उस विवाह समारोह मे एक कोने में मजमा जमाये बाबा यही तो कह रहे थे । भीड़ के बीच उन्होने ऐलान किया कि वे इस बात का प्रदर्शन भी कर सकते हैं । उन्होने लोगों से कहा कि वे उनके मन की बात कानों से पढ़कर जान सकते हैं । बस इसके लिये लोगों को एक चिट पर एक पंक्ति में अपने मन की बात लिख कर देना होगा । उनके सहयोगी ने लगभग 10-12 लोगों को कागज़ का एक –एक टुकड़ा दिया लोगों ने उस पर अपने मन की कोई एक बात लिखी और उसे तीन चार परतों में मोड़कर एक कटोरे में रख दिया ।
मैं यह सब तमाशा देख रहा था । मुझे पता था बाबा क्या ट्रिक करने जा रहे हैं । सो मैने भी एक कागज़ पर कुछ लिखा और कटोरे में डाल दिया ।
बाबा ने एक चिट उठाई उसे कानों के पास ले जा कर कुछ सुनने का प्रयास किया और ऐसे सर हिलाया जैसे वे जान रहे हों उस चिट में क्या लिखा है । फिर उन्होने ज़ोर से कहा “ यह किसने लिखा है ,”कर्ण पिशाचिनी देवी की जय ? “ भीड़ में से एक व्यक्ति ने हाथ उठाया और कहा “ महाराज मैने लिखा है ।“ बाबा ने कहा “ शाबास “ और उसे पास बुलाकर स्वयं चिट खोलकर देखी और उसे दिखाकर कहा “ लो देख लो ,सत्य है या नहीं ।“
फिर उन्होने दूसरी चिट उठाई उसे कान के पास ले जाकर कुछ सुनने का प्रयास किया और कहा “ यह किसने लिखा है .. “देश के सारे पढ़े-लिखे मूर्ख हैं “ एक क्षण के लिये सभीने इधर-उधर देखा ,भीड़ में से एक व्यक्ति ने कहा “ मैने लिखा है ।“ सभी लोग बाबा के कानों से पढ़ने के इस चमत्कार को ध्यान से देख रहे थे । फिर बाबा ने तीसरी पर्ची उठाई उसे कान के पास ले जाकर सुना और पूछा “ किसने लिखा है इस साल देश में बारिश नहीं हुई ? “
भीड में से एक व्यक्ति ने हाथ उठाया । फिर चौथी पर्ची सुनकर उन्होने कहा “ और यह किसने लिखा है कि सारे बाबा लोगों को ठगते हैं ।“ इतना कहकर वे मन्द-मन्द मुस्काये । फिर भीड में से एक व्यक्ति ने हाथ उठाया । पांचवी पर्ची वे कान के पास ले गये और पूछा “ यह किसने लिखा है मुझे चॉकलेट मीठी लगती है ? “इस सवाल पर एक बच्चे ने हाथ उठाया ।
मै बहुत ध्यान से देख रहा था कान से पर्ची पढ़ने के बाद वे एक नज़र उस पर डाल लेते थे और उसे अलग रख देते थे । यह चोकलेट वाली पर्ची पढ़ते समय उनकी भवें किंचित तन गई । अगली पर्ची वे फिर कानों के पास ले गये और यह क्या वे अचानक क्रोधित हो गये “ यह कौन मूर्ख है जो देवी को क्रोध दिला रहा है , जाने किस विदेशी भाषा मे लिखा है यह सब नहीं चलेगा ,देवी श्राप दे देगी । माहौल बिगड़ चुका था ,
लेकिन मैने आगे बढ़कर कहा “यह कैसी देवी है जो यह भी नहीं पढ़ सकती । लाइये मैं पढ कर बताता हूँ अपने कान से कि इसमें क्या लिखा है ।“
पता नहीं बाबा को क्या हुआ मुझे जवाब देने की बजाय वे पैर पटकते हुए वहाँ से निकल गये । लोग आपस में बात करने लगे..”बड़े पहुंचे हुए महात्मा हैं जाने किस बेवकूफ ने इन्हे नाराज़ कर दिया ।“ लोगों की बात सुनकर मैं आगे बढ़ा और मैने कहा “ रुकिये, मै बताता हूँ इस पर्ची में क्या लिखा है । “लोग वहीं ठहर गये ।
