एक
समय था जब मनुष्य इस बात को नहीं जानता था कि मनुष्य का जन्म कैसे होता है । वह
अपनी अज्ञानता में हवा , बादल, पानी को इसका ज़िम्मेदार मानता था । हमारी पुराण
कथाओं में ही नहीं विश्व के तमाम मिथकीय साहित्य में मनुष्य के जन्म लेने के ऐसे
ही किस्से हैं । कहीं कोई पेड़ से पैदा हुआ तो कोई समुद्र से, कोई किसी यज्ञ से , कोई फल खाने से ।
महाभारत नामक महाकाव्य में ध्रतराष्ट्र के
सौ पुत्र घड़े से पैदा हुए । अपने पिता ज्यूस द्वारा गर्भवती माता मेटिस को निगल
लिए जाने के बाद ग्रीक देवी एथीना अपने पिता का सर फाड़कर पैदा हुई वहीं ग्रीक देवता डायनोसिस का
जन्म अपने पिता ज्यूस की जांघ से हुआ । यद्यपि यह बहुत बाद की बात है लेकिन
यौनिकता की ठीक से समझ न होने के कारण तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण न होने के कारण किस्से
-कहानियों में जन्म के ऐसे ही कारणों का उल्लेख होता रहा । धार्मिक और पौराणिक
ग्रंथों के लेखन के समय जो तत्कालीन समाज व्यवस्था थी उसकी पड़ताल न करते हुए हम
सिर्फ चमत्कारों और लिखे जा चुके शब्दों में विश्वास करते रहे । इसके अलावा कुछ
दृष्टांत सामाजिक व्यवस्था में जानबूझकर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए भी गढ़े गए
जैसे ऋग्वेद में ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण , भुजाओं से क्षत्रिय , जंघा से वैश्य
तथा पांवों से शूद्र के जन्म लेने का दृष्टांत । इस वर्ण व्यवस्था का प्रभाव यह
हुआ कि जातियों का निर्माण हुआ उनके अनुसार समाज में ऊँच -नीच जैसी अवधारणायें
बनीं । सदियों तक समाज में निम्न वर्ग को उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता रहा और
उनका शोषण व उत्पीड़न जारी रहा । इसकी वज़ह केवल यही रही कि हमने सामाजिक नियामकों
की अवैज्ञानिक सोच को समाज के मस्तिष्क पर हावी होने दिया । आज भी हम लोग धर्म में
आस्था के कारण ऐसे किस्सों और धारणाओं पर सहज विश्वास कर लेते हैं और यही नहीं अतार्किक
रूप से उन्हें छद्म वैज्ञानिकता से जोड़ने
का प्रयास भी करते हैं ।
आज विज्ञान का युग है ,
आज स्कूल जाने वाले बच्चों तक को यह ज्ञात है कि उनका जन्म कैसे हुआ है। आप उन्हें फुसला नहीं सकते कि आप उन्हें
अस्पताल से लाये हैं या कोई परी आकर
दे गई
है , झूठ कहेंगे तो उल्टे वे आपको
समझा देंगे । लेकिन आप अपनी अंध आस्था के कारण बच्चों को भी उन झूठे किस्सों में जबरिया विश्वास करने के लिए बाध्य करते हैं । उनके सवालों के सही सही जवाब नहीं देते । यद्यपि
एक ओर पढ़ा लिखा मनुष्य प्रजनन सम्बन्धी
वैज्ञानिक कारणों को भी जानता है वहीं दूसरी ओर उन पौराणिक किस्से
-कहानियों में भी विश्वास करता है । इस दोहरी मानसिकता की वज़ह यही है कि धर्म और
ईश्वर का भय उसे भयभीत करता है ।
शरद कोकास
सही बात।
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