मंगलवार, 15 सितंबर 2009

नवरात्रि में साबूदाने की खिचड़ी खाने से पहले सोचें..

नवरात्रि का पर्व प्रारम्भ होने जा रहा है और बहुत से श्रद्धालु इस तैयारी में हैं कि इस बार पूरे नौ दिन का उपवास कर ही लिया जाये । उस दिन एक मित्र से पूछा “ क्यों भई इस बार भी पूरे नौ दिन ? “ उन्होने कहा “ बिलकुल “ मैं जानता था उन्हे पर्व के बारे में कुछ विशेष श्रद्धा नहीं है और खाने का मोह तो वे त्याग ही नहीं सकते ।
मैने कहा “ क्यों भई जब उपवास में विश्वास ही नहीं है तो व्यर्थ में क्यों शरीर को कष्ट देते हो ? “ तो उन्होने कहा “ कष्ट ? कैसा कष्ट ? भई उपवास में भी एक समय तो मैं जमकर खाता ही हूँ । “ मैने कहा “ खाना ही है तो फिर  उपवास का सहारा क्यों वैसे ही खा सकते हो ? “ तो उन्होने कहा “ भई उपवास के दौरान रोज़ के भोजन से भिन्न, फलों से लेकर विभिन्न पकवानों तक कई कई वेरायटियाँ ( हिन्दी का अद्भुत प्रयोग) खाने को मिलती हैं और सिंघाड़े का हलवा और साबूदाने की खिचड़ी तो मेरा प्रिय व्यंजन है ।“
मैने कहा “ हाँ साबूदाना तो मेरा भी प्रिय खाद्य है,और न केवल खिचड़ी बल्कि बर्फी भी मुझे बेहद प्रिय है । मित्र के मुँह में पानी आना शुरू हो चुका था ।“
फिर अचानक उन्होने पूछा “ यार कई लोगों से पूछा लेकिन कोई नहीं बता पाया कि ये साबूदाने का पेड़ कहाँ होता है ? “ मेरा भी दिमाग चकरा गया ,
 फिर अचानक याद आया कि बरसों पहले विज्ञान पत्रिका सन्दर्भ में यह पढ़ा था
 सो अपनी लायब्रेरी से वह अंक निकाला और उन्हे बताया ।
चलिये यही जानकारी आपके साथ भी बाँटी जाये ।
दर असल साबूदाना किसी पेड़ पर नहीं ऊगता । यह कासावा या टैपियोका नामक कन्द से बनाया जाता है । कासावा वैसे तो दक्षिण अमेरिकी पौधा है लेकिन अब भारत में यह तमिलनाडु,केरल, आन्ध्रप्रदेश और कर्नाटक में भी उगाया जाता है । केरल में इस पौधे को “कप्पा” कहा जाता है । इस कन्द में भरपूर स्टार्च होता है । साबूदाना बनाने के लिये कासावा के कन्दों को पानी की टंकियों में डालकर गलाया जाता है और फिर उनमें से प्राप्त स्टार्च को धूप में सुखाया जाता है । जब यह पदार्थ लेईनुमा हो जाता है तो मशीनों की सहायता से इसे छन्नियों पर डालकर गोलियाँ बनाई जाती हैं ,ठीक उसी तरह जैसे की बून्दी छानी जाती है ।
 इन गोलियों को फिर नारियल का तेल लगी कढ़ाही में भूना जाता है और अंत में गर्म हवा से सुखाया जाता है ।
बस साबूदाना तैयार । फिर इन्हे आकार ,चमक, सफेदी के आधार पर अलग अलग छाँट लिया जाता है और बाज़ार में पहुंचा दिया जाता है ।
तो चलिये उपवास के दिनों में ( उपवास करें न करें यह अलग बात हैं ) साबूदाने की स्वादिष्ट खिचड़ी ,या खीर या बर्फी खाते हुए साबूदाने की निर्माण प्रक्रिया को याद कीजिये और मित्रों से
शेयर कीजिये ।
आपका -शरद कोकास 

(छवि गूगल से साभार)