बाबा जिस पर्ची को फेंककर चले गये थे वह पर्ची वहीं पड़ी थी मैने उसे उठाया और कान के पास ले जाकर कहा “ इसमे लिखा है ज़्द्रास्तुयते एतो सबाक दस्वीदानिया ।“ लोग इधर उधर देखने लगे । मैने कहा यहाँ वहाँ मत देखिये ,यह मैने ही लिखा है । फिर मैने अगली पर्ची उठाई और उसे कान के पास ले जाकर कानों से उसे पढ़ने का अभिनय करते हुए कहा “इसमें लिखा है “इस साल बहुत तेज़ गर्मी पड़ेगी ।“ भीड़ में से एक व्यक्ति ने हाथ उठाकर कहा “ सर यह मैने लिखा है ।“ इस तरह मैने सारी पर्चियाँ कान से पढ़कर सुना दी । लोगों ने कहा “ हमे नहीं पता था सर आप को भी कर्नपिशाचिनी सिद्ध है ।
बाबा जिस पर्ची को फेंककर चले गये थे वह पर्ची वहीं पड़ी थी मैने उसे उठाया और कान के पास ले जाकर कहा “ इसमे लिखा है ज़्द्रास्तुयते एतो सबाक दस्वीदानिया ।“ लोग इधर उधर देखने लगे । मैने कहा यहाँ वहाँ मत देखिये ,यह मैने ही लिखा है । फिर मैने अगली पर्ची उठाई और उसे कान के पास ले जाकर कानों से उसे पढ़ने का अभिनय करते हुए कहा “इसमें लिखा है “इस साल बहुत तेज़ गर्मी पड़ेगी ।“ भीड़ में से एक व्यक्ति ने हाथ उठाकर कहा “ सर यह मैने लिखा है ।“ इस तरह मैने सारी पर्चियाँ कान से पढ़कर सुना दी । लोगों ने कहा “ हमे नहीं पता था सर आप को भी कर्नपिशाचिनी सिद्ध है ।
मैने कहा नहीं भाइयों ऐसा कुछ नहीं है । यह एक ट्रिक है । आपने देखा होगा बाबा ने जब पहली पर्ची उठाई और कहा ‘कर्णपिशाचिनी की जय’ किसने लिखा है तो जिस व्यक्ति ने हाथ उठाया था वह बाबा का सहयोगी था और उसे पहले से यह इंस्ट्रक्शन थे कि वह इस बात पर हाथ उठाये । इसके बाद बाबा ने वह पर्ची खोलकर खुद पढ़ी और उसे भी दिखाई ,दरअसल उस पर्ची में लिखा था “देश के सारे पढ़े-लिखे मूर्ख हैं ।‘ इसके बाद बाबा ने अगली पर्ची उठाई ,उसे कान से पढा और कहा, इसमे लिखा है ‘देश के सारे पढ़े-लिखे मूर्ख हैं ।‘ और उसे खोलकर मन मे पढ़ा । दरअसल उस पर्ची में लिखा था “इस साल देश में बारिश नहीं हुई ‘ इस मैटर को इसके बाद आनेवाले के लिये उन्हे कहना था ।
इस तरह वे पर्ची खोलकर पहले ही पढ लेते थे और उस बात को ध्यान में रखकर ,अगले से जोड़कर कह देते थे । लोग इस बात के भ्रम मे रहते थे कि वे कान से पढ रहे हैं । बस इस खेल मे पहला व्यक्ति अपना होना चाहिये जो आपकी बात पर हाँ कहे ,जैसे इस खेल में ‘कर्णपिशाचिनी की जय’ लिखी हुई कोई पर्ची ही नहीं थी । “अच्छा यह बात है “ लोगों को यह ट्रिक समझ में आ गई थी ।“ तो सर इसे तो हम भी कर सकते हैं ? “
मैने कहा “बिलकुल कीजिये लेकिन कर्णपिशाचिनी या किसी भी देवी का नाम लेकर मत कीजिये ऐसी कोई सिद्धी या चमत्कारिक शक्ति नही होती ।“
“लेकिन सर आपने अपनी पर्ची में क्या लिखा था ?” एक व्यक्ति ने आखिर पूछ ही लिया “ मैने कहा उसमें रशियन लिपि में लिखा था “एतो सबाक दस्वीदानिया,ज़्द्रास्तुयते “ । यानि यह श्वान है ..मै चलता हूँ ,नमस्ते । लोग हँसने लगे ,,अच्छा हुआ बाबा को रशियन नहीं आती थी वरना ... ।
