शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

पत्थर उछालने से जानवर डरकर भागते हैं

मानव जाति के विकास में मस्तिष्क की भूमिका :
आज के मनुष्य की बनावट केवल 40000 वर्ष पूर्व की है लेकिन उससे पहले का मनुष्य धीरे धीरे इस  स्थिति तक पहुँचा था । एक समय ऐसा भी था जब मनुष्य और पशु में कोई विशेष भेद नहीं था । आज भी कई मनुष्य जानवरों जैसी हरकते करते हैं इसीलिये यह कहा जाता  है “रहे ना आखिर जानवर के जानवर ।“यह तो हमारा मस्तिष्क है जिसने हमें पशुओं से अलग पहचान दी ।320 लाख वर्ष पूर्व के स्तनधारी प्राणि के शरीर व मस्तिष्क के विकास के फलस्वरुप आज मानव इस  हाल   तक पहुँचा है । आज मनुष्य के शरीर व मस्तिष्क की जो बनावट है वह मात्र 40000 वर्ष पूर्व की है । एक समय ऐसा भी था जब मनुष्य और पशु के जीवन यापन का तरीका एक सा था , लेकिन कालांतर में मनुष्य में पशुओं की तुलना में कई भिन्नताएँ दिखाई देने लगीं । वह जहाँ दोनों हाथ व पैरों पर चलता था ,सीधा खड़ा होकर दो पैरों पर चलने लगा यह उसके जीवन में बहुत बड़ी क्रांति थी । इसका  सबसे अधिक लाभ स्त्री को हुआ, योनि अदृश्य हो जाने की वजह से वह अनुचित यौन शोषण से बच गई । मानव के हाथ व अंगूठे की रचना भिन्न प्रकार की थी , वह उनका उपयोग करने लगा ,अपने अनुभवों से लाभ उठाने लगा , मस्तिष्क का उपयोग कर स्मरण , मनन चिंतन द्वारा अपनी इच्छापूर्ति के उपाय व साधनों से अपना विकास करने लगा तथा कालांतर में पशुओं से पूरी तरह भिन्न हो गया ।
          मनुष्य के पास पहले पहल अपने हाथों के अलावा रक्षा का कोई साधन नहीं था। उसे शरीर ढांकना तक नहीं आता था । वह नंगा घूमा करता था । झोपड़ी बनाना भी उसे नहीं आता था । उसके पास गाय ,भैंस ,भेड़ बकरी कुत्ता कुछ न था । अनाज के बारे में उसे मालूम न था। कंद-मूल ,जंगली फल , पत्तियाँ ,जल जंतु व जानवरों का मांस उसका आहार थे । आदिम मनुष्य के मस्तिष्क का विकास होने से पूर्व उसके सामने अनेक कठिनाइयाँ थी । अन्न या शिकार की खोज में वह निकलता था, उसे डंडा पकड़ना तक नहीं आता था , पत्थर पकड़ना नहीं आता था , वह कंद मूल भी हाथों से खोदता था ।इसी प्रयास में एक दिन एक पत्थर उसके हाथ लग गया, उसने पत्थर पकड़ना सीखा फिर खोदने के लिये उस पत्थर का उपयोग किया । “अरे ! इससे तो इतने कम समय में आसानी से खोदा जा सकता है ।“ यह विचार उसके मस्तिष्क में दर्ज हो गया । इसके साथ ही वह अपने समूह का सबसे प्रभावशाली व्यक्ति हो गया, आखिर उसके पास खोदने वाला पत्थर था । धीरे धीरे अन्य लोगों ने भी पत्थरों का उपयोग करना शुरु किया । इसी तरह हिंसक जानवरों से स्वयं की रक्षा करने के प्रयास में एक दिन उसने पत्थर उछाल दिया हिंसक पशु डरकर भाग गया । उसके मस्तिष्क में यह विचार अंकित हो गया कि “पत्थर उछालने से जानवर डरकर भागते  हैं ।
उपसर्ग  :  इस पोस्ट में हमने मनुष्य और जानवर में अंतर की बात की है कि किस तरह अपने मस्तिष्क की क्षमता के फलस्वरूप मनुष्य जानवर से अलग हो गया । पता नहीं क्यों मुझे चर्चित कवि कथाकार एवं ब्लॉगर उदयप्रकाश की "सुअर के बारे में कुछ कवितायें " श्रंखला की यह कविता याद आ रही है , उनके संग्रह  "सुनो कारीगर" से साभार ,आज के उपसर्ग में प्रस्तुत है -
                              सुअर (दो)


एक ऊंची इमारत से 
बिलकुल तड़के 
एक तन्दरुस्त सुअर निकला
और मगरमच्छ जैसी कार में 
बैठ कर
शहर की ओर चला गया 


शहर में जलसा था 
फ्लैश चमके
जै- जै हुई
कॉफी - बिस्कुट बंटे
मालाएँ उछलीं


अगली सुबह 
सुअर अखबार में 
मुस्करा रहा था 
उसने कहा था 
 हम विकास कर रहे हैं 


उसी रात शहर से 
चीनी और मिट्टी का तेल 
ग़ायब थे ।  


(निवेदन : अगर आपने उदयप्रकाश जी का ब्लॉग न देखा हो तो एक बार अवश्य देख लें .)

