सोमवार, 8 मार्च 2010

जिनका दिल टूट जाये उन्हे जनरल नॉलेज की क्या ज़रूरत

पिछली पोस्ट से और कुछ याद रखें न रखें इसे ज़रूर याद रखें - 

वैज्ञानिकों का मानना है कि बृह्मांड की उत्पत्ति से पूर्व यहाँ हाईड्रोजन हीलियम प्लाज़्मा उपस्थित था । प्लाज़्मा अर्थात ठोस,द्रव्य,वायु के अतिरिक्त पदार्थ की चौथी अवस्था या इलेक्ट्रोन रहित न्यूक्लियस की स्थिति । इस प्लाज़्मा के केन्द्र भाग में आकुंचन होना शुरू हुआ, सारे प्लाज़्मा को एक स्थान पर केन्द्रित होने के प्रयास में गुरुत्वाकर्षण में वृद्धि  हुई, तापमान में वृद्धि  हुई फिर एक महाविस्फोट हुआ और फलस्वरूप इस बृह्मांड का निर्माण हुआ । तत्पश्चात आकाशगंगायें बनीं, आकाशगंगाओं में बने सौरमंडल या नक्षत्रमंडल । इन्ही में से एक है हमारा सौरमंडल जिसमें हमारी पृथ्वी ,बुध, बृहस्पति, शुक्र, मंगल, शनि, यूरेनस ,नेप्च्यून,प्लूटो जैसे गृह हैं तथा इनका मुखिया है सूर्य । 
     और अब पढ़िये इस से आगे - मस्तिष्क की सत्ता - छह 

