होली की मस्ती अब कम होने को है लेकिन बच्चों की मस्ती अभी कम नहीं हुई है ..हम सभी को अपने बचपन की होली याद आ रही है । चलिये " मस्तिष्क की सत्ता "लेखमाला के इस लेख क्रमांक -5 की शुरुआत यहीं से करें ..
आपको आपके बचपन की कबसे याद है ?
जो कुछ हमारी आंखों के सामने घटित हो रहा है उसे देखने के लिये हमारी आँखें पर्याप्त हैं लेकिन उसे महसूस करने के लिये अपने मस्तिष्क की क्षमता से हमारा परिचय होना आवश्यक है ।चलिये अतीत के बारे में सोचना शुरू करते हैं । अरे.. मै आपको दुनिया का इतिहास पढ़ने के लिये नहीं कह रहा हूँ ,मै तो आपसे अपने बचपन के बारे में सोचने के लिये कह रहा हूँ । आप कहेंगे हमे तो अपने बचपन की सारी बातें याद हैं । सच सच बताइये सारी बातें याद हैं ? जब आपने पहला शब्द बोला था , याद है ? जब आप ने पहला कदम रखा था और ज़मीन पर खड़े हुए थे वह क्षण याद है ? और जब आपने अपने पापा की गोद में....की थी वह याद है ? लेकिन हमें यह सब याद न होते हुए भी मालूम तो है ही इसलिये कि हमे हमारे माता-पिता ने यह बताया है । इसीलिये याद भले न हो हम सब कहते ज़रूर हैं....” हमने भी अपनी माँ का दूध पिया है । “ और सबसे बड़ी बात तो यह कि हमे जो बताया गया , हमने उसपर विश्वास किया है ।और दूसरे बच्चों को देखकर और उस समय की तस्वीरें देखकर उसकी कल्पना भी की है ।यह मस्तिष्क का ही कमाल है कि जिस तरह हम अपने बचपन के अनदेखे दृश्यों की कल्पना कर लेते हैं उसी तरह आनेवाले कल के दृश्यों की भी कल्पना कर लेते हैं ।
इस तरह दुनिया के भी न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य और अतीत की कल्पना भी हम इसी मस्तिष्क के द्वारा ही कर सकते हैं । अब आइये उन दृश्यों की कल्पना करते हैं जिन्हे न हमारे माता-पिता ने देखा ,न उनके माता –पिता ने । कल्पना कीजिये आज से अरबों वर्ष पूर्व जब इस धरती पर इंसान नहीं था । और इंसान तो क्या जब यह पृथ्वी ही नहीं थी , न सूर्य था, ना चान्द-सितारे थे , ना आकाशगंगायें थीं , ना यह बृह्मांड था , तब क्या था ? अर्थात जब “ कुछ नहीं ” था तो “ कुछ नहीं ” से पहले क्या था ? कुछ लोग इसका उत्तर इस तरह देते हैं कि ‘ कुछ नहीं ‘ से पहले भी ‘ कुछ नहीं ‘ था और उससे पहले भी ‘ कुछ नहीं ‘ था । उनसे पूछा जा सकता है कि जब ‘ कुछ नहीं ‘ था तो ‘ कुछ नहीं ‘ से यह सब कुछ कैसे आया ?
