आप
में से ऐसा कोई नहीं होगा जिसने कभी ज़िंदगी के बारे में न सोचा हो । कोई कहेगा
ज़िन्दगी एक पहेली है कोई कहेगा जीवन पानी का बुलबुला है ,जीवन एक उड़ती हुई पतंग है
वगैरह वगैरह । जीवन के बारे में हर कवि ने दो चार पंक्तियाँ तो लिख ही डाली हैं ।
निदा फाज़ली साहब का मशहूर शेर है ..
”जीवन
क्या है,चलता फिरता एक खिलौना है
दो आँखों में एक से हंसना एक से रोना है ।
मुझे
भी जीवन के बारे में कविताएँ बहुत अच्छी लगती हैं और जीवन को परिभाषित करने वाली
एक कविता तो मुझे बेहद पसन्द है ..” ज़िन्दगी क्या है जान जाओगे / रेत पे लाके
मछलियाँ रख दो “
मैंने भी अपनी लम्बी कविता “ पुरातत्ववेत्ता ‘ में जीवन के बारे
में लिखा है .." और जीवन भी कोई गोलगप्पा नहीं / जिसे आप पुदीने की चटनी मिले
पानी में डुबायें /और परम संतृप्तता के भाव में गप से खा जाएँ । “
जीवन की परिभाषा ढूँढने वाले कवियों को अपना काम करने दीजिये, हम अपना
काम करते हैं । जीवन कहाँ से आया यह हम
देख चुके हैं , अब हम जीवन की वैज्ञानिक परिभाषा देखते हैं । पृथ्वी पर जीवन का
आरम्भ हो चुका था लेकिन मानव जीवन के आगमन में अभी समय था । पेड़-पौधे ,कीड़े-मकोड़े,
रेंगने वाले जीव तैरने वाले जीव और उड़ने वाले जीवों का आगमन हो रहा था । यह सब
सजीव थे और इनमें जीवन के सभी लक्षण मौजूद थे । हम मनुष्य हैं इसलिए हमें तो मनुष्य के जीवन से मतलब है इसलिए मनुष्य
के जन्म का समाचार जानने से पहले हम जान लें ,आखिर यह सजीव होना क्या है ?
ध्यान रखिये जीव का अर्थ यहाँ आत्मा
नहीं है - जीवन के बारे में अगर आप
जानते हैं तो आपको यह भी पता ही होगा कि हम मनुष्य,अन्य प्राणि,कीट-पतंगे और पेड़-पौधे
सभी सजीवों की श्रेणि में आते हैं । सजीवों के कुछ विशेष लक्षण होते हैं जैसे जन्म
लेना,बढ़ना, सांस लेना, भोजन , उत्सर्जन , गति, उत्तेजना तथा संतानोपत्ति और अंतत:
मृत्यु आदि। ये सजीव अपने आसपास से अपने जीवन के लिए आवश्यक वस्तुयें ग्रहण करते
हैं । सजीवों के सभी लक्षण जीवन के फलस्वरुप ही होते हैं । सजीवों के शरीर में
जीवन के लिए आवश्यक क्रियाशीलता बनी रहती है । यह क्रियाशीलता उनके पदार्थ जीव
द्रव्य विभिन्न तत्वों तथा यौगिकों का विशिष्ट संगठन हैं। इस प्रकार जीव संगठित
द्रव्य है तथा जीवन उसकी क्रियाशीलता । जीवन के होने के लिए एक शरीर आवश्यक है।
शरीर से बाहर जीवन नहीं हो सकता । शरीर और जीवन का तालमेल ही एक सजीव को होने का
अर्थ प्रदान करता है । जीवन को बेहतर तरीके से जानने के लिए जरूरी है शरीर को
जानना ।
4. जीवन में प्रोटीन , डी.एन.ए.
और जल की महत्ता
मैं
आपको पुरानी हिन्दी फिल्मों का एक दृश्य याद दिलाना चाहता हूँ । कटघरे में एक
स्त्री खड़ी है और वह चीख चीख कर कह रही है "इस बच्चे का पिता यही है मी लॉर्ड
।" दूसरे कटघरे में एक विलेन टाइप का पुरुष चेहरे पर कुटिल मुस्कान लिए खड़ा है । उसका वकील कह रहा है "लेकिन इसका तुम्हारे पास क्या सबूत है ?"
अब फिल्मों में ऐसा दृश्य नहीं होता इसलिए कि अब समय बदल गया है और विज्ञान ने
साबित कर दिया है कि बच्चे के डी.एन.ए. से पिता का डी.एन.ए. मिलाकर यह जाना जा
सकता है कि उसका वास्तविक पिता कौन है । अब तो टी.वी.धारावाहिक देखने वाले बच्चे
भी इस बात को बखूबी जानते हैं कि बच्चे के पिता का पता लगाने के लिए दोनों के
डी.एन.ए. का मिलान आवश्यक है । अब देखते हैं कि यह डी एन ए क्या बला है ? इससे
पूर्व यह जानना ज़रूरी है कि कोशिका क्या है ।