गुरुवार, 3 सितंबर 2009

किस धोखे में हैं आप डॉक्टर के पास जाईये

आज एक मित्र के साथ कहीं जाने के लिये उनके घर से बाहर निकला ही था कि उन्हे छींक गई । तुरंत उनकी पत्नी ने कहा थोड़ा रुक जाईये जी यह अपशकुन है “ मैने सोचा ,चलो भाभी हैं , थोड़ा हँसी-मज़ाक कर ही लिया जाये सो मैने पूछा “ क्या हो जायेगा भाभी जी अगर घर से निकलते समय छींक आ गई तो ? “ उन्होने कहा “ अरे आपको मालूम नहीं इससे दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है । “ मैने अपने तरकश से तर्क का तीर निकाला और कहा “ मतलब दुनिया में जितनी दुर्घटनाएँ होती हैं सब लोग अपने घर से निकलते समय छींकते ज़रूर होंगे ?” वो बोलीं “ क्या भाई साहब आप भी मज़ाक करते हो ,ऐसा कहीं होता है । “ मैने कहा “ ऐसा नहीं होता तो फिर ठिठकने की क्या ज़रूरत ? उन्होने दूसरा कारण दिया “नहीं भाई साहब ऐसा नहीं ,इससे बना-बनाया काम बिगड़ जाता है “ मैने फिर उसी तीर को प्रत्यंचा पर चढ़ाया और कहा “ मतलब जितने लोगों के काम बिगड़ते हैं सब घर से छींकते हुए निकलते हैं ? “ उन्होने एक वाक्य में मुझे रिजेक्ट करते हुए कहा “ आपसे तो बहस करना बेकार है भाई साहब । “ फिर भी मैने कहा “भाभीजी, ऐसा नहीं है । छींक शरीर की एक रक्षात्मक प्रणाली है ,जो नाक में जबरन घुस आये धूल मिट्टी के कण को बाहर निकालने के लिये है । किसी गन्ध या धुयें या कीटाणु की वज़ह से भी छींक आ सकती है । नाक का यह भीतरी हिस्सा इतना सम्वेदनशील होता है कि ज़रा भी ज़बरदस्ती बरदाश्त नही कर सकता । कई बार जुकाम में इतनी छींक आती है कि रोके नही रुकती । हमारे एक मित्र थे जो बीच–बाज़ार में रहते थे और जुकाम के कारण दिन भर आते जाते छींकते रहते थे और न कोई दुर्घटना होती थी न काम बिगड़ता था ।लेकिन जब भी वो ससुराल जाते थे उनका जुकाम गायब हो जाता था इसलिये कि उनकी ससुराल पहाड़ी प्रदेश में थी ,जहाँ कोई प्रदूषण नहीं था । इसलिये छींक आने का सम्बन्ध शुभ होने से है अशुभ होने से

वैसे यह अच्छी बात है कि सभी छींको को अशुभ नहीं माना जाता । कुछ लोग छींक आते ही कहते हैं “ शायद कोई याद कर रहा है ।“ फिर उस की याद आते ही उनके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है । कुछ लोग बातचीत के बीच में छींक आते ही कह उठते है “ देखा, सही बात । “ मानो छींक हो आई एस आई की मुहर हो वैसे छींक और याद का थोड़ा बहुत सम्बन्ध तो मै भी मानता हूँ, इसलिये चलते चलते आपको एक मुफ्त नुस्खा दे ही डालता हूँ । मान लीजिये आपको छींक आ ही जाये तो समझिये आपको कोई याद कर रहा है । दूसरी छींक आ जाये तो समझिये कि बहुत ज़्यादा याद कर रहा है । फिर तीसरी छींक आ जाये तो समझिये कि वह आपको अपने पास चाहता है । चौथी छींक आ जाये तो समझिये कि वह बगैर आपसे मिले रह ही नहीं सकता है और फिर पाँचवी छींक आ जाये तो.. किस धोखे में हैं आप ..? डॉक्टर के पास जाईये , आपको जुकाम हो चुका है

वैसे आप क्या सोच रहे हैं ॥भाभीजी मेरी बकवास सुनने के लिये अब तक रुकी होंगी ? हर पढ़े-लिखे का यही हाल है भैया । ठीक ,अगली बार बिल्ली के रास्ता काटने पर बात करेंगे । बेशक कुछ नया ही बताउंगा मै ।

आपका -शरद कोकास

(छवि गूगल से साभार)