चलिये गालिब साहब की बात से ही शुरुआत करते है । मैने शुरुआत में ग़ालिब साहब का एक शेर पढ़ा था , डुबोया मुझको होने ने न होता मैं तो क्या होता । इसी शेर का पहला मिसरा है “ न था कुछ तो खुदा था , कुछ न होता तो खुदा होता । “ जब से मनुष्य ने ईश्वर की कल्पना की ( यहाँ अटकिये मत ..इस पर हम आगे चलकर बात करेंगे ) तब से लेकर अब तक तो यही माना गया है कि जब कुछ नहीं था तो यह बृह्मांड मौजूद था लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि बृह्मांड की उत्पत्ति से पूर्व यहाँ हाईड्रोजन हीलियम प्लाज़्मा उपस्थित था । प्लाज़्मा अर्थात ठोस,द्रव्य,वायु के अतिरिक्त पदार्थ की चौथी अवस्था या इलेक्ट्रोन रहित न्यूक्लियस की स्थिति । इस प्लाज़्मा के केन्द्र भाग में आकुंचन होना शुरू हुआ, सारे प्लाज़्मा को एक स्थान पर केन्द्रित होने के प्रयास में गुरुत्वाकर्षण में वृद्धि हुई, तापमान में वृद्धि हुई फिर एक महाविस्फोट हुआ और फलस्वरूप इस बृह्मांड का निर्माण हुआ । तत्पश्चात आकाशगंगायें बनीं, आकाशगंगाओं में बने सौरमंडल या नक्षत्रमंडल । इन्ही में से एक है हमारा सौरमंडल जिसमें हमारी पृथ्वी ,बुध, बृहस्पति, शुक्र, मंगल, शनि, यूरेनस ,नेप्च्यून,प्लूटो जैसे गृह हैं तथा इनका मुखिया है सूर्य ।
आप कहेंगे इस में नया क्या है ? सही है ,यह सब बातें आप भलिभांति जानते हैं । यह भी जानते हैं कि यह दुनिया एक दिन में नहीं बनी जैसे कि हम एक दिन में बड़े नहीं हो गये ।इंसान के अतीत के बारे में तो उसके पूर्वजों ने उसे बता दिया लेकिन दुनिया के अतीत के बारे में इंसान को कौन बताता , सो इंसान ने खुद यह जानना चाहा । (भई यह तो इंसान की फितरत है , वह अपने अतीत के बारे में जानना चाहता है , अपने पड़ोसी के अतीत के बारे में जानना चाहता है , फिर दुनिया के अतीत के बारे में क्यों नहीं जानना चाहेगा ? ) फलस्वरूप वैज्ञानिकों ने बहुत खोज की , विभिन्न परीक्षण किये और इस दुनिया का अतीत हमारे सामने रख दिया । आप कहेंगे कि इस वैज्ञानिक परीक्षण की क्या आवश्यकता थी । क्या हमारे पूर्वजों का ज्ञान काफी नहीं था ? मेरा आपसे सवाल है कि जब माँ बच्चे से कहती है कि यह तुम्हारे पिता है और वह बिना किसी सन्देह के उस पर विश्वास भी करता है , दुनिया भी इस बात पर विश्वास करती है फिर कानून को प्रमाण के लिये डी.एन.ए.टेस्ट की ज़रूरत क्यों पड़ती है ?
किसी भी दिशा में विज्ञान अभी ठहरा नहीं है । इस दुनिया के बारे में परीक्षण लगातार चल रहे हैं ,अभी पिछले दिनों ऐसे ही एक परीक्षण के दृश्य आपने देखे होंगे और दुनिया के खत्म हो जाने के भय से भयभीत भी हुए होंगे । इसीलिये हर वैज्ञानिक और अवैज्ञानिक जानकारी का तार्किक ढंग से विश्लेषण करने की ज़रूरत है अन्यथा हम इस दुनिया की उत्पत्ति के बारे में नहीं जान पायेंगे और हमेशा इसे किसी की ‘दी हुई दुनिया’ समझते रहेंगे या किसी प्रभुत्वशाली देश को इस दुनिया का मालिक समझते रहेंगे तथा इस दुनिया में रहने का वास्तविक आनन्द कभी नहीं उठा पायेंगे ।- शरद कोकास
उपसर्ग में कवि केदार नाथ सिंह की यह चर्चित कविता
उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुन्दर होना चाहिये ।
छवि गूगल से साभार
"उसका हाथ
जवाब देंहटाएंअपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुन्दर होना चाहिये ।"
मगर वह तो
इटली का माल निकला !
जिसे बरकत का
हाथ समझे थे
वह हाथ कंगाल निकला !!
शरद जी KAMAAL HAI
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक तरीके से,आप विज्ञान की गूढता से परिचित कराने की कोशिश कर रहें हैं...पर जैसे ही हम उसमे रम जाते हैं...आलेख ख़त्म हो जाता है...पर अच्छे आलेख की सफलता भी यही है कि आगे जानने की जिज्ञासा बनी रहें...