चलिये आप लोगों को भी यह ट्रिक समझ में आ गई हो तो आप लोग भी शादी-ब्याह ,पार्टी-शार्टी, पिकनिक –विकनिक में इस ट्रिक को कीजिये और लोगों का मनोरंजन कीजिये । हाँ इतना ज़रूर लोगों से कहें कि पर्ची में सिर्फ और सिर्फ हिन्दी में लिखें । और कान के बारे में यही कि अफवाहों पर कान न दें , ज़्यादा कानाफूसी न करें कर्णप्रिय बातें करें साथ ही कान में नुकीली वस्तु न डालें । - आपके कान ताउम्र सलामत रहें इस कामना के साथ ..............आपका शरद कोकास
छवि गूगल से साभार
इस ट्रिक का उपयोग हमलोग भी बचपन में किया करते थे .. बच्चे अपने पसंदीदा फूलों की लिस्ट बनाकर हमें देते .. हमलोग पहली पर्ची अपनी बताते .. उसके बाद बाकी को बताना बहुत आसान होता था .. समाज में जागरूकता फैलाने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंहम ताश के पत्ते बताया करते थे इसी ट्रिक से. :) हा हा! हम भी कम सिद्ध नहीं हैं..
जवाब देंहटाएंरहस्य का पर्दाफाश करने के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंप्रयोगधर्मी ही इसे सही तरीके से कर सकेगा ।
शरद जी,
जवाब देंहटाएंअपने इस बाबा को अगला ब्लॉगर्स सम्मेलन जहां भी हो लाने की
कोशिश ज़रूर करिएगा...ऐसी-ऐसी पोस्ट सुनाएंगे, बाबा कानों में परमानेंट रूई फिक्स करा लेगा...
दीवाली आपके और पूरे परिवार के लिेए मंगलमय हो...
जय हिंद...
वाह !!!!बहुत बहुत खूब लेकिन एक ट्रिक मिल गयी मेरा काम बन गया छोडो ये आर जेइन्ग अब तो एक चेला चाहिए " कर्ण पिशाचिनी की >>>>>>> कोई जय तो बोलो भाई!!!!
जवाब देंहटाएंशरद जी ये बाबा या इनका कोई चेला हमें भी बचपन में एक बार टकराया था ..मगर खेल खेल में...हा.....हा....हा...जो भी कहिये खेल दिलचस्प लगा ..हां खेल का नाम जरूर पेटेंट कराने लायक है
जवाब देंहटाएं" sharadsir , aapki tarif ki jaaye utani kam hai .aapki ye post bahut hi rochak rahi behad hi kimati jankari ke jariye diya gaya aapka message " AISE DHONGI BABA SE SAVDHAN RAHO " behad hi accha laga aapki post padhker .."
जवाब देंहटाएं" aapke is samaj jagruti abhiyaan me hum bhi aapke saath hai "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
कर्णपिशाचनी देवी की जय
जवाब देंहटाएंहा-हा
बहुत बढिया
प्रणाम स्वीकार करें
.अरे वाह, एक जादू तो मैंने भी..सीख लिया,,,जागरूकता अभियान में एक और कड़ी...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंइस शमा को जलाए रखें।
----------
डिस्कस लगाएं, सुरक्षित कमेंट पाएँ
बहुत सुंदर, चलिये अगली बार हम भी देखेगे कि इस मै कितना मजा आता है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
तास के पत्तों वाला ट्रिक अपना कर लोगों को बेवकुफ बना रहा था। इन बाबाओं से भगवान बचाए।
जवाब देंहटाएंशरद जी! आपको दिवाली की शुभकामनायें।
:-)
जवाब देंहटाएं:-) (-:
हटाएंnice u r right
जवाब देंहटाएंbahut sahi jagah par nishana lagaya aapne bahut bahut badhai
जवाब देंहटाएंIs tarah se hum dhongi babao se awashya savdhan ho sakenge dhanyavaad
aapko diwali ki lakh lakh badhai
अच्छा लगा पढ़कर !