                 हमारा एच.ओ.डी.सूर्य हमसे कितनी दूर है       

        एक पुराना चुटकुला है । पोस्टमैन के इंटरव्यू में एक प्रतिभागी से पूछा गया “ पृथ्वी से सूर्य की दूरी कितनी है बताईये ?” प्रतिभागी ने जवाब दिया “ देखिये अगर सूरज तक डाक बाँटने का काम है तो मुझे नहीं करनी ऐसी नौकरी ।“ लेकिन आप चिंता न करें यहाँ यह प्रश्न मै केवल आपका सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिये कर रहा हूँ । आप जानते  होंगे हमारे युवा वर्ग में आजकल एक डॉयलॉग बहुत चलता है ‘ और कुछ हो न हो जी.के. सॉलिड होना चाहिये ।‘ हमारे एक युवा मित्र हैं एक दिन कहने लगे “ जिनका दिल टूट जाये उन्हे जनरल नॉलेज की क्या ज़रूरत ? ” मैनें पूछा “ऐसा क्यों “ तो उन्होने कहा “ आपने वो गाना नहीं सुना ..जब दिल ही टूट गया हम जी के क्या करेंगे “ चलिये हम मान लेते हैं कि हमारा दिल अभी नहीं टूटा है  या हमारा दिल सॉलिड है  इसलिये थोड़ा बहुत जी.के.तो जान ही लेते है ।  
हमारे सौरमंडल के विभागाध्यक्ष सूरज के बारे में बात करते हैं जिसे हम रोज सुबह ऊगता हुआ देखते हैं , जिसे हम प्रणाम करते हैं ,जिसे हम अर्ध्य देते हैं ।जिसके लिये वेदों में अनेक ऋचायें रची गईं और दुनिया के तमाम धर्मग्रंथों में जिसकी स्तुति में साहित्य रचा गया । सूर्य भी वस्तुत: एक तारा है जो पृथ्वी के निकटतम है । इसका जन्म पांच हज़ार करोड़ वर्ष पूर्व हुआ । यह गैसों का एक गोला है तथा इसमें उपस्थित हाईड्रोजन गैस से होने वाली नाभीकीय संलयन की क्रिया के फलस्वरूप इससे उर्जा निकलती है । यह सभी दिशाओं में प्रकाशमान होता है । हमें इसकी उर्जा का 0. 000000005 % भाग ही मिल पाता है । सूर्य की सतह का तापमान 6000  सें.ग्रे. है । इसके केन्द्र का तापमान 1.5 करोड़ डिग्री सें.ग्रे. है ।यह पृथ्वी से पन्द्रह करोड़ किलो मीटर दूरी पर स्थित है तथा पृथ्वी से तेरह लाख गुना बड़ा है । सूर्य से निकला हुआ प्रकाश 8 मिनट में हम तक पहुंचता है । यह ऐसे होता है कि प्रकाश एक सेकंड में 3 लाख कि.मी. दूरी तय करता है, एक मिनट में (300000x60)कि.मी.,एक घंटे में (300000x60x60)कि.मी.,एक दिन में (300000x60x60x24)कि.मी.,तथा एक वर्ष में (300000x60x60x24x365) कि.मी. अर्थात 10लाख करोड़ कि.मी. यह दूरी एक प्रकाशवर्ष कहलाती है । इस तरह सूर्य हमसे 8 प्रकाश मिनट अर्थात(300000x60x8)=14.4 या लगभग 15 करोड़ कि.मी. दूर हुआ ।
बाप रे, दिमाग घूम गया । वैसे भी किलोमीटर की गणना समय में करना कठिन होता है । अभी मैं मुम्बई गया था । वहाँ दूरी को समय में बताने की परम्परा है । प्रभादेवी नाके पर मैने पूछा “ सिद्धि विनायक मन्दिर कितनी दूर है ? “ जवाब मिला “ बस पाँच मिनट “ जुहू बीच की दूरी पूछी तो उत्तर मिला “ बस फिफ्टी फाइव मिनट्स “ मैने किलोमीटर मे दूरी पूछी तो वे सज्जन मुझे ऐसे घूरकर देखने लगे जैसे मैं किसी दूसरे ग्रह से आया प्राणि हूँ  । अब यह पैदल फिफ्टीफाइव मिनट था ,बस से या रेल से वह भी मुझे ही तय करना था । प्रकाश की गति से तो मैं चलने से रहा । मैं समझ गया ,मुम्बई में या तो सब विज्ञान की भाषा में बात करते हैं या सबके सब सूर्यवंशी हैं । 
चलिये आप भी जब तक यह सवाल हल करिये । वैसे देखा जाये तो यह बहुत कठिन गणित नहीं है । यह आप चाहे तो कागज कलम या केल्कुलेटर ले लें और धीरे धीरे इसे हल करें । अगर मुझसे कहीं ग़लती हो गई हो तो मुझे बतायें वैसे भी छात्र जीवन में गणित में अपना हाल बेहाल रहा है । तो हल कर रहे हैं ना ?  भाई इतना गणित तो आपने स्कूल में पढ़ा ही होगा ?

उपसर्ग में प्रस्तुत है बाबा नागार्जुन की यह कविता 1961 में लिखी हुई 

मेरी भी आभा है इसमें

नये गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है 
यह विशाल भूखण्ड आज जो दमक रहा है 
मेरी भी आभा है इसमें 
भीनी भीनी खूशबु वाले 
रंग-बिरंगे  यह जो इतने फूल खिले हैं
कल इनको मेरे प्राणों ने नहलाया था 
कल इनको मेरे सपनो ने सहलाया था 
पकी सुनहली फसलों से जो 
अबकी यह खलिहान भर गया 
मेरी रग-रग के शोणित की बूँदे इसमें मुसकाती हैं 
नये गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है  
यह विशाल भूखण्ड आज जो दमक रहा है 

मेरी भी आभा है इसमें

23 टिप्‍पणियां:

  1. kya bat hai saaheb !

    atyant rochak aur pathjneey post

    jai hind !

