मस्तिष्क की सत्ता लेखमाला - मस्तिष्क के क्रियाकलाप - हम किसी को कैसे पहचानते हैं -
3 : प्रतिमा का शब्द में रुपांतरण : (Naming an object ) शब्द के छवि में रूपांतरण के ठीक विपरीत है छवि या प्रतिमा का शब्द में रूपांतरण । मस्तिष्क की इस कार्यप्रणाली द्वारा जैसे ही हम किसी वस्तु को या व्यक्ति को देखते हैं हमें तुरंत उसका नाम याद आ जाता है । दरअसल जब पहली बार हमें उस वस्तु या व्यक्ति का नाम बताया जाता है हमारे मस्तिष्क उसे रिकॉर्ड कर लेता है तथा दोबारा देखने पर हम तुरंत उसका नाम बता देते हैं । बचपन में हमें बताया जाता है बेटा यह चिड़िया है ,यह पेड़ है , यह आदमी है , यह औरत है , यह रोटी है , यह पानी है , यह मन्दिर है , यह मस्जिद है । यहाँ तक कि क कमल का,ख खरगोश का वगैरह भी इसी प्रक्रिया के फलस्वरूप हम याद करते हैं । रिश्तों की पहचान भी हमें इसी तरह कराई जाती है । माँ जैसी दिखाई देने वाली एक स्त्री जिसकी गोद में हम बड़े होते है हमारी माँ कहलाती है और फिर यह माँ हमारे पिता से हमारा परिचय करवाती है । लेकिन यह प्रक्रिया स्थायी नहीं होती । जीवन में कई बार ऐसा होता है कि हमें बार बार याद करने पर भी किसी चीज का नाम याद नहीं आता यद्यपि वह नाम हमारी मेमोरी में रहता है । ऐसा ही लोगों के साथ भी होता है । अक्सर ऐसा होता है कि किसी समारोह में ,कहीं बाज़ार में हमारा कोई पुराना परिचित अचानक सामने आकर खड़ा हो जाता है और कहता है ..क्यों पहचाना ? “ हम शर्म के मारे कह तो देते हैं कि , हाँ पहचान लिया लेकिन याद नहीं कर पाते कि वह कौन है ।
ऐसी स्थिति में मस्तिष्क तेज़ी से अपना यह काम शुरु करता है । मस्तिष्क की सर्च प्रणाली प्रारम्भ हो जाती है और यह तेज़ी से अपनी फाइलों में उस छवि का नाम ढूँढता है । और फिर अचानक किसी वस्तु को देखकर या अन्य किसी सन्दर्भ से हमें उसका नाम याद आ जाता है । मान लीजिये आपको नाम याद ही नहीं आया तो आप घर जाकर पत्नी से या किसी मित्र से पूछते है और उसके यह पूछने पर कि वह कैसा दिखता है आप कहते है .. वह कॉलेज वाले शर्मा जी जैसा दिखता है फिर तुरंत आपकी पत्नी या मित्र कहता है अच्छा तो वह पाण्डे जी होंगे .. और आप को उस व्यक्ति का नाम याद आ जाता है । यह बात अलग है कि इसके बाद आप पत्नी से पूछते है “ लेकिन तुम उन्हे कैसे जानती हो ? “ और पत्नी जब तक यह नही कहती कि “ वो मेरे मायके से है और मैं उन्हे भाई मानती हूँ “ , तब तक आपको चैन नही आता ।