जवाब देंहटाएंमेरे पास इस तरह की सैकडों चतुराई भरी 'ट्रिक' हैं,
जिसे अपनाकर मै सबको चमत्कृत कर देता हूँ
ये जितने भी तांत्रिक और ज्योतिषी होते हैं वो सब के सब इसी तरह की कोई ट्रिक या मनोविज्ञान या अटकल विज्ञान का सहारा लेते हैं !
बहुत रोचक वाकया है.पहले कभी देखा सुना नहीं.
जवाब देंहटाएंकर्णापिशाचिमी देवी की जै हो शरद बाबा जी की जै हो। आप धन्य हो बाबा जी । आपको दीपावली की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंबाबा वैज्ञानिक सोच की जय !
ये खेल पसंद आया शरद भाई.
achcha laga padhe kar........
जवाब देंहटाएंकर्णपिशाचनी जैसी कोई सिद्धि होती जरुर होगी . मेने आजमाया भी है एक को . मथुरा के पास परखम गाँव में ऐसे कुछ लोग है जो नाम पता कारण आदि बिना पूछे बता देते है . इसे जादू भी कह सकते है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ट्रिक है जी!
जवाब देंहटाएंधनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
आजकल कला, साहित्य, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और राजनीति में भी यही खेल चल रहा है।
जवाब देंहटाएंप्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
@ धीरू सिंह जी ,चमत्कार भी एक तरह से जादू ही होते हैं । फर्क यह है कि जादूगर उसे कला के नाम पर प्रदर्शित करते हैं और ढोंगी बाबा उसे चमत्कार या सिद्धी के नाम पर । जहाँ भी ऐसे डेरे होते है वहाँ उन बाबाओं के जासूस होते है जो आप के पता लगे बिना ही आपकी जानकारी उन तक पहुंचा देते हैं । हम फिर इसे चमत्कार मानने लगते हैं ।जैसे मै आपकी प्रोफाइल और आपकी पोस्ट का गहन अध्ययन कर लूँ तो ऐसी बातें आपके बारे मे बता दूंगा कि आप कह उठेंगे " अरे इन्हे कैसे पता ? " ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद और दीपावली की आप सभी को व आपके परिवार जनों को हार्दिक शुभकामनायें ।
शरद कोकास
श्रीमती लता कोकास व कोपल
शरद जी, आप को तो वाकई कर्णपिशाचिनी सिद्ध है। सिद्ध तो और भी बहुत कुछ होगा। कभी उन के बारे में भी बताइएगा। आज तो कर्णपिशाचिनी की बदौलत आप छा गए।
जवाब देंहटाएंहाँ ऐसी बहुत सी ट्रिकें हमें भी याद हैं।
बहुत ख़ूब............
जवाब देंहटाएंकान नहीं, आँखें खोल दी आपने.........
धन्यवाद !
ताश के बहुत से छोटे-मोटे जादू के साथ हम भी बचपन में यह जादू किया करते थे. बाद में दफ्तर में एक सरदारजी आये. प्रमाणपत्रों की पूरी एक फाइल लेकर. कर्ण-पिशाचिनी वाले किस्से की तरह ही बताने लगे. प्रमाणपत्रों की फाइल से यह तय था की की उन्होंने देशभर में बहुत से पढ़े-लिखे लोगों को चूना लगाया था.
जवाब देंहटाएंक्या कहें ...किसी को कर्ण पिशाचिनी सिद्ध है,किसी पर मैय्या सवार हो जाती है ,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,आज मैं भी घर जाकर बच्चो को उल्लू बनाने की कोशिश्स करूंगा ! दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंसाहब जी,
जवाब देंहटाएंकर्णपिशाचिनी की सिद्धि तो मुझे भी हो गयी है.