बुधवार, 14 जुलाई 2010

कहाँ से आया था वो......

अब तक बहुत सारे विषयों पर हम लोग बात चीत कर चुके हैं । यह बृह्मांड कैसे बना , सूर्य चाँद सितरे ,पृथ्वी कैसे बने , पृथ्वी पर जीवन कैसे आया । सजीव और निर्जीव में क्या फर्क़ होता है , सजीवों के क्या लक्षण होते हैं आदि आदि । अब देखते हैं कि इस पृथ्वी पर मानव का आगमन कहाँ से हुआ और कैसे हुआ ? 
                                     पृथ्वी पर मानव कैसे आया ?
          पृथ्वी पर जीवन के आगमन के पश्चात अब मानव के आगमन का समय हो चुका था । यह 3.5 अरब वर्ष पूर्व की बात है जब पृथ्वी का तापमान 840 सेंटीग्रेड था । पृथ्वी के निर्माण के पश्चात  मानव शरीर की बनावट के लिये जो आवश्यक तत्व थे वे पृथ्वी पर  स्थित  जल में बनना  शुरु हुए । ओजोन की परत के अभाव में अल्ट्रावायलेट , इनफ्रारेड किरणे सीधे पानी में गिरना शुरु हुई । । इन घटक पदार्थों के मेलजोल से सजीव अमीबा जैसी कोशिका तैयार हुई । लगभग 3 करोड़ वर्ष पूर्व यहाँ दलदल था । उथले जल में रसायनों से मिलकर पहली सजीव कोशिका बनी इनमें जल कीट थे, घोंघे थे, रेंगनें वाले जीव थे, जिससे आगे चलकर सस्तन प्राणियों की उत्पत्ति हुई और मनुष्य बना । इस तरह हमनें मछलियों से साँस लेना सीखा । हमारे यहाँ यह मान्यता है कि मनुष्य का शरीर पंचतत्वों का बना है । मरने के बाद इसे मिट्टी कहते हैं ।
मुर्गी पहले आई या अंडा  - यह एक सनातन सवाल है जो अक्सर पूछा जाता है और उत्तर देने वाला हमेशा चकरा जाता है । लेकिन इसमें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है । इतना पढ़ने के बाद यह तो आप जान ही गये होंगे कि ना मुर्गी पहले आई ना अंडा । जीवन के क्रमिक विकास के तहत ही इनका उद्भव हुआ । सारे सजीव इसी तरह बने हैं । 
              चलिये फिर से इंसान की बात पर आ जाते हैं  । इंसान का जन्म भी इसी तरह जीवों के क्रमिक विकास के अंतर्गत हुआ है ।  आदि मानव के उदविकास के विभिन्न चरणों तथा उनकी निरपेक्ष तिथियों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि 40 लाख वर्ष पूर्व के मानव को आस्ट्रेलोपिथेकस कहा जाता था । यह मनुष्य पत्थरों का उपयोग करता था तत्पश्चात पिथिकेंथोप्रस मानव 20 लाख वर्ष पूर्व हुआ यह मानव दो पैरों पर चलना जानता था । नियेंडरथल मानव 2 लाख वर्ष पूर्व हुआ था तथा हमारे जैसे आधुनिक मानव की उत्पत्ति मात्र 40000 वर्ष पूर्व हुई है । यह समस्त क्रियाएँ विभिन्न चरणों में सम्पन्न हुई हैं इसलिये हम यह कह सकते हैं कि वह पहला मनुष्य आज के मनुष्य जैसा कतई नहीं दिखता था । उसके पास वह सब चीज़ें होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता जो आज हमारे पास हैं ।इसलिये उस मनुष्य से आज के मनुष्य की तुलना भी बेमानी है । हम क्या थे और आज क्या हो गये हैं जैसे ज़ुमले भी बेकार हैं । समय के अनुसार हर जीव में परिवर्तन होता रहता है । कौन कह सकता है कि आज से 10-20 हज़ार साल बाद का मनुष्य ऐसा ही दिखाई देगा ? उसके पास यह सब वस्तुएँ भी नहीं रहेंगी जो आज हमारे पास हैं । 
            चलिये अपना दिमाग़ लगाइये . और क्या क्या हो सकता है इतने हज़ार साल बाद ... इसलिये कि अगला लेख मैं दिमाग़ के बारे में ही लिखने वाला हूँ ।
उपसर्ग में  बाबा नागार्जुन की यह कविता ...इसका सन्दर्भ तो आप समझ ही सकते हैं ..
                              बाकी बच गया अंडा 
पाँच पूत भारत माता के , दुश्मन था खूँखार 
गोली खाकर एक मर गया बाक़ी रह गये चार 
चार पूत भारत माता के , चारों चतुर प्रवीन 
देश-निकाला मिला एक को , बाक़ी रह गये तीन 
तीन पूत भारत माता के , लड़ने लग गये वो
अलग हो गया उधर एक ,अब बाकी बच गये दो
दो बेटे भारत माता के , छोड़ पुरानी टेक 
चिपक गया है एक गद्दी से, बाक़ी बच गया एक
एक पूत भारत माता का . कन्धे पर है झंडा
पुलिस पकड़ के जेल ले गई, बाक़ी बच गया अंडा । 
  
छवि गूगल से साभार