जवाब देंहटाएंप्रतीक्षा,अगली कड़ियों की...
हर वैज्ञानिक और अवैज्ञानिक जानकारी का तार्किक ढंग से विश्लेषण करने की ज़रूरत है अन्यथा हम इस दुनिया की उत्पत्ति के बारे में नहीं जान पायेंगे और हमेशा इसे किसी की ‘दी हुई दुनिया’ समझते रहेंगे या किसी प्रभुत्वशाली देश को इस दुनिया का मालिक समझते रहेंगे तथा इस दुनिया में रहने का वास्तविक आनन्द कभी नहीं उठा पायेंगे .
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक .
रोचक पोस्ट है। वैज्ञानिक तरीके से साबित किया गया है कि बच्चे को तीन साल से पहले की बातें याद नहीं रहतीं। बातें तभी याद रहती हैं जब बच्चे में भाषा का विकास होता है। इसी लिए सुनी सु्नाई बातों पर विश्वास कर कल्पना के घोड़े दौड़ाने पड़ते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत रोचकता से वैज्ञानिक सोच को अपनाने का तर्क दिया है अच्छा लगा ये आलेख धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दरता और रोचक तरीके से आपने प्रस्तुत किया है! बेहद पसंद आया!
जवाब देंहटाएंआपके विज्ञानं और उसके तर्क जो हैं वो तो हैं ही..रोचक हैं
जवाब देंहटाएंपर हमारा मन तो इन पंक्तियों ने ले लिया.
उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुन्दर होना चाहिये ।
सार्थक पोस्ट.
nice
जवाब देंहटाएंसच्ची दुनिया को सुंदर होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंरोचक आलेख.
जवाब देंहटाएंसंपूर्ण ग्राह्यता के लिए तार्किक विश्लेषण बहुत आवश्यक है.
मज़ा आ रहा है ...अब अगली किस्त का इंतजार है !
जवाब देंहटाएंभईया, अब्बल तो आपने 'भारत एक खोज' सीरिअल के शुरुआत में आने वाला वो गीत याद दिला दिया.. ''उससे पहले कुछ नहीं था... कुछ भी नहीं.. आसमा भी नहीं...'' :) और धन्यवाद इतने रोचक ढंग से विज्ञान को परोसने के लिए कि हर किसी की समझ में आ सके.. वर्ना यही बातें जब कोर्स की किताबों में पढ़ते थे तो नींद आने लगती थी.. इसमें कोई शक नहीं कि 'कल की दुनिया भगवान के बिना चल सकती है लेकिन विज्ञान के बिना नहीं'
जवाब देंहटाएंलेकिन महसूस होता है कि आपने लेख को बहुत ही सूक्ष्म कर दिया.. विज्ञान के विस्तार के हिसाब से तो ये पीको और नानो पोस्ट से भी नहीं हुई.. :)
आभार..
टिप्पणी करने के लिए अगली प्रविष्टियाँ पढनी होगी ...
जवाब देंहटाएंइन्तजार रहेगा ...!!
मैंने रविशजी के ब्लॉग में (March 1, 2010 7:10 ऍम) को यह कहा: "रवीशजी आपका नाम और आपका 'रोशनी डालने' का काम आपको सूर्य से सही जोड़ता है, जिसके पीछे किसी ज्योतिषी, यानि 'ब्रह्मण' का हाथ अवश्य रहा होगा :)...
जवाब देंहटाएंकिन्तु मानव समान ही सूर्य की भी एक मजबूरी है: पृथ्वी के गोलाकार होने के कारण, वो हर क्षण सूर्य के द्वारा सदैव आधी ही प्रकाशित हो पाती है, और मजबूरी है कि उसका आधा हिस्सा अँधेरे में ही रहता है यद्यपि, अपनी कक्षा में घूमने के कारण, बारी- बारी से हर क्षेत्र को उजाला मिलता रहता है,,,और, आदमी के 'टेढ़े माथे' (eccentric) समान पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर उसकी तुलना में टेढ़े घूमने के कारण ध्रुवीय क्षेत्र ही ऐसा होता है जहाँ ६ माह की रात और ६ माह का ही दिन भी होता है जबकि मध्य क्षेत्र में लगभग औसतन १२ घंटे की रात और १२ घंटे का ही दिन भी होता है...
