हमारी त्वचा |
चेतना का अर्थ आप जानते
होंगे ,चेतना अर्थात हमें उद्वेलित करने वाली गर्व ,लज्जा,क्रोध,हर्ष, प्रेम, घृणा
आदि भावनाएं ,हमारे नेत्र,नाक,कान, जिव्हा,स्पर्श आदि ज्ञानेन्द्रियों द्वारा
प्राप्त अनुभूतियाँ ,और अंततः हमारे मस्तिष्क को सदा व्यस्त रखने वाले विचार यह सब
चेतना है । चेतना से बाहर जो कुछ भी है वह सब पदार्थ है । पदार्थ मतलब हमारे चारों ओर उपस्थित वस्तुएं या
पिंड जिनमें भौतिकीय ,यांत्रिकीय रासायनिक तथा शरीर क्रियात्मक प्रक्रियाएं घटती
रहती है उन्हें ही भौतिकीय परिघटनाएं अथवा
पदार्थ या भूतद्रव्य कहा जाता है । हमारी चेतना के निर्माण में इन ज्ञानेन्द्रियों की प्रमुख भूमिका है बिना इनकी सहायता के हम अनुभूतियों को अपने मस्तिष्क में दर्ज नहीं कर सकते .
जैसे जैसे मनुष्य के
शरीर का विकास होता है वह अन्य मनुष्यों के संपर्क में आकर विभिन्न कार्य सीखता है
, रंग, ध्वनि व गंध में भेद करने लगता है इस तरह उसकी भावनाएं परिष्कृत होती हैं ।
जब उसका शरीर दुर्बल पड़ने लगता है ,अनुभूतियों और विचार करने की क्षमता पर भी उसका
प्रभाव पड़ता है । इस तरह हम देखते हैं कि मनुष्य की चेतना का आलंबन उसका यह भौतिक शरीर ही है . अन्य प्राणियों से इतर मनुष्य के भीतर यह क्षमता है कि वह कुछ
करने से पहले उसके बारे में सोच सकता है । मनुष्य की मुक्ति की आकांक्षा और समाज
में व्याप्त शोषण और अन्याय के खिलाफ विचार करने की क्षमता और फलस्वरूप उपजे क्षोभ
ने ही उसे शोषकों के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया । इतिहास गवाह है कि मेहनत कश
इंसान और प्रभुत्व संपन्न वर्ग के बीच हमेशा से संघर्ष रहा है, उसकी भौतिक
स्थितियों ने ही हमेशा उसे संघर्ष के लिए प्रेरित किया है । इस संघर्ष में उसकी चेतना की
प्रमुख भूमिका है ।
ज्ञानेन्द्रियों के विषय में और अधिक जानने के लिए यहाँ ज्ञानेन्द्रियों पर क्लिक करें (चित्र भारतकोश से साभार)
शरद कोकास
बहुत अच्छी व्याख्या है चेतना पर। चेतना ही हमारे चिंतन की दिशा तय करती है। साधुवाद...
जवाब देंहटाएंइस पर गोष्ठी करें।9810122408
जवाब देंहटाएंचेतना और पदार्थ की परिभाषा को बहुत ही सरल शब्दों में समझाया है आपने।
जवाब देंहटाएंसार्थक जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!