अच्छा तरीका है
जवाब देंहटाएंदीपों सी जगमग जिन्दगी रहे
सुख की बयार चहुं मुखी बहे
श्याम सखा श्याम
बहुत बढिया पोस्ट!
जवाब देंहटाएंबचपन में ऐसे कई लोग मिलते थे, जो आपको बिना बताये भीड से बुला भी लेते थे, और कागज़ का लिखा पढ कर बता भी देते थे. मगर यह जादु नहीं था, और चमत्कार भी नहीं.
मगर इस चीज़ को भगवान से या आध्यात्म से जोडने का कोई प्रयोजन नहीं है. आध्यात्म में होने वाले चमत्कार नितांत निजी होते हैं.
अंधविश्वास के विरुद्ध आपकी ये मुहिम सफ़ल हो.
आपको दिपावली की शुभकामनायें.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंएक और जादू इस तरह के बाबा करते हैं, हवा से प्रसाद बनाने का. अपने चेलों के जरिये प्रसाद का मीनू तय कर देते हैं यथा इलाइची, किशमिश या लोंग.... मुझे जब एक ऐसे बाबा मिले तो मैंने प्रसाद में काशीफल माँगा और उनका वही हुआ जो आपके बाबाजी का हुआ.
जवाब देंहटाएं@ पंकज -धन्यवाद- पंकज जी , बाबा बेचारे अपने आप को अपडेट कहाँ कर पाते हैं । एक बाबा ऐसे ही सबको गुलाब,खश,केवड़ा,चमेली की खुशबू सुंघाया करते थे , मैने उनसे लैवेण्डर की खुशबू मांगी तो बगले झाँकने लगे -शरद
जवाब देंहटाएंSingamaraja reading your blog
जवाब देंहटाएंअच्छा हुआ आपने समय रहते ही हमें इसके बारे में बता दिया अब अगर किसी बाबा ने हम पर ये ट्रिक अपनाई तो हम उल्टा उसे ये ट्रिक समझा देंगे, और साथ ही शादी- ब्याह में बच्चों के साथ बैठकर इस ट्रिक के साथ बच्चों का मनोरंजन भी किया जा सकता हैl
जवाब देंहटाएंआप की पोस्ट पढ कर सभी की तरह बधाई देने को मन करता है कि आप अच्छा काम कर रहे हैं समाज को जागरूक करने का।.........
जवाब देंहटाएंmujhe bhi siddhi prapt ho gayi.. dhanyawad..
जवाब देंहटाएंek accha lekh
जवाब देंहटाएंअरे वाह शरद जी ये तो बहुत ही बढ़िया पोस्ट रहा! अच्छी जानकारी प्राप्त हुई!
जवाब देंहटाएंइतने सारे प्रयत्नों, शिक्षा, जागरूकता के बावजूद हो क्या रहा है? बाबा-सन्यासी, सिद्ध, तांत्रिक, मान्त्रिक, ओझा-सोखा, श्री श्री १०८, श्री १००८......इनका प्रभाव तो लगातार बढ़ता ही जा रहा है. आप गुजरात वाले को नहीं मानते तो नास्तिक हैं. बंगाल वाले को न मानो तो नास्तिक. मदारियों ने ट्रिक्स दिखाकर खुद बाबा-महात्मा-योगी-स्वामी और जाने क्या क्या स्थापित कर लिया है. आप ने जो यह 'चमत्कार' दिखाया, कुछ की तो खुली होंगी. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंवाह वाह कर्णपिशाच बाबा । बचपन में हमारे स्कूल में एक जादू का खेल देखा था जब जादूगर ने हेडमास्टर सहब पर कोयले का पानी फेका और वह गुलाब के फूल बनकर गिरा । ऐसे ही इन लोगों की पोल खोलते रहिये ।
जवाब देंहटाएंइस शमा को जलाए रखें।
जवाब देंहटाएं------------------
परा मनोविज्ञान- यानि की अलौकिक बातों का विज्ञान।
ओबामा जी, 75 अरब डालर नहीं, सिर्फ 70 डॉलर में लादेन से निपटिए।
NICE ONE!!!!!!!
