दुनिया का प्रथम वैज्ञानिक कौन था ?
लाखों वर्ष पूर्व जिस मनुष्य ने पत्थर उछाल कर देखा था और कहा था.. ‘ अरे यह तो एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता है ‘ वह उस युग का वैज्ञानिक था । पहली बार जिस ने अग्नि का प्रयोग किया ,पहली बार जिस ने पत्थरों से औज़ार बनाये, पहली बार जिसने छाल को वस्त्र की तरह इस्तेमाल किया,पहली बार जिसने खाने योग्य और न खाने योग्य वस्तुओं की पहचान की,पहली बार जिसने पंछियों की तरह उड़ने की कोशिश की और इस कोशिश में पहाड़ से कूद कर मर गया,या जो मछली की तरह तैरने की कोशिश में पानी में डूब गया ,ऐसे सभी मनुष्य इस मनुष्य जाति के प्रथम वैज्ञानिक थे । आज जो मनुष्य रॉकेट को अंतरिक्ष में भेज कर नये नये ग्रहों पर पहुंच रहा है और वहाँ बस्ती बसाने के स्वप्न देख रहा है वह आज का वैज्ञानिक है । इसी तरह खानपान व अन्य आदतों के बारे में भी कहा जा सकता है । वह मनुष्य जिसने पहला ज़हरीला फल खाया और मरकर दुनिया को यह बता गया कि इसके खाने से मौत हो जाती है क्या दुनिया का पहला वैज्ञानिक डायटीशियन नहीं था ?
मानव जीवन की यह सारी क्रांति पीढ़ी दर पीढ़ी उसके मस्तिष्क में दर्ज़ होती रही है । अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिये वह इसकी क्षमता का उपयोग कर नित नये आविष्कार करता रहा । आज दस-बारह साल का एक बच्चा मनुष्य द्वारा किये जाने वाले अधिकांश काम कर लेता है जिन्हे सीखने में हमारे पूर्वजों को हज़ारों साल लगे । वह निरंतर प्रयोग करता गया और पिछले अनुभव के आधार पर पुराने को छोड़ नये को अपनाता गया । लेकिन धीरे धीरे यह मनुष्य दो भागों में बँट गया कुछ लोग तो अपने पुरखों की तरह नवीनता की तलाश में जुट गये और कुछ ने पहले की उपलाब्धियों को अंतिम मान संतोष कर लिया ।
आज का मनुष्य इन्ही दोनों का घालमेल बनकर रह गया है ।अफसोस यह है कि आज वह जहाँ नये को स्वीकार कर रहा है वहीं बगैर उनकी प्रासंगिकता परखे पुराने विश्वासों को भी साथ लिये चल रहा है । एक ओर वह टेस्ट ट्यूब बेबी के जन्म के चिकित्सकीय विज्ञान से परिचित है वहीं दूसरी ओर इस बात पर भी यकीन करता है कि स्त्री, सूर्य की रोशनी से या हवा मात्र के संसर्ग से संतान को जन्म दे सकती है । ऐसे अनेक उदाहरण आप खुद सोच सकते हैं । मानव मस्तिष्क में कार्यरत इस दोहरी प्रणाली में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है इसलिये कि ज्ञान और विज्ञान दोनों ही उसने अपने पूर्वजों से जस का तस पाया है । जिन मनुष्यों ने विरासत में प्राप्त इस ज्ञान की विवेचना कर नये प्रयोगों के माध्यम से उसे खारिज किया है अथवा आगे बढ़ाया है और जो वास्तव मे मनुष्य जाति के भविष्य के लिये चिंतित एवं प्रयासरत है वे मनुष्य ही मानव जाति का सच्चा प्रतिनिधित्व करते हैं ।
लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि शेष मनुष्य, मनुष्य कहलाने के हक़दार नहीं हैं । उन मनुष्यों का दोष इसलिये नहीं है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व ही उनके मस्तिष्क को विचार के स्तर पर पंगु बना दिया गया है ,उनसे सोचने समझने की शक्ति छीन ली गई है तथा धर्म एवं संस्कृति के नाम पर उनके भीतर यह भ्रम प्रस्थापित कर दिया गया है कि जो कुछ प्राचीन है वही अंतिम है । इसके विपरीत विज्ञान किसी बात को अंतिम नहीं मानता है और प्राचीन की नये सन्दर्भों में व्याख्या करता है । इसी कारण इतिहास के नये अर्थ उद्घाटित होते हैं और पुराने अनुभव तथा नये ज्ञान की रोशनी में भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है ।
उपसर्ग - उपसर्ग में प्रस्तुत है कवि संजय चतुर्वेदी की यह छोटी सी कविता उनके संग्रह "प्रकाशवर्ष " से साभार
सात हज़ार साल बाद
कोई सात हज़ार साल बाद उसने खोला दरवाज़ा
बदल गई थी भाषा
लेकिन बदले नहीं थे आदमियों के आपसी सम्बन्ध
और वही आदमी था आज भी राजा
जिसके डर से वह बन्द हुआ था ..
सात हज़ार साल पहले ।
- संजय चतुर्वेदी
यह पोस्ट आपको कैसी लगी इस बात की प्रतीक्षा रहेगी । - शरद कोकास
बहुत सुन्दर तथा ज्ञानवर्धक लेख!