यह तो सभी को मालूम होगा कि 'हिन्दू' एक समय, भूत में, बहुत ऊँचाई तक पहुंचे हुए, 'सिद्ध पुरुष' थे,,,और यह कि पश्चिम के वैज्ञानिक भी मानते हैं कि वो पहुंचे हुए खगोलशास्त्री तो थे ही...
प्राचीन ज्ञानियों ने यद्यपि (विष्णु) भगवान् को निराकार, नादबिन्दू, यानि 'शक्तिशाली शून्य' जाना, उन्होंने उसके 'योगमाया' द्वारा जनित जीवों में सर्वश्रेष्ठ सशरीर मानव (अमृत शिव के प्रतिरूप) की कार्यप्रणाली को समझने के लिए उसको सूर्य के परिवार, 'अष्ट- चक्र और नौग्रहों', में संचित शक्ति के सार से जोड़ा (जिसकी झलक विष्णु के अवतारों में भी दिखाई जाती है),,,और 'मानव इतिहास' को निराकार के शून्य से - चुटकी बजाते जैसे शून्य काल में - अनंत तक पहुँचने की कहानी की झलक जाना: 'एक्शन रीप्ले' समान, जिससे मीडिया वाले अच्छी तरह परिचित हैं :)"
उपरोक्त से संभव है कोई भी 'मायावी जीव', अर्थात निराकार नादबिन्दू का अंश जो वास्तव में परम सत्य यानी शून्य से जुड़ा है और हर भौतिक रूप के भीतर समाया है, जान पाए कि 'आप' जिस 'काल' की बात कर रहे हैं वो केवल 'माया' अथवा 'द्वैतवाद' का नतीजा है...यह सब आज जानते हैं कि मानव मस्तिष्क 'बाईनरी प्रणाली' से काम करता है, अर्थात प्रकाश कि अनुपस्थिति या अंधकार, माँ काली ('०'), और माँ गौरी, या अदिति ('१'), यानि 'ब्रह्मास्त्र' द्वारा जनित सूर्य के प्रकाश (अनंत हाईड्रोजन बम जो सूर्य में प्रति क्षण फूटते प्रतीत होते हैं हमारी 'कमजोर' भौतिक इन्द्रियों द्वारा मस्तिष्क को),,,और इस भ्रम को और अधिक फैलाने के लिए सौरमंडल के '९' सदस्यों को (धरातल पर आठ दिशाओं का एक एक राजा और उनको ऊपर-नीचे, दोनों दिशा में, जोड़ने वाला गुरु, 'सूर्य पुत्र', सुदर्शन-चक्रधारी-ग्रह शनि', यानि 'अष्टचक्र' द्वारा जनित महाभ्रम :)...
शब्दों की मजबूरी है कि वो किसी अनुभूति को 'दूसरे' तक पहुँचाने में असमर्थ है :( किन्तु "समझदार को इशारा ही काफी होता है" कह गए 'ज्ञानी' :)
शरद जी ~ यहाँ पर 'प्राचीन हिन्दू सोच' के विषय में यह दोहराएं तो उपयोगी होगा कि संस्कृत को 'देवभूमि भारत' में सर्वश्रेष्ठ भाषा माना जाता है, जिसमें 'भागवद गीता', यानि भगवान् श्री कृष्ण के गीत, योगियों द्वारा लिखे गए शब्दों को लाभदायक माना गया,,,इस भाषा में, 'मैं' को 'अहम्' कहा गया, और 'अहम्' का अर्थ 'घमंड' भी रखा गया, और उसे 'नरक के द्वारों' में से एक माना गया: जिससे वक्ता को इस शब्द का उच्चारण करने से पहले ही ध्यान में रहे और वो, शक्तिशाली स्वार्थी राक्षश समान, मदमस्त होने से सदैव बचे,,,
जवाब देंहटाएंऔर किसी भी काम या कर्म का पूरा होना मनसा (सोच), कर्मा (जो होते दिखाई भी पड़ता है: हाथ-पैर द्वारा किया गया कर्म) और वाचा (बोल), तीनों में से किसी एक के द्वारा भी माना गया: जिससे व्यक्ति विशेष में केवल दैविक, 'परोपकारी गुण', ही सदैव प्रदर्शित हों...बुद्ध ने भी मध्य-मार्गी बनने के उपदेश द्वारा इसी प्रकार ला लक्ष्य सुझाया...
