दीपावली के समय की बात है । ( आप कहेंगे यह होली के समय मैं दीवाली की बात क्यों कर रहा हूँ ?, चलिये छोड़िये .. किस्सा सुनिये ) मैं घर से दूर किसी अन्य शहर में अपने मित्र के यहाँ था । पूजन के पश्चात मैने अपने मित्र से कहा चलो शहर की रोशनी देखकर आते हैं ।हम लोग जब निकलने लगे तो मैने उनसे कहा " दरवाज़ा तो बन्द कर दो । " उन्होने कहा " आज के दिन लक्ष्मी कभी भी आ सकती है , इसलिये दरवाज़ा बन्द नही किया जाता । " मैने कहा " और चोर आ गये तो ? " और सचमुच ऐसा ही हुआ । जब हम लोग लौटे तो चोर लक्ष्मीजी के पास रखी नकदी पर हाथ साफ कर चुके थे । मैने कहा .." देख लो , यह क्यों भूल गये कि जिस दरवाज़े से लक्ष्मी आ सकती है उससे जा भी तो सकती है ।"
ऐसा और भी शहरों में और भी लोगों के साथ हुआ होगा ।लेकिन इस किस्से का तात्पर्य यह कि इस तरह ठगे जाने से बचने के लिये हमे सायास विश्वास और अन्धविश्वास के इस दुष्चक्र से निकलना बहुत ज़रूरी है । अन्यथा हम जीवन भर उन्हीं मान्यताओं और जर्जर हो चुकी परम्पराओं को ढोते रहेंगे और इसका नुकसान उठाते रहेंगे । हाँलाकि इससे कोई विशेष नुकसान नहीं है , क्योंकि इतनी बुद्धि तो हम में है कि जैसे ही हमें नुकसान की सम्भावना दिखाई देती है हम सतर्क हो जाते हैं । लेकिन कुछ चालाक लोग, सामान्य लोगों की इस मनोवृति से हमेशा फायदा उठाते हैं और अक्सर सीधे-सादे लोग अन्धविश्वासों का शिकार बन जाते हैं । हम लाख सतर्कता बरतें लेकिन कहीं ना कहीं तो ठगे जाते ही हैं । अगर हम चाहते हैं कि हमारा जीवन सहज हो, सरल हो और इस प्रकार की दुर्घटनाओं से रहित हो तो इसके लिये हम वास्तविकता जानने का प्रयास करना होगा । हमें अपने आप को प्रशिक्षित करने की शुरुआत करनी होगी ।इसके लिये सबसे अधिक आवश्यकता है अपने आपको वैज्ञानिक दृष्टि से लैस करने की , अपने आप में इतिहास बोध जागृत करने की तथा ऐतिहासिक तथा वैज्ञानिक अध्ययन की ।
आप कहेंगे व्यस्तता के इस युग में अपनी रोजी-रोटी के लिये ज़द्दोज़हद करते हुए इतनी फुर्सत कहाँ है जो इसके लिये किताबें-विताबें पढ़ें । सही है , इसके लिये किताबें पढ़ने की ज़रूरत भी नहीं है । आप तो सिर्फ उसे याद करें जो बचपन से लेकर अब तक आपने अपनी शालेय व महाविद्यालयीन शिक्षा में पढ़ा है । बिना किताबें पढ़े भी हम अपनी सहज बुद्धि से आज जो कुछ हमारे सामने घटित हो रहा है उसका वैज्ञानिक विष्लेषण तो कर ही सकते हैं ।तर्क के आधार पर अन्धविश्वास कहकर बहुत सारी मिथ्या बातों को खारिज भी कर सकते हैं ।
हम अपने दैनन्दिन जीवन में ऐसा करते भी हैं । लेकिन कई बार स्थायी रूप से इसका प्रभाव नही पड़ता । कुछ समय बाद हम इसे भूल जाते है और दोबारा फिर उसी तरह की किसी घटना का शिकार हो जाते हैं ।शायद इसी लिये आये दिन हम अखबारों में ठगी की वही वही खबरें पढ़ते है.. “ नकली सोना देकर ठगा गया “ नकली बाबा बनकर जेवरात ले गया “ “झाड़फूँक से बच्चे की मौत “आदि आदि । हम पढ़े-लिखे लोग ऐसे लोगों की मूर्खता पर हँसते हैं और सोचते हैं कि काश इस तरह ठगे जाने से बेहतर लोग इसके बारे में पहले से जान लेते ।