जवाब देंहटाएंThank you for visiting to my blog
जवाब देंहटाएंशरद भाई
जवाब देंहटाएंआपकी गंभीर टिप्पणी के लिया शुक्रिया.......आपको कुछ हायकू जैसे लगे कुछ सपाट बयानी के कारण नहीं लगे, मैंने शुरुआत में ही कहा था की स्वाद कसैला हो सकता है......फिर आपकी टिपण्णी सर माथे.....बहुत बहुत धन्यवाद ! टिपण्णी देते रहिये आप जैसे गंभीर ब्लोगेर्स की टिपण्णी सही राह दिखाती हैं....
padhar bahut maja aaya.....sach hai dekha jaye to in babaon ke chakkar men padhe-likhe jyada fanste hain...humne to aisi koi trik kabhi ki nahi....leki kai logon se aisi kai baaten suni jaroor hain...aapka bahut-bahut dhanyawaad ki aapne samaaj ko andhwishwaas se door karne ka bida uthhaya hai....mujhe kabhi bhi aisi koi ghatna dekhne ko mili to main aapke blog ke madhyam se use prakaash me jaroor laungi....
जवाब देंहटाएंbadiya trick hai ji
जवाब देंहटाएंएक बार फिर आपने हमें बचपन में पहुँचा दिए. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहर एक बाबाबाजी सिर्फ धूर्तता ही है .
जवाब देंहटाएंshukria,
जवाब देंहटाएंvery very intresting post.
suraj
जवाब देंहटाएंaap ko ye tric kiyse samaz me aai ? very intresting tric .& thank you for this?
ऐसा नहीं है कि ईश्वर नहीं है या कोई शक्तियां नहीं हैं‚ लेकिन ढोंगी लोंग कपट करके लोगों को बेवकूफ बनाते हैं। इन लोगों ने ही ईश्वर और उसकी शक्तियों‚ देवी देवताओं को अंधविश्वास के घेरे में लाकर खडा कर दिया है। अध्यात्मक और मंत्र शक्ति एक विज्ञान है। ऐसी सिद्धियां भी और शक्तियां भी होती हैं‚ जो असम्भव को सम्भव कर सकती हैं। लेकिन जो वास्तविक संत होते हैं‚ न तो वे इससे धन कमाते हैं‚ न लोगों को बेवकूफ बनाते हैं और न ही इनका प्रदर्शन अपने स्वार्थ के लिए करते हैं। वैसे साधारण व्यक्ति कोई भी मंत्र सिद्ध नहीं हो सकता है और न ही अलौलिक शकित्यं ही प्राप्त होती हैं‚ क्योंकि यह बहुत ही कठिन होता है और इसमें यम नियमादि नियमों‚ आचरण आदि का पालन बहुत कडाई से करना पडत्ता है। अतः ईश्वरीय शक्ति को नकारना आप लोगों की महान मूर्खता सिद्ध होती है। जैसे एक बूढा और अनपढ व्यक्ति विज्ञान के नियमों को नहीं समझता और अपनी पुरानी बाते हीं गाते रहता है। अध्यात्म सागर से भी कहरा विज्ञान से भी कठिन विषयवस्तु है। पाखण्डी लोग मात्र इसके सारे ठगी करके अपना उदरपूर्ति करते हैं और केवल अंधविश्वासी इस पर यकीन करते हैं। ईश्वर को मानने वाले ऐसे तुच्छ चमत्कारों को अनदेखा कर देते हैं। क्योंकि ʺʺजाके हृदय दम्भ् नहीं माया‚ ताके हृदय बसहिं रघुराया‘‘ लेकिन इन पाखण्डियों के मन में अंहकार‚ लोभ‚ दम्भ‚ और कपट भरा होता है। इसलिये इनसे सावधान रहना चाहिए और ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए।
