मस्तिष्क की कार्यप्रणाली -7
प्लानिंग काम्प्लेक्स : मस्तिष्क की कार्य प्रणाली का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है योजना बनाना । विचारों का उन्नयन भी यहीं से होता है । वैचारिक क्षमता यहाँ विद्यमान रहती है । हमें ज्ञात है कि हमारा भोजन करने का समय नौ बजे है फलस्वरूप हम आठ बजे से ही भोजन पकाने की योजना बनाने लगते हैं । यदि हमने कुछ लोगों को खाने पर बुलाया है तो एक दिन पूर्व ही हम उसकी योजना बना लेते हैं । योजना बना कर कार्य करने से सुविधा रहती है और समय पर व्यर्थ की भाग दौड़ से हम बच जाते हैं । जीवन के अनेक महत्वपूर्ण कार्य शादी ब्याह , जन्मोत्सव आदि हम योजना बनाकर ही करते हैं । संतान की उत्पत्ति का कार्य भी आजकल योजना बनाकर ही किया जाता है ।
इसी प्रकार तर्क क्षमता भी मस्तिष्क के इसी हिस्से में मौजूद रहती है । जैसे मैं आप से कहूँ कि वहाँ धुआँ है तो तुरंत आपके मस्तिष्क में यह विचार जन्म लेगा कि फिर वहाँ आग भी होगी । यद्यपि विज्ञान के ऐसे अनेक प्रयोग हैं जहाँ धुएँ के लिये आग की ज़रूरत नहीं है । जिस प्रकार यहाँ से तर्क किये जाते हैं उसी प्रकार कुतर्क भी किये जाते हैं । कुतर्क का अर्थ यह होता है जिसका कोई प्रमाण नहीं होता । जैसे कि हम कहें गोरे आदमी की हड्डियाँ बनिस्बत काले के ज़्यादा सफेद होती होंगी ।
विचार करना यह मस्तिष्क का महत्वपूर्ण कार्य है । हम कुछ भी काम कर रहे हों सोच विचार करते रहते हैं । मस्तिष्क की यह विचार प्रणाली ही है जिसकी वज़ह से सब कुछ सम्भव होता है । मुक्तिबोध की प्रसिद्ध कविता है “ विचार आते है लिखते समय नहीं / पीठ पर बोझा ढोते हुए / कपडे पछींटते हुए “ हाँलाकि लिखते समय भी विचार तो आते ही हैं ,कुछ लोगों के साथ ऐसा नहीं होता फलस्वरूप वे बिना विचार के ही लिखते हैं । विचार आपको कहीं भी आ सकते हैं । अगर आप दफ्तर में हैं या किसी फंक्शन में हैं और बैठे बैठे ऊब रहे हैं तो मस्तिष्क की इसी जगह से विचार करते हैं कि घर कब जायेगें । इस तरह वैचारिक क्षमता यहाँ विद्यमान होती है ।
उपसर्ग में प्रस्तुत है मुक्तिबोध की कविता - विचार आते हैं
विचार आते हैं -
लिखते समय नहीं
बोझ ढोते वक़्त पीठ पर
सिर पर उठाते समय भार
परिश्रम करते समय
चांद उगता है व
पानी में झलमिलाने लगता है
ह्रदय के पानी में
विचार आते हैं
लिखते समय नहीं
पत्थर ढोते वक़्त
पीठ पर उठाते वक़्त बोझ
साँप मारते समय पिछवाड़े
बच्चों की नेकर फचीटते वक़्त !!
पत्थर पहाड़ बन जाते हैं
नक़्शे बनते हैं भौगोलिक
पीठ कच्छप बन जाते हैं
समय पृथ्वी बन जाता है ...
ये भी ख़ूब....लेकिन हम तो बहुधा दिल से भी सोचते हैं...भैया, कभी दिल की भी कार्यप्रणाली.....।
जवाब देंहटाएंरोचक पोस्ट !
@ भाई उत्तम हम लोग मुक्तिबोध के वंशज है .. हमे दिमाग से ही सोचना है ।
जवाब देंहटाएंमुक्तिवोध और उनके वंशज को नमन सारगर्भित और सुंदर रचना , शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसच कहते हैं, जब भी लिखने बैठिये, पता नहीं प्रवाह कहाँ विलीन हो जाता है?
जवाब देंहटाएंtruly said...nice analysis.
जवाब देंहटाएंयह लेख श्रृंखला बहुत बढिया चल रही है, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंप्रणाम स्वीकार करें
#प्रवीण , इसलिये जैसे ही विचार आये उसे तुरंत कहीं न कहीं दर्ज कर लेना चाहिये , किसी कागज़ पर या डायरी में बाद में उस पर काम किया जा सकता है ।
जवाब देंहटाएंउत्तम जानकारी। आभार।
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अंधविश्वासी तथा मूर्ख में फर्क।
मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।
नवरात्रि में नौ दिन नियम-निष्ठा से पूजा-अर्चना भी काम ना आ सकी।
जवाब देंहटाएंसुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
जवाब देंहटाएंयह हमारी आकाशगंगा है,
सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
उनमें से एक है पृथ्वी,
जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
-डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...
जय हिंद...
यह विचार आते कहाँ से हैं? हर एक को अलग अलग क्यूँ आते हैं?... छोटे से डीवीडी में पूरी फिल्म कैसे आ जाती है? क्या वैसे ही एक बिंदु में अनंत समां सकता है? ...और क्या आठ बिन्दुओं में श्रृष्टि का सम्पूर्ण इतिहास समा सकता है?...
जवाब देंहटाएंवाह!
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