लेकिन हम पढ़े-लिखे लोग और भी उन्नत तरीके से ठगे जाते हैं और इसका हमें पता भी नहीं चलता । उदाहरण के तौर पर मेरी जानकारी में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसने सौ ग्राम की टुथपेस्ट की ट्यूब से पेस्ट निकालकर जाँचा हो कि वह सौ ग्राम है या नहीं । न हम पेट्रोल की जाँच करते है न गैस की न गंगा जल लिखी बोतल की ,कि उसमे गंगा का जल है या नहीं । हम बहुत सारे विश्वासों की जाँच करना चाहते हैं लेकिन हमें विश्वास दिला दिया जाता है ..” आल इस वेल “ । कई बार विश्वास करने के लिये धर्म और ईश्वर के नाम पर भी हमें बाध्य किया जाता है । हम ठगे जाने से कैसे बचें रहें और कोई अन्धविश्वास भी हमारा कोई नुकसान न कर सके इसके लिये सबसे ज़्यादा ज़रूरी है हमारे जीवन में और हमारे आसपास घटित होने वाली हर घटना के पीछे का कारण जानना । इसके लिये हमारे पास पर्याप्त वैज्ञानिक व ऐतिहासिक ज्ञान व चेतना का होना भी आवश्यक है ।
इस ज्ञान के अंतर्गत कुछ प्रश्नों के उत्तर जानना अत्यंत आवश्यक है जैसे कि यह दुनिया कैसे बनी ? बृह्मांड का निर्माण कैसे हुआ ? सूर्य चांद सितारे कहाँ से आये ? पृथ्वी पर जीवन कैसे आया ?,मनुष्य का जन्म कैसे हुआ ? मनुष्य के विकास में उसके मस्तिष्क की क्या भूमिका रही ?,मस्तिष्क कैसे काम करता है ? हम इतर प्राणियों से अलग क्यों हैं ? हम मस्तिष्क में भूत-प्रेत सम्बन्धी सूचनाओं को कैसे दर्ज करते हैं ? हमे भय क्यों लगता है ? भय से मुक्ति कैसे सम्भव है ? हमारे व्यक्तित्व का निर्माण कैसे होता है ? ज्ञान क्या है ? विज्ञान क्या है ? मन क्या है ? आदि आदि ।
आप कहेंगे इन बातों का विश्वास –अन्धविश्वास से क्या सम्बन्ध है ? और यह सब तो हम जानते हैं ।सही है ,निरक्षरों की बात छोड़ भी दें लेकिन पढ़ा-लिखा हर व्यक्ति स्कूल कॉलेज में ,पाठ्य पुस्तकों में इन बातों को पढ़ चुका होता है, फिर भी वह अन्धविश्वासों से क्यों घिरा होता है ? क्यों वह अपने जीवन मे कई बार धोखा खाता है ? इस बात पर भी सोचने की आवश्यकता है । इन्हे इन प्रश्नों के परिप्रेक्ष्य में समझने की भी आवश्यकता है । इसका मूल कारण मनुष्य के मस्तिष्क में लागू वह दोहरी प्रणाली है जिसकी वज़ह से वह विश्वास और अन्धविश्वास के बीच झूलता रहता है और सही समय पर सही निर्णय नहीं ले पाता ।
यह कैसे घटित होता है यह जानने से पूर्व बृह्मान्ड की उत्पत्ति से लेकर मनुष्य की उत्पत्ति तक की कथा का संक्षेप में पुनर्पाठ ज़रूरी है । तो अगली पोस्ट से प्रारम्भ करते है उस समय की बात से जब इस दुनिया में कुछ नही था । - शरद कोकास
छवि गूगल से साभार