नहीं होता । अगर इस तरह के फालतू सवाल करोगे तो स्कूल से निकाल दिये जाओगे ।“ तब उस छात्र ने निराश होकर कहा “ सर इससे तो मेरा ‘ फुटूरे ‘ खराब हो जाएगा । “ बहुत देर बाद अध्यापक की समझ में आया कि वह ' नेचर ' ( NATURE ) और  ' फ़्यूचर  '  (FUTURE ) की बात कर रहा है ।
         इसी तरह शब्दों से वाक्य बनाने का काम भी मस्तिष्क के इसी क्षेत्र में सम्पन्न होता है । यदि मैं आपको तीन शब्द दूँ  प्रदत्त , जल और  प्रकृति “ तो आप तुरंत कह उठेंगे “ जल प्रकृति प्रदत्त है “ । सामान्य मनुष्य के अलावा एक कवि ,लेखक या वक्ता के लिये यह जानना बहुत ज़रूरी है कि यह कार्य मस्तिष्क किस प्रकार करता है । साधारण मनुष्य और लेखक दोनो के पास शब्द-भंडार लगभग समान होता है लेकिन लेखक कविता ,कहानी ,निबंध , ब्लॉग इत्यादि  लिखता है और सामान्य व्यक्ति यह सब नहीं लिख पाता । इसका सरल सा कारण है कि लेखक अपने मस्तिष्क की इसी क्षमता का उपयोग कर व्यवस्थित रूप से शब्दों का उपयोग कर वाक्य संरचना करता है । एक लेखक के लिये वाक्य संरचना के अलावा ज्ञान, कल्पना , बिम्ब निर्माण तथा विषय की जानकारी आदि अन्य गुणों का होना भी आवश्यक है ।  
लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि सामान्य व्यक्ति  मस्तिष्क की इस क्षमता का उपयोग नहीं करता । यदि वह इस क्षमता का उपयोग नहीं करेगा तो अपने विचारों को वाक्यों के द्वारा अभिव्यक्त नहीं कर पायेगा । मस्तिष्क की इस कार्यप्रणाली का हम अपने जीवन में सबसे अधिक प्रयोग बोलने में ही करते हैं । इसी क्षमता के कारण हम अपने शब्द भंडार , व्याकरण व भाषा के ज्ञान का सार्थक उपयोग करते हैं । - शरद कोकास

( चित्र गूगल छवि से साभार )