गुरुवार, 3 दिसंबर 2009
अरे वा ! ..श्रीदेवी की फोटो से भी भभूत निकलती है ..कमाल है !!!
बुधवार, 14 अक्तूबर 2009
"मुझे कर्णपिशाचिनी की सिद्धी प्राप्त है । "
बाबा जिस पर्ची को फेंककर चले गये थे वह पर्ची वहीं पड़ी थी मैने उसे उठाया और कान के पास ले जाकर कहा “ इसमे लिखा है ज़्द्रास्तुयते एतो सबाक दस्वीदानिया ।“ लोग इधर उधर देखने लगे । मैने कहा यहाँ वहाँ मत देखिये ,यह मैने ही लिखा है । फिर मैने अगली पर्ची उठाई और उसे कान के पास ले जाकर कानों से उसे पढ़ने का अभिनय करते हुए कहा “इसमें लिखा है “इस साल बहुत तेज़ गर्मी पड़ेगी ।“ भीड़ में से एक व्यक्ति ने हाथ उठाकर कहा “ सर यह मैने लिखा है ।“ इस तरह मैने सारी पर्चियाँ कान से पढ़कर सुना दी । लोगों ने कहा “ हमे नहीं पता था सर आप को भी कर्नपिशाचिनी सिद्ध है ।
मंगलवार, 15 सितंबर 2009
नवरात्रि में साबूदाने की खिचड़ी खाने से पहले सोचें..
गुरुवार, 3 सितंबर 2009
किस धोखे में हैं आप डॉक्टर के पास जाईये
आज एक मित्र के साथ कहीं जाने के लिये उनके घर से बाहर निकला ही था कि उन्हे छींक आ गई । तुरंत उनकी पत्नी ने कहा “ थोड़ा रुक जाईये जी यह अपशकुन है । “ मैने सोचा ,चलो भाभी हैं , थोड़ा हँसी-मज़ाक कर ही लिया जाये सो मैने पूछा “ क्या हो जायेगा भाभी जी अगर घर से निकलते समय छींक आ गई तो ? “ उन्होने कहा “ अरे आपको मालूम नहीं इससे दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है । “ मैने अपने तरकश से तर्क का तीर निकाला और कहा “ मतलब दुनिया में जितनी दुर्घटनाएँ होती हैं सब लोग अपने घर से निकलते समय छींकते ज़रूर होंगे ?” वो बोलीं “ क्या भाई साहब आप भी मज़ाक करते हो ,ऐसा कहीं होता है । “ मैने कहा “ ऐसा नहीं होता तो फिर ठिठकने की क्या ज़रूरत ? उन्होने दूसरा कारण दिया “नहीं भाई साहब ऐसा नहीं ,इससे बना-बनाया काम बिगड़ जाता है । “ मैने फिर उसी तीर को प्रत्यंचा पर चढ़ाया और कहा “ मतलब जितने लोगों के काम बिगड़ते हैं सब घर से छींकते हुए निकलते हैं ? “ उन्होने एक वाक्य में मुझे रिजेक्ट करते हुए कहा “ आपसे तो बहस करना बेकार है भाई साहब । “ फिर भी मैने कहा “भाभीजी, ऐसा नहीं है । छींक शरीर की एक रक्षात्मक प्रणाली है ,जो नाक में जबरन घुस आये धूल मिट्टी के कण को बाहर निकालने के लिये है । किसी गन्ध या धुयें या कीटाणु की वज़ह से भी छींक आ सकती है । नाक का यह भीतरी हिस्सा इतना सम्वेदनशील होता है कि ज़रा भी ज़बरदस्ती बरदाश्त नही कर सकता । कई बार जुकाम में इतनी छींक आती है कि रोके नही रुकती । हमारे एक मित्र थे जो बीच–बाज़ार में रहते थे और जुकाम के कारण दिन भर आते जाते छींकते रहते थे और न कोई दुर्घटना होती थी न काम बिगड़ता था ।लेकिन जब भी वो ससुराल जाते थे उनका जुकाम गायब हो जाता था इसलिये कि उनकी ससुराल पहाड़ी प्रदेश में थी ,जहाँ कोई प्रदूषण नहीं था । इसलिये छींक आने का सम्बन्ध न शुभ होने से है न अशुभ होने से ।“