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  2. आदरणीय, आपका काव्य तरंग पर हार्दिक अभिवादन!
    थोड़ी सी व्यस्तता थी लेकिन समय निकाल कर आज आपका ब्लॉग पड़ा ....अन्धविश्वास के खिलाफ आपकी यह मुहीम अत्यधिक सराहनीय है तर्क और ज्ञान के माध्यम से भोले भले लोगो को पाखंडो के जंजाल से मुक्त कराना परम आवश्यक हो गया है ...ऐसे में आपके यह आलेख रोचकता के साथ वैज्ञानिक तथ्यों से परिपूर्ण है ....बधाई !
    बहुत अच्छा लगा आपको पड़ कर अब नियमितता बनी रहेगी.

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  3. इतनी सुन्दर कविता है की इसे पढ़ाने के लिए एक बार और धन्यवाद !!

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  4. मुम्बई में या तो सब विज्ञान की भाषा में बात करते हैं या सबके सब सूर्यवंशी हैं

    ha ha ha ye bhi khoob rahi.

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  5. भईया हम तो आंखे बन्द्कर के आप की बात मानेगे, वेसे भी हम कोन सा नापने जा रहे है, दो चार किलोमीटर कम ज्यादा भी हुआ तो हमे क्या, ओर कागज पत्र लेकर हिसाब लगाये? अजी इतना ही दिमाग होता तो हमीं ना यह पोस्ट लिख देते:)

    बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने, यह सब हम ने बचपन मै स्कुल मै पढा था ओर आज आप ने फ़िर से हमे बचपन याद दिला दिया, सब से ऊपर हम ने मजाक मै लिखा है, बुरा ना माने
    धन्यवाद

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  6. बाबा की कविता और अति ज्ञानवर्धक आलेख के लिए आपका आभार.

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  7. नये गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है
    यह विशाल भूखण्ड आज जो दमक रहा है
    मेरी भी आभा है इसमें
    .......mai baba nagarjun ke gaon se hun.unki racna padhane ke liye dhanyabad.main aapke vaicaarik aadars ko maanataa hun. mujhe mistisk ki satta par dridh viswas hai.acchaa lekh.

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  8. रोचक शैली में लिखा गया ज्ञानवर्धक लेख!

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  9. बहुत कुछ रिफ्रेश हो गया आज...स्कूल के पाट्ठ्यपुस्तकों में पढ़ी सूर्य की सच्चाई...और किसी पत्रिका में पढ़ी, ये कविता....मस्तिष्क ने सूर्य की जानकारी तो सहेज ली थी....पर कविता भूल गया था...यहाँ उद्धृत करने का बहुत बहुत शुक्रिया...
    और हाँ, मुंबई वाले बेचारे ना तो सूर्यवंशी हैं...ना ही विज्ञान की भाषा में बात करते हैं बस समय की भाषा में बोलते हैं क्यूंकि उनके पास सबसे ज्यादा इसी की कमी होती है.:)

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  10. रोचक शैली
    ज्ञानवर्धक लेख

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  11. you present scientific facts as a narration in common language .It is very palatious to read you .congratulations .
    virendra sharma
    veerubhai1947.blogspot.com

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  12. ग्यानवर्द्धक आलेख और सुन्दर कविता के लिये धन्यवाद।

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  13. बहुत ही सुन्दर, रोचक और ज्ञानवर्धक आलेख रहा! कविता इतनी सुन्दर लगी की तारीफ़ के लिए शब्द कम पर गए! अत्यंत सुन्दर पोस्ट!

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  14. शुक्रिया ,
    देर से आने के लिए माज़रत चाहती हूँ ,
    उम्दा पोस्ट .
    science samandhit lekh samajh mein aaye ya na aaye kavita zarur aati hai.acchi rachana.

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  15. yah jankari dene ke liye dhanyawaad kya hai na ki ham bahut kuchh padte hai lekin jo bachpan me pada hota hai wahi bhul jate hai fir se bachpan yaad dilane ke bhi dhanywad

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