मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

आप बहुत खुश हो जाते हैं या रोने लगते हैं ?


मस्तिष्क के क्रियाकलाप - 8 व्यवहार नियत्रंण : आप अपने दिन भर के क्रियाकलापों को याद करें । आप सुबह जागते हैं नित्यक्रम से निवृत होते हैं ,भोजन करते है ,दफ्तर जाते हैं या अपने काम पर जाते हैं, सहकर्मियों से या परिजनों से सहज वार्तालाप करते हैं । हर जगह आप संयत होकर काम करते हैं । ऐसा नहीं होता कि आप दफ्तर में काम करते हुए अचानक नाचने लगें या परिजनों से बात करते हुए अचानक उखड़ जायें और किसीको तमाचा जड़ दें । अगर आप सभीसे अच्छी तरह बात करते हैं , सब का सम्मान करते हैं तो आपके बारे में कहा जाता है कि आपका व्यवहार अच्छा है । मस्तिष्क में व्यवहार नियंत्रण की यह क्षमता धीरे धीरे विकसित होती है । हमारे सामाजिक क्रियाकलापों और हमारे संस्कारों का इससे सीधा संबंध होता है ।
यही है मस्तिष्क के इस विभाग का कार्य जो आपके व्यवहार को नियंत्रित करता है । यह सिस्टम अगर फेल हो जाये तो आप अचानक उठकर नाचने लगेंगे या विक्षिप्तों जैसी हरकतें करने लगेंगे । या ऐसी बातें करने लगेंगे जिनका कोई सिर पैर ही नहीं  है । यद्यपि हमारी दिनचर्या में कई बार ऐसा अवसर आता है कि मस्तिष्क का यह भाग ठीक से अपना कार्य नहीं करता , हम कई बार आपा खो बैठते हैं ,या हम अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं । इसी तरह अनेक बार हम अपनी भावनाओं पर भी नियंत्रण नहीं कर पाते हैं या तो बहुत खुश हो जाते हैं या रोने लगते हैं ,लेकिन सामान्य स्थितियों में जब यह भाग सुचारु रूप से अपना कार्य करता है , हम अपना आचरण मर्यादा में ही रखते हैं और हमारे क्रियाकलाप सामान्य रूप से घटित होते हैं ।
 हमारे पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बारे में एक चुटकुला मशहूर है कि वे एक बार आगरा के पागलखाने विज़िट के लिये गये एक पागल ने उनसे पूछा “ आप कौन हैं  ? “ तो उन्होने जवाब दिया “ मै जवाहरलाल नेहरू हूँ ।“ इस पर उस पागल ने तुरंत मुँह पर उंगली रखी और कहा “ धीरे बोलो तीन महिने पहले मैं भी यही कहता था , तो इन लोगों ने मुझे पकड़कर यहाँ बन्द कर दिया । “ 
उम्मीद है आप लोग मस्तिष्क के इस हिस्से को इतना मज़बूत बना कर रखेंगे कि आपका व्यवहार सदा नियंत्रण में रहे । 
उपसर्ग में प्रस्तुत है कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की प्रसिद्ध कविता " कुआनो नदी के पार " से यह एक अंश.. 
 
यह पागल था 
पुलिस की हिरासत में 
निजाम उलटने के गीत गा रहा था 
यह एक किराये के जुलूस का 
 तमाशा देखते देखते 
अपनी ज़रूरतों पर सोचने लगा था 
गोली चलने पर भागना भूल गया 

यह हरिजन था इसे ज़िन्दा जला दिया गया 
यह अनपढ़ गरीब था 
इसे देवी की बली चढ़ा दिया गया 
यह 
आस्थावान धर्मगुरुओं की कोठरी में 
मरा 
यह 
अनजानी ऊँचाइयाँ छूना चाहता था 
छत की कड़ी से झूल गया 

मैं देखता हूँ और भागता हूँ 
मैं भागता हूँ और देखता हूँ 
मैं यह मानना नहीं चाहता 
कि नदी के पार कुछ नहीं है 
सिवा लाशों के ।