बुधवार, 16 जून 2010

तरह तरह से आ रही है मृत्यु…


                                           सजीवों के अन्य लक्षण
          सजीवों के शरीर के निर्माण में जीवद्रव्य की भूमिका और सजीवों के एक निश्चित शारीरिक संगठन के बारे में जानने के पश्चात आप सजीवों के अन्य लक्षणों के बारे में भी जानना चाहेंगे । लीजिये प्रस्तुत हैं सजीवों के अन्य लक्षण ।
उपापचय : अपनी जैविक क्रियाओं के लिये सजीवों को उर्जा की आवश्यकता होती है । यह उर्जा कोशिकाओं में उपस्थित ग्लूकोज ,वसा अथवा प्रोटीन के आक्सीकरण से मिलती है । सजीवों की कोशिकाओं में होने वाली रासायनिक क्रिया उपापचय कहलाती है ।
पोषण : शरीर की वृध्दि , सुधार व उर्जा के लिये सजीवों को पोषण की आवश्यकता होती है । पोषक पदार्थ अवशोषित होकर कोशिकाओं में पहुंचते है । पोषण का विरुद्धार्थी शब्द होता है कुपोषण जिसका अर्थ आप भलिभाँति समझते हैं । पोषण आहार के नाम पर ग़रीब बच्चों को शाला में भोजन भी दिया जाता है इसलिये कि अधिकांश लोगों के बस में नहीं होता कि उन्हे आवश्यक मात्रा में पोषक आहार मिल सके । 
श्वसन : सजीव ऑक्सीजन लेते है तथा कार्बन डाय आक्साइड निकालते हैं ।हम मुँह से साँस लें या नाक से या और कहीं से भी , श्वसन क्रिया कोशिकाओं में ही सम्पन्न होती है ।
उत्सर्जन : कोशिकाओ में उपापचय के कारण जो अनुपयोगी व हानिकारक पदार्थ शेष रहते है या बनते हैं उन्हे बाहर निकालना उत्सर्जन  कहलाता है । अब उत्सर्जन हम कहाँ कहाँ से करते हैं यह आप बखूबी जानते हैं जैसे त्वचा से पसीना निकलना भी एक प्रकार का उत्सर्जन है।
वृध्दि : सभी सजीवों में वृध्दि होती है । उपापचय से जीव द्रव्य में वृध्दि होती है जीव द्रव्य से कोशिकाओं में वृध्दि होती है । एक सीमा के बाद यह कोशिकाएँ विभाजित हो जाती है तथा उसी अनुपात में ऊतक अंग व शरीर बढ़ता जाता हैं । परंतु सजीवों में यह वृध्दि आजीवन नहीं होती । जैसे कि शिशु एक सीमा तक बढ़ता है और सम्पूर्ण विकास के बाद उसका बढ़ना रुक जाता है । यह आपने  नहीं सुना होगा कि किसी बच्चे का बढ़ना रुक ही नहीं रहा ।

एक महानगर में दो मित्र बहुत दिनों बाद मिले । एक ने दूसरे से पूछा बच्चा कितना बड़ा हो गया है ? पहले ने दोनो हाथ ज़मीन के समानांतर फैलाये और कहा इतना बड़ा । दूसरे मित्र ने कहा “ यार सब लोग ज़मीन से ऊपर हाथ उठाकर बच्चे की लम्बाई बताते हैं तुम हाथ फैलाकर बता रहे हो ...। पहले मित्र ने कहा “ क्या बताऊँ जब मैं काम पर जाता हूँ वह सोता रहता है और जब लौटकर आता हूँ तब भी सोता रहता है ..सो उसकी लम्बाई मैं ऐसे ही बताऊँगा ना ?
 
गति व चलना : सभी सजीवों की गति होती है । कुछ में यह गति अंगों के व शरीर के हिलने डुलने तक सीमित रहती है जैसे पेड़ पौधों  में । मनुष्यों व पशु पक्षियों में यह गति चलने ,उड़ने में परिवर्तित हो जाती है ।मनुष्य के पास यदि पंख होते तो वह भी उड़ता लेकिन तब यह गीत नहीं बनता ..पंख होते तो उड़ आती रे.। हाँलाकि मनुष्य ने इसी इच्छा के चलते अपने मस्तिष्क का उपयोग करके एरोप्लेन का आविष्कार किया और उड़ने लगा ।  
प्रजनन : सजीव में अपने समान संतान उत्पन्न करने की क्षमता होती है । मानव की संतान मानव ही होती है । यद्यपि कुछ मानव अपनी संतान को गधा कहकर सम्बोधित करते हैं लेकिन यह उनका नीजि मामला है। निर्जीवों में प्रजनन क्षमता नही होती ,यह आपने नहीं सुना होगा कि एक मेज़ के पास दूसरी मेज़ रख दो तो कुछ दिन बाद एक बच्चा मेज़ पैदा हो जाती है ।
मृत्यु  : प्रत्येक सजीव की एक निश्चित जीवन की अवधि होती है । जो सजीव मर जाता है उसके शरीर से ‘जीवन ‘ के सभी लक्षण हमेशा के लिये समाप्त हो जाते हैं । गब्बर सिंह का मशहूर डॉयलॉग है..”जो डर गया समझो मर गया ।‘ मगर हमारे यहाँ सभी डरे हुए लोग शरीर से ज़िन्दा रहते हैं ,यह जानते हुए भी कि यह जीना भी कोई जीना है ।
                   इस प्रकार ये तमाम लक्षण सजीवों में ही होते हैं । निर्जीवों में इनमें से कोई लक्षण नहीं होता। जैसे निर्जीव तत्वों में ‘ जीव द्रव्य ‘ नहीं होता  । उनमें कोई शारीरिक संगठन नहीं होता । निर्जीवों को किसी पोषण की ज़रुरत नहीं होती । निर्जीवों में वृध्दि नहीं होती , वे प्रजनन नहीं करते । तथा निर्जीव कभी मृत नहीं होते क्योंकि उनमें ‘ जीवन ‘ नहीं होता  ।
उपसर्ग में प्रस्तुत है अग्निशेखर की यह कविता उनके संग्रह ‘ जवाहर टनल ‘ से
                                       स्मृतिलोप
तरह तरह से आ रही है मृत्यु
खत्म हो रही थीं चीज़ें
गायब हो रही थीं स्मृतियाँ
पेड़ों से झर रहे थे पत्ते
और हम धो रहे थे हाथ
मरते जा रहे थे हमारे पूर्वज
दूषित हो रही थीं भाषाएँ
हमारे संवाद
प्रतिरोध
उतर चुके थे जैसे दिमाग़ से

हम डूब रहे थे
तुच्छताओं की चमक में
उठ रहे थे विश्वास
जो ले आये थे हमें यहाँ तक

बची रही थी जिज्ञासा
निर्वासित थी संवेदनायें
नए शब्द हो रहे थे ईज़ाद
अर्थ नहीं थे उनमें
ध्वनियाँ नहीं थीं
रस,गन्ध,रूप नहीं था
स्पर्श नहीं था
उन्ही से गढ़ना था हमें
नया संसार

एक तरफ घोषित किये जा रहे थे
कई कई अंत
दूसरी तरफ
हम थे कुछ बचे हुए
ज़िद्दी और भावुक लोग
कुछ और भी थे हमारे जैसे
यहाँ वहाँ इस भूगोल पर
करते अवहेलनायें
लगातार                                                                         
 
छवि गूगल से साभार