जवाब देंहटाएंऐसा नहीं है कि ईश्वर नहीं है या कोई शक्तियां नहीं हैं‚ लेकिन ढोंगी लोंग कपट करके लोगों को बेवकूफ बनाते हैं। इन लोगों ने ही ईश्वर और उसकी शक्तियों‚ देवी देवताओं को अंधविश्वास के घेरे में लाकर खडा कर दिया है। अध्यात्मक और मंत्र शक्ति एक विज्ञान है। ऐसी सिद्धियां भी और शक्तियां भी होती हैं‚ जो असम्भव को सम्भव कर सकती हैं। लेकिन जो वास्तविक संत होते हैं‚ न तो वे इससे धन कमाते हैं‚ न लोगों को बेवकूफ बनाते हैं और न ही इनका प्रदर्शन अपने स्वार्थ के लिए करते हैं। वैसे साधारण व्यक्ति कोई भी मंत्र सिद्ध नहीं हो सकता है और न ही अलौलिक शकित्यं ही प्राप्त होती हैं‚ क्योंकि यह बहुत ही कठिन होता है और इसमें यम नियमादि नियमों‚ आचरण आदि का पालन बहुत कडाई से करना पडत्ता है। अतः ईश्वरीय शक्ति को नकारना आप लोगों की महान मूर्खता सिद्ध होती है। जैसे एक बूढा और अनपढ व्यक्ति विज्ञान के नियमों को नहीं समझता और अपनी पुरानी बाते हीं गाते रहता है। अध्यात्म सागर से भी कहरा विज्ञान से भी कठिन विषयवस्तु है। पाखण्डी लोग मात्र इसके सारे ठगी करके अपना उदरपूर्ति करते हैं और केवल अंधविश्वासी इस पर यकीन करते हैं। ईश्वर को मानने वाले ऐसे तुच्छ चमत्कारों को अनदेखा कर देते हैं। क्योंकि ʺʺजाके हृदय दम्भ् नहीं माया‚ ताके हृदय बसहिं रघुराया‘‘ लेकिन इन पाखण्डियों के मन में अंहकार‚ लोभ‚ दम्भ‚ और कपट भरा होता है। इसलिये इनसे सावधान रहना चाहिए और ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए।
जवाब देंहटाएंऐसा नहीं है कि ईश्वर नहीं है या कोई शक्तियां नहीं हैं‚ लेकिन ढोंगी लोंग कपट करके लोगों को बेवकूफ बनाते हैं। इन लोगों ने ही ईश्वर और उसकी शक्तियों‚ देवी देवताओं को अंधविश्वास के घेरे में लाकर खडा कर दिया है। अध्यात्मक और मंत्र शक्ति एक विज्ञान है। ऐसी सिद्धियां भी और शक्तियां भी होती हैं‚ जो असम्भव को सम्भव कर सकती हैं। लेकिन जो वास्तविक संत होते हैं‚ न तो वे इससे धन कमाते हैं‚ न लोगों को बेवकूफ बनाते हैं और न ही इनका प्रदर्शन अपने स्वार्थ के लिए करते हैं। वैसे साधारण व्यक्ति कोई भी मंत्र सिद्ध नहीं हो सकता है और न ही अलौलिक शकित्यं ही प्राप्त होती हैं‚ क्योंकि यह बहुत ही कठिन होता है और इसमें यम नियमादि नियमों‚ आचरण आदि का पालन बहुत कडाई से करना पडत्ता है। अतः ईश्वरीय शक्ति को नकारना आप लोगों की महान मूर्खता सिद्ध होती है। जैसे एक बूढा और अनपढ व्यक्ति विज्ञान के नियमों को नहीं समझता और अपनी पुरानी बाते हीं गाते रहता है। अध्यात्म सागर से भी कहरा विज्ञान से भी कठिन विषयवस्तु है। पाखण्डी लोग मात्र इसके सारे ठगी करके अपना उदरपूर्ति करते हैं और केवल अंधविश्वासी इस पर यकीन करते हैं। ईश्वर को मानने वाले ऐसे तुच्छ चमत्कारों को अनदेखा कर देते हैं। क्योंकि ʺʺजाके हृदय दम्भ् नहीं माया‚ ताके हृदय बसहिं रघुराया‘‘ लेकिन इन पाखण्डियों के मन में अंहकार‚ लोभ‚ दम्भ‚ और कपट भरा होता है। इसलिये इनसे सावधान रहना चाहिए और ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए।
जवाब देंहटाएंSir Nice Post Thanks for sharing.
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