वैसे यह अच्छी बात है कि सभी छींको को अशुभ नहीं माना जाता । कुछ लोग छींक आते ही कहते हैं “ शायद कोई याद कर रहा है ।“ फिर उस की याद आते ही उनके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है । कुछ लोग बातचीत के बीच में छींक आते ही कह उठते है “ देखा, सही बात । “ मानो छींक न हो आई एस आई की मुहर हो । वैसे छींक और याद का थोड़ा बहुत सम्बन्ध तो मै भी मानता हूँ, इसलिये चलते चलते आपको एक मुफ्त नुस्खा दे ही डालता हूँ । मान लीजिये आपको छींक आ ही जाये तो समझिये आपको कोई याद कर रहा है । दूसरी छींक आ जाये तो समझिये कि बहुत ज़्यादा याद कर रहा है । फिर तीसरी छींक आ जाये तो समझिये कि वह आपको अपने पास चाहता है । चौथी छींक आ जाये तो समझिये कि वह बगैर आपसे मिले रह ही नहीं सकता है और फिर पाँचवी छींक आ जाये तो.. किस धोखे में हैं आप ..? डॉक्टर के पास जाईये , आपको जुकाम हो चुका है ।
वैसे आप क्या सोच रहे हैं ॥भाभीजी मेरी बकवास सुनने के लिये अब तक रुकी होंगी ? हर पढ़े-लिखे का यही हाल है भैया । ठीक ,अगली बार बिल्ली के रास्ता काटने पर बात करेंगे । बेशक कुछ नया ही बताउंगा मै ।
आपका -शरद कोकास
गुरुवार, 27 अगस्त 2009
मेरी स्कूटर भी दूध पीती है
21 सितम्बर 1995 का दिन इस दुनिया में एक ऐसे तथाकथित चमत्कार के लिये याद किया जायेगा जब गणेशोत्सव के दिनों से भी ज़्यादा गणेश जी के मन्दिरों मे भीड़ रही । अचानक एक अफवाह फैली कि गणेश कुल के देवी देवता दूध पी रहे हैं । मन्दिरों में लम्बी लम्बी कतारें लग गईं । भीड़-अफरातफरी शोर का माहौल हो गया । लोग फोन से एक दूसरे को खबर कर रहे थे । थोड़ी देर में पता चला कि विदेशों में भी देवी मूर्तियाँ दूध पी रही हैं । दूध के भाव अचानक बढ़ गये । होटलों में चाय के लिये रखा दूध ऊंचे दाम पर बिक गया । लोग घर का पूरा दूध लेकर मन्दिरों में पहुंच गये ।यह कथा तो अब सभीको मालूम है क्योंकि लगभग सभी सूचना माध्यमों से इसका ज़ोर-शोर से प्रचार किया गया ।
लेकिन उस दिन इस अन्धविश्वास का विरोध करने के लिये और लोगों में वैज्ञानिक दृष्टि से इसका विश्लेषण करने की अपील करती हुई भी कई संस्थाएँ सामने आईं । अफसोस हमारे देश की जनता को मूर्ख समझ कर उनके अन्धविश्वास को बढ़ावा देने वाले माध्यमों के बीच उनकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती की तरह साबित हुई । इस अफवाह की वज़ह से उपजी अराजकता से निपटने के लिये और इसका वास्तविक कारण पता लगाने के लिये राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी संचार परिषद के अध्यक्ष डॉ.नरेन्द्र सहगल के नेत्रत्व में तुरंत एक दल का गठन किया गया जिसने राजधानी के विभिन्न मन्दिरो में भ्रमण कर इस घटना को देखा और यह निष्कर्ष दिया कि इस घटना में कोई चमत्कार नहीं है तथा वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार सामान्य घटना है ।इस वैज्ञानिक दल ने बताया कि दूध से भरे चम्मच को जब 90 अंश के झुकाव पर मूर्ति से सम्पर्क किया गया तो प्रतिमा ने दूधपान नहीं किया लेकिन इसके विपरीत चम्मच झुकाने से ऐसा प्रतीत हुआ । वैज्ञानिकों ने बताया कि प्रत्येक द्रव का पृष्ठ तनाव होता है जो द्रव के भीतर अणुओं के आपसी आकर्षण बल पर निर्भर होता है । जिस पदार्थ के सम्पर्क में यह आता है उस ओर इसका बल हो जाता है । इस घटना में जैसे ही चम्मच में भरा दूध सीमेंट ,पत्थर या संगमरमर से बनी प्रतिमा के सम्पर्क में आया वह उसकी सतह पर फैल गया तब देखने वालों को लगा कि प्रतिमा ने उस दूध को खींच लिया लेकिन जैसे ही दूध मे रंग या सिन्दूर मिलाकर प्रतिमा से लगाया गया बहती हुई दूध की पतली धार दिखती रही ।
