
21 सितम्बर 1995 का दिन इस दुनिया में एक ऐसे तथाकथित चमत्कार के लिये याद किया जायेगा जब गणेशोत्सव के दिनों से भी ज़्यादा गणेश जी के मन्दिरों मे भीड़ रही । अचानक एक अफवाह फैली कि गणेश कुल के देवी देवता दूध पी रहे हैं । मन्दिरों में लम्बी लम्बी कतारें लग गईं । भीड़-अफरातफरी शोर का माहौल हो गया । लोग फोन से एक दूसरे को खबर कर रहे थे । थोड़ी देर में पता चला कि विदेशों में भी देवी मूर्तियाँ दूध पी रही हैं । दूध के भाव अचानक बढ़ गये । होटलों में चाय के लिये रखा दूध ऊंचे दाम पर बिक गया । लोग घर का पूरा दूध लेकर मन्दिरों में पहुंच गये ।यह कथा तो अब सभीको मालूम है क्योंकि लगभग सभी

लेकिन उस दिन इस अन्धविश्वास का विरोध करने के लिये और लोगों में वैज्ञानिक दृष्टि से इसका विश्लेषण करने की अपील करती हुई भी कई संस्थाएँ सामने आईं । अफसोस हमारे देश की जनता को मूर्ख समझ कर उनके अन्धविश्वास को बढ़ावा देने वाले माध्यमों के बीच उनकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती की तरह साबित हुई । इस अफवाह की वज़ह से उपजी अराजकता से निपटने के लिये और इसका वास्तविक कारण पता लगाने के लिये राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी संचार परिषद के अध्यक्ष डॉ.नरेन्द्र सहगल के नेत्रत्व में तुरंत एक दल का गठन किया गया जिसने राजधानी के विभिन्न मन्दिरो में भ्रमण कर इस घटना को देखा और यह निष्कर्ष दिया कि इस घटना में कोई चमत्कार नहीं है तथा वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार सामान्य घटना है ।इस वैज्ञानिक दल ने बताया कि दूध से भरे
इस दिन मैं अपने बैंक के निकट स्थित ,मन्दिर की पिछली नाली से बहते हुए दूध को देखता रहा और सोचता रहा यह वही देश है जहाँ लाखों-करोड़ों बच्चों को दूध पीने को क्या देखने तक को नहीं मिलता । शाम तक मैं इतना उद्वेलित हो गया कि स्थानीय प्रेस कॉम्प्लेक्स पहुंच गया और अपने पत्रकार मित्रों को बुलाकर कहा “ देखिये मेरी स्कूटर भी दूध पीती है ।“ फिर मैने यह प्रयोग भरे बाज़ार में करके दिखाया । लोगों ने इसे तमाशे की तरह देखा । साक्षरता भवन में अपने मित्रों के साथ हमने टेबल, कुर्सी, क्लियोपेट्रा की मूर्ती, कम्प्यूटर, काँच कई वस्तुओं पर यह प्रयोग किया । इस बीच दूरदर्शन वालों से भी बात की
(चित्र में वही स्कूटर और पृष्ठभूमि मे मेरा निर्माणाधीन मकान )
क्या आपके शहर में भी ऐसा कोई प्रयास हुआ था ? -आपका शरद कोकास