संक्षिप्त में, यूं सारा जोर 'मन' पर नियंत्रण को दिया गया है,,,और मन को सांकेतिक भाषा में (निराकार परमात्मा) विष्णु की अर्धांगिनी 'लक्ष्मी' के समान (यानि जीव के अस्थायी भौतिक बाहरी शरीर) 'चंचल' बताया...और जो व्यक्ति (रावण अथवा दुर्योधन समान) केवल भौतिक सुख की तालाश में रहता है उसे निशाचर समान (जैसे जानवरों में उल्लू, जिसे दिन में नहीं दीखता) 'लक्ष्मी का वाहन' कहा गया...
वैज्ञानिक सोच को बहुत रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है. उपसर्ग में कवि केदार नाथ सिंह की कविता भी सार्थक है...
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक सोच को बहुत रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है. उपसर्ग में कवि केदार नाथ सिंह की कविता भी सार्थक है...
जवाब देंहटाएंरोचकता के साथ एक सार्थक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंपढ़ रही हूँ ..पोस्ट भी ..टिप्पणियाँ भी.
जवाब देंहटाएंअब 'मैं' आपके द्वारा संदर्भित कवि केदार नाथ सिंह की कविता, "उसका हाथ
जवाब देंहटाएंअपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा / दुनिया को हाथ की तरह गर्म और सुन्दर होना चाहिये ।" पर आना चाहूँगा, और नाम लुंगा एक बहु चर्चित आधुनिक पश्चिमी वैज्ञानिक स्व. कार्ल सेगान का, जिसकी पुस्तक कौसमौस के आधार पर एक सीरियल एक समय टीवी पर आया था, जिस समय शायद "रामायण" और फिर "महाभारत" ने भारतीय जनता में फिर से नयी पीढ़ी में उत्सुकता जगाई अनजाने को जानने के लिये...और उसकी प्रस्तावना प्रसिद्द भारतीय खगोलशास्त्री जयंत विष्णु नार्लीकर द्वारा की गयी थी...
कार्ल सेगान ने भी धरती को हमारे ब्रह्माण्ड में, सबसे सुंदर ग्रह ("Most beautiful") कहा, और प्राचीन हिन्दू भी सनातन काल से कह गए "सत्यम शिवम् सुंदरम",,,और पौराणिक कहानियों में इशारों में धरती को शिव ही बताया गया है: उन्हें यद्यपि शास्र नामों से पुकारा जाता है, 'गंगाधर' / "चंद्रशेखर", यानि वो जो चन्द्रमाँ को मस्तक पर ग्रहण करते हैं, या 'सोमरस का पान' करते हैं, आदि आदि शब्दों द्वारा यूं चन्द्रमा (के सार) को उनके प्रतिरूप मानव शरीर में भी सर्वोच्च स्थान (माथे में) दिया गया है :) यह तो सर्व विदित होगा कि अनादिकाल से चन्द्रमा को मानव में पागलपन से जोड़ा गया है (Lunacy derived from La Lune)...
यद्यपि हर कोई 'पढ़ा-लिखा' आज शायद जानता है 'भारत' के दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून के कारण स्थापित वार्षिक "जलचक्र" के (अरब सागर से बाँध समान हिमालय शृंखला तक, जो जम्बुद्वीप के उत्तरी भाग में धरती के पेट से जन्मा था :) और उसमें, तीर या 'अग्नि बाण' समान, सूर्य-किरणों का हाथ होने के,,,और संत तुलसीदास भी 'वैज्ञानिक' नहीं थे किन्तु उन्होंने त्रेता के राजा राम, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के माध्यम से उन्होंने उन्हें लंका पहुँचने के लिए छोटे भाई लक्षमण से वो तीर मांगते दर्शाया जो समुद्र को ही सुखा दे!!!