इस दिन मैं अपने बैंक के निकट स्थित ,मन्दिर की पिछली नाली से बहते हुए दूध को देखता रहा और सोचता रहा यह वही देश है जहाँ लाखों-करोड़ों बच्चों को दूध पीने को क्या देखने तक को नहीं मिलता । शाम तक मैं इतना उद्वेलित हो गया कि स्थानीय प्रेस कॉम्प्लेक्स पहुंच गया और अपने पत्रकार मित्रों को बुलाकर कहा “ देखिये मेरी स्कूटर भी दूध पीती है ।“ फिर मैने यह प्रयोग भरे बाज़ार में करके दिखाया । लोगों ने इसे तमाशे की तरह देखा । साक्षरता भवन में अपने मित्रों के साथ हमने टेबल, कुर्सी, क्लियोपेट्रा की मूर्ती, कम्प्यूटर, काँच कई वस्तुओं पर यह प्रयोग किया । इस बीच दूरदर्शन वालों से भी बात की और रायपुर से मैने व प्रोफेसर डी.एन.शर्मा ने आधे घंटे का एक कार्यक्रम भी तैयार किया । जिसे एक सप्ताह बाद प्रसारित किया गया । हम लोग मन्दिरों में भी गये और लोगों को समझाने की कोशिश की । हाँलाकि 2-4 दिन बाद लोग इस घटना की वास्तविकता समझ गये लेकिन उस दिन तो जैसे लोगों की आँखों पर पट्टी पड़ गई थी । आज भी आपको ऐसे लोग मिल जायेंगे जो कहेंगे “ हाँ, 14 साल पहले गणेश जी ने दूध पिया था । “हम उनसे पूछते हैं कि भाई उसके बाद उनको भूख-प्यास नहीं लगी क्या ? इस बात पर वे हें हें करने लगते हैं ।
(चित्र में वही स्कूटर और पृष्ठभूमि मे मेरा निर्माणाधीन मकान )
क्या आपके शहर में भी ऐसा कोई प्रयास हुआ था ? -आपका शरद कोकास
शनिवार, 15 अगस्त 2009
जिसके नाम से ज्योत हिली वो डायन है
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महाराष्ट्र में वरुळ के पास चांदस- वाठोडा गाँव का यह किस्सा है । गाँव के लोग उस दिन सुबह से ही नहा धोकर तैयार बैठे थे । आज उनके गाँव मे ज्योत देखने वाला मांत्रिक आने वाला था । गाँव में पता नहीं कौनसी बीमारी फैली थी कि बच्चों को बुखार आने लगा था । गाँव वालों का ऐसा विश्वास था कि उन्ही के गाँव का कोई व्यक्ति बच्चों पर जादू टोना कर रहा है । दोपहर बाद मांत्रिक का आगमन हुआ । उसने गाँव के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के घर में पहले से लिपे–पुते स्थान पर अपना आसन जमाया । एक कोने मे सबसे पहले पानी छिड़ककर उस स्थान की पूजा की । जिस बच्चे को बुखार था उसके शरीर से अंजुलि भरकर ज्वार उतार कर उस कोने में रख दी और उस से बजरंग बली की आकृति बनाई । मराठी में इसे “जोन्धळ्याचा हनुमान काढ़णे “कहते हैं । फिर एक धागा लेकर उससे एक क्रॉस बनाया और उसके बीच मे एक दिया रखा । दिये मे ज्योत जला कर वह उकड़ूँ बैठ गया और अपने दाँयें हाथ की तर्जनी और अंगूठे के बीच उस धागे का सिरा पकड़ लिया । उस दिये को उसने अनाज के बनाये हनुमान के उपर अधर में रखा और मंत्र बुदबुदाने लगा साथ ही वह गाँव के विभिन्न लोगों के नाम भी लेने लगा । अचानक हिलती हुई ज्योत एक नाम के उच्चारण करते ही स्थिर हो गई । वह गाँव की एक स्त्री का नाम था
(छवि गूगल से साभार)