जवाब देंहटाएं"धीरे धीरे यह मनुष्य दो भागों में बँट गया कुछ लोग तो अपने पुरखों की तरह नवीनता की तलाश में जुट गये और कुछ ने पहले की उपलाब्धियों को अंतिम मान संतोष कर लिया।"
बिल्कुल सही अवलोकन!
सही है कितने पापड बेल कर मनुष्यता आज इस पड़ाव तक आ पहुँची है
जवाब देंहटाएंभैया....शीर्षक पढ़ कर सोचा कि कुंवारा रहने में ही भलाई है.....
जवाब देंहटाएंप्रथम वैज्ञानिकों के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी बहुत लाभप्रद लगी.....
बहुत अच्छी पोस्ट....
आभार....
बहुत कुछ ऐसा भी तो है जो हमारे पुरखे तब कह गये तो जब विग्यान नही था और आज विग्यान कह रहा है वो सब विग्यान ने बहुत कुछ उन की खोजों से ही निकाला है। शायद जो अनछूये रह गये वहीं पर ये विचार भिन्नता है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद्
अफसोस यह है कि आज वह जहाँ नये को स्वीकार कर रहा है वहीं बगैर उनकी प्रासंगिकता परखे पुराने विश्वासों को भी साथ लिये चल रहा है ।
जवाब देंहटाएंआपका कहना बिलकुल सही है परन्तु कई बार.....पुराने विश्वासों को साथ लेकर चलने के कई कारण होते हैं...बड़ो का सम्मान, विवाद से बचने की कोशिश,पुरानी प्रथा तोड़ने में साहस की कमी..आदि...और शांति बनाए रखने को पीढ़ी दर पीढ़ी कुछ रस्मो रिवाज वैसे ही निभाये चले जाते हैं...
पर यह भी सही है...जिनलोगों ने पुरानी मान्यताएं तोड़ने की हिम्मत की वे ही मानव जाति के सच्चे प्रतिनिधि भी कहलाये.
बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख...शुक्रिया
ज्ञानवर्धक लेख..सच ही कहा आपने आज का मनुष्य घोल मोल बन कर रह गया है...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनए को स्वीकारना और पुरातन को नकार नहीं पाना पर मेरे विचार रश्मि रविजा से मिलते जुलते ही हैं ...विशेषकर महिलाओं को पुरातन सोच के साथ तालमेल बैठना ही पड़ता है ...घर में सुख शांति बनाये रखने के लिए ...वही इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि विज्ञान लगातार अनुसन्धान कर रहा है ...अंतिम परिणाम तो यह भी नहीं बता सकता ...जो धारणाएं आज बनी वे कल ध्वस्त होती नजर आती हैं ..गैलीलियों और न्यूटन के सिद्धांतों पर भी प्रश्न उठाये जाते ही रहे हैं ...इस लिए जो आज विज्ञान ने सिद्ध कर दिया वह हमेशा ही अंतिम सत्य नहीं हो सकता ...कल कोई दूसरा प्रयोग उसे झूठा साबित कर सकता है ...
जवाब देंहटाएंअब आते हैं शीर्षक पर ..हवा से भी बच्चा पैदा हो सकता है ...इसका तो पता नही ...मगर बहुत सालों पहले मनोहर कहानिया में ऐसी एक घटना का जिक्र पढ़ा था जहाँ कि स्त्री बिना किसी संयोग के भी गर्भवती हो गयी थी ...अब आज इसका प्रमाण तो मेरे पास नहीं है ...
कमेन्ट लिखते हुए जब वे मेट का डायलोग " तुम्हारी मनोहर कहानियों वाली फिलोसफी " याद कर हंसी आ रही है ...
@वाणी जी , टिप्पणी के लिये धन्यवाद । प्रमाण तो उन लोगों के पास भी नहीं होगा जिन्होने उसे छापा था । अब इसमें जो सच्ची (?) कहानियाँ छपती हैं उनके बारे में तो सभी जानते हैं । यह फिलॉसफी वाला फंडा मज़ेदार है ना ?
जवाब देंहटाएंबहुत सही है !! अगर मानवता की भलाई करनी है तो अन्ध्विस्वास को दरकिनार करते हुए नए अनुसन्धान करते रहें पर उनके दूरगामी परिणामो को मद्दे नजर रखते हुए!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया पोस्ट! अच्छी जानकारी प्राप्त हुई! इस ज्ञानवर्धक और बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाइयाँ!
जवाब देंहटाएंशानदार। शानदार। शानदार। शानदार। शानदार। शानदार। शानदार।
जवाब देंहटाएंबस और कुछ नहीं।
Purani dharnaon se hatke apne vichar rakhana,apne aapme ek sahas kee baat hai..manhi man chahe sweekar karen, khule aam bolne se log katrate hain...
जवाब देंहटाएंसच कहा है आपने कि विज्ञान पढ़ना और उसे व्यवहार में लाना दो अलग बातें है.|सब कुछ जानते हुए भी उसे नकारना मनुष्य की विवशता नहीं ,वरन अपने पुरानेपन से चिपके रहन्रे का बचकाना दुराग्रह है|हमसे अच्छे तो वह है जो जानते नहेनत:अपनी दुनिया में मस्त रहते है
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