ऐसे ही किसी अनदेखी वस्तु के बारे में भी हम कहते है कि वह अनदेखी चीज भी इसके या उसके जैसी दिखती है और आप उससे मिलती जुलती किसी वस्तु के बारे में बताते हैं । मान लीजिये आपने जंगल में भेड़िया पहली बार देखा और आप को उस जानवर का नाम नही पता तो आप कहेंगे कि “ एक जानवर मैने ऐसा देखा है जो कुत्ते जैसा दिखता है । “ इसलिये कि कुत्ता आपका जाना पहचाना जानवर है । इसीलिये हमें शेर ,बाघ , सिंह ,चीता ,तेन्दुआ या लकड़बग्घा एक जैसे दिखाई देते हैं । इसी तरह हमें सारे गोरे विदेशी एक जैसे दिखते हैं । वह अमेरिकी हो या ब्रिटिश हम उसे अंग्रेज़ ही कहते हैं । सारे अश्वेत नागरिकों को नीग्रो कहने का प्रचलन अभी अभी तक था । इसी तरह चीनी और जापानी भी हमें एक जैसे लगते हैं । यहाँ तक कि अपने देश में भी अनेक उत्तर भारतीय हर दक्षिण भारतीय की विविध प्रांतों के आधार पर पहचान न कर पाने के कारण सभी को मद्रासी कहते हैं । लेकिन मस्तिष्क की पहचान करने की क्षमता के कारण अभ्यास करने पर हम उनमें भेद कर सकते हैं । मस्तिष्क की यह कार्यप्रणाली जीवन भर बखूबी अपना काम करती है । हम नित नई चीज़ें देखते है और उनके साथ अपनी पहचान स्थापित करते हैं । हम देखी हुई हर वस्तु को एक नाम देते हैं , यह नाम हमारी अपनी भाषा में होता है । इस तरह नये बिम्बों के लिये नये शब्द बनते हैं । इसी प्रकार हम अपनी अन्य इन्द्रियों के माध्यम से भी जो ज्ञान प्राप्त करते हैं उन्हे इस कार्यप्रणाली द्वारा नाम देते हैं ।
उपसर्ग मे प्रस्तुत है मस्तिष्क की इसी कार्यक्षमता को आधार बनाकर लिखी गई मेरी यह कविता ---
मस्तिष्क के क्रियाकलाप –चार – पहचानना
मनुष्य का नाम मनुष्य नहीं था जब
मस्तिष्क का नाम भी मस्तिष्क नहीं था
नदी पेड़ चिड़िया इसी दुनिया में थे और
नदी पेड़ चिड़िया नहीं कहलाते थे
गूंगे के ख्वाब की तरह बखानता था मनुष्य
वह सब कुछ जो दृश्यमान था
अनाम चित्रों से भरी थी मस्तिष्क की कलावीथिका
और मनुष्य उनक लिये शीर्षक तलाश रहा था
हवाओं ने उसे कुछ नाम सुझाये
धूप ने छाया में बोले कुछ शब्द
बारिश की बून्दों ने कुछ गीत गुनगुनाये
इस तरह नामकरण का सिलसिला शुरू हुआ
पहाड़ का नाम उसने पहाड़ रखा
और आसमान का आसमान
दिखाई देने वाली हर चीज़ के साथ
एक नाम जोड़कर उसने पहचान कायम की
और जिसे देख नहीं पाया
उसका नाम उसने ईश्वर रखा
यहीं से शुरू हुई रिश्तों के साथ उसकी पहचान
स्त्री सी दिखने वाली एक स्त्री उसकी माँ कहलाई
और एक पुरुष को पहचाना उसने पिता के रूप में
जानवरों में भेद करते हुए उसने
उन्हे बाँटा हिंसक और अहिंसक की श्रेणियों में
मस्तिष्क की इस कार्यप्रणाली को फिर उसने
मनुष्यों पर भी लागू किया
हर दाढ़ी वाला उसे मुसलमान नज़र आया
चोटी जनेउवाला हिन्दू और पगड़ीधारी सिख
हर अश्वेत की पहचान उसने की अफ्रीकी के रूप में
सूटधारी को इसाई और गोरे को विदेशी जाना
युद्ध दंगों और चुनावों से इतर समय में ही
हमने मनुष्य के रूप में मनुष्य पहचाना ।
शरद कोकास
( एक चित्र मेरे ममेरे भाई ,डॉ.आनंद शर्मा ,उनकी अमेरिकन पत्नी लुईस रोज़ व बिटिया लोरी लाई का , अन्य सभी चित्र गूगल से साभार )