उपरोक्त से शायद आम आदमी भी जान सकता है कि त्रेता के राम सूर्य ('ब्रह्मा') के प्रतिरूप हैं तो लक्षमण पृथ्वी ('महेश') के क्यूंकि यदि शिवजी अपनी 'तीसरी आँख', यानि बाहरी वातावरण में उपस्थित ओज़ोन तल, न खोलें तो समुद्र का अनंत जल सूर्य द्वारा सुखाया ही नहीं जा सकता :)
हमारे परिवार के सभी सदस्यों को और उनके कारण मुझे भी बचपन से ही हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में रूचि रही है,,,किन्तु मैंने यह बाद में ही जाना कि "नादबिन्दू", विष्णु के श्रृष्टि को (सांकेतिक भाषा में) 'ॐ' मंत्र द्वारा रचने के आधार पर समय और स्थान को ध्यान में रख विभिन्न योगियों द्वारा हिमालय आदि कि गुफाओं में बैठ विभिन्न रागों की सुरों के तीन सप्तक (अंग्रेजी में 'ओक्टेव') के माध्यम से रचना की गयी थी,,,जैसे शिवजी को (ब्रह्मा-विष्णु-महेश, ३ गुणों: अस्थायी श्रृष्टि कि रचना, उसका विभिन्न काल तक रख-रखाव, और फिर परिवर्तित रूप में अनंत चक्र बनाये रखने में सिद्धि), यानि तीनों लोक - आकाश, धरा, और पाताल - का स्वामी, या त्रिपुरारी, कहा जाता है,,,
जवाब देंहटाएंजिस कारण 'जोगी' लोग पहले स्वामी हरिदास के शिष्य तानसेन जैसे 'दीपक राग' द्वारा, स्वरों द्वारा बनाई गयी माला के माध्यम से ही, दीपक जला लेते थे,,,और वे बर्षा भी कभी भी और कहीं भी करा सकने में सक्षम थे...
नेहरु ने भी "भारत एक खोज" में लिखा है कि कैसे 'आर्यों' ने भारत में आ सबसे पहले सब बांधों को तोडा था...किन्तु कलयुगी स्वतंत्र भारत में नेहरु ने ही बांधों को आधुनिक मंदिर कहा - और यह भी सत्य है कि सिंचाई के साधन उपलब्ध होने पर ही 'हरित क्रान्ति' यहाँ संभव हो पायी है, यद्यपि काल के प्रभाव से साधन बढ़ने के साथ- साथ बुराइयां भी बढ़ी हैं: जैसा ज्ञानी पहले ही कह भी गए क्यूंकि भूतनाथ शिव अथवा निराकार विष्णु उनके अनुसार देख रहे हैं, अपने तीसरे नेत्र / योगनिद्रा में, अपने स्वयम द्वारा रचित श्रृष्टि का इतिहास: सतयुग से कलियुग की घटनाये १०८० बार, अपने अनंत जीवन की एक दिन की कहानी जिसे देखने में ४ बिलियन से अधिक संसारी वर्ष लगते हैं !!!
What was bifor the "big bang"?
जवाब देंहटाएंThe reffered big bang was one of a series of big bangs. Just a primival-atom, Omnipraesent. There was no "befor "and after. Big bangs recurr. Thougt proking article sir. Mubaark.
veeribhai 1947.blogspot.com/veerubhai1947 @ gmail.com/9350986685
I become impressed very much. Realy very nice presentations with very useful informations. But i wants to write comments in hindi but i don't know, how to write in hindi fonts in this space.
जवाब देंहटाएंwith regards
Dr Satyendra Kumar Singh
Voluntary Institute for Community Applied Sciences (VICAs) Allahabad-211008
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