अलबर्ट आइन्स्टीन |
आज दस-बारह साल का एक बच्चा मनुष्य द्वारा किये जाने वाले वह
तमाम कार्य कर लेता है जिन्हें सीखने में हमारे पूर्वजों को लाखों साल लगे । आप
कहते हैं ना बच्चों का आई क्यू बढ़ गया है , वह इसी वज़ह से है कि हर पीढ़ी ने अपनी पिछली पीढ़ी से उसके द्वारा संचित यह ज्ञान ग्रहण किया है जो उसे उसकी पिछली पीढ़ियों से मिला इस तरह उसमे गुणात्मक वृद्धि हुई .
पृथ्वी पर जन्म लेने के बाद मनुष्य निरंतर प्रयोग करता गया और
पिछले अनुभव के आधार पर पुराने को छोड़ नये को अपनाता गया । लेकिन सभ्यता के
विकासक्रम में धीरे धीरे यह मनुष्य दो भागों में बँट गया कुछ लोग तो अपने पुरखों
की तरह नवीनता की तलाश में जुट गए और कुछ ने अपने पूर्वजों द्वारा प्रदत्त ज्ञान
को अंतिम मान कर संतोष कर लिया । इसका कारण यह नहीं था कि वे अपने जीवन के प्रति
पूर्णतया संतुष्ट थे या उन्हें नवीनता की आवश्यकता ही नहीं थी लेकिन संभवतः वे
यथास्थितिवादी थे । वे नवीनता और पुरातनता दोनों को एकसाथ स्वीकार करते रहे । आज
उनका वंशज आधुनिक मनुष्य भी इन्ही दोनों का घालमेल बनकर रह गया है । विडम्बना यह
है कि आज वह जहाँ नये को स्वीकार कर रहा है वहीं बगैर उनकी प्रासंगिकता परखे
पुराने विश्वासों को भी साथ लिए चल रहा है ।
ऐसे लोग आज भी हैं जो एक ओर टेस्ट ट्यूब बेबी के जन्म के
चिकित्सकीय विज्ञान से परिचित है वहीं दूसरी ओर प्राचीन ग्रंथों और धार्मिक
मान्यताओं के आधार पर इस बात में भी विश्वास करते हैं कि स्त्री, सूर्य की रोशनी से या हवा मात्र के संसर्ग से संतान को जन्म दे सकती है ।
एक ओर वह विज्ञान को भी मानते हैं और दूसरी ओर चमत्कारों में भी विश्वास रखते हैं ।
ऐसा क्यों है ? दरअसल मानव मस्तिष्क में कार्यरत इस दोहरी
प्रणाली में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है इसलिए कि ज्ञान और विज्ञान दोनों ही उसने
अपने पूर्वजों से जस का तस पाया है । जिन मनुष्यों ने विरासत में प्राप्त इस ज्ञान
की विवेचना कर नये प्रयोगों के माध्यम से उसे खारिज किया है अथवा आगे बढ़ाया है और
जो वास्तव में मनुष्य जाति के भविष्य के लिए चिंतित एवं प्रयासरत है वे मनुष्य ही
मानव जाति का सच्चा प्रतिनिधित्व करते हैं । हम सच्चे वैज्ञानिक उन्हें ही कह सकते
हैं ।
लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि शेष मनुष्य, मनुष्य कहलाने के हक़दार नहीं हैं । उन मनुष्यों का इसमें कोई दोष नहीं है
। सैकड़ों वर्ष पूर्व ही उनके मस्तिष्क को विचार के स्तर पर पंगु बना दिया गया है ,उनसे सोचने समझने की शक्ति छीन ली गई है तथा धर्म एवं संस्कृति के नाम पर
उनके भीतर यह भ्रम प्रस्थापित कर दिया गया है कि जो कुछ प्राचीन है वही अंतिम है ,वे आज भी यह अभिशाप जी रहे हैं ।
शरद कोकास
1 अगस्त 2017
1 अगस्त 2017
ये संक्षिफ्त और बेहद सटीक लेख है। बहुत बढ़िया। इसको अधिकाधिक लोगो को प्रेषित करें।
जवाब देंहटाएंशरद जी,आज के बच्चो का आय क्यू इतना अधिक क्यो है यह सवाल कई बुजुर्गों के मन मे आता है। हम इनकी उम्र के थे तब हमें तो इतना नही आता था। इस बात का आपने बहुत ही अच्छे से पुराने और नए समय की तुलना करते हुए समझाया है। सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख है।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं आपको।
बहुत अच्छी जानकारी ..
जवाब देंहटाएंसुंदर व सटीक।
जवाब देंहटाएंविचारणीय और ज्ञानवर्धक...
जवाब देंहटाएंशानदार
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