आज से लगभग बारह वर्ष पूर्व की यह घटना है. उन दिनो दुर्ग ज़िले में ज़िला साक्षरता समिति के अंतर्गत हम लोगों ने एक अन्द्धश्रद्धा निर्मूलन जत्था बनाया था । बाबाओं के भंडाफोड़ का नया नया शौक लगा था । एक दिन हमे खबर मिली कि पास ही डोंडीलोहारा विकासखन्ड के एक गाँव सुरेगाँव में एक स्त्री पर शंकर जी आये हुए हैं और वहाँ श्रद्धालुओं का मेला लगा हुआ है ,हज़ारों रुपये चढ़ावे में आ रहे हैं । अखबार में भी खबरें छप रही थीं कि सुरेगाँव की इस महिला को शंकर जी ने अग्निबाण मारा है और उसके शरीर पर नाग, त्रिशूल जैसे चिन्ह उभर गये हैं । साथ ही उस स्त्री के गर्भ में शंकर जी ने प्रवेश कर लिया है और शीघ्र ही अवतार लेने वाले हैं । हम लोग समझ गये कि हो न हो वह स्त्री किसी षड़यंत्र का शिकार हुई है । दुर्ग से समिति के प्रमुख निदेशक डी.एन. शर्मा जी के नेतृत्व में बुजुर्ग कार्यकर्ता बी.एल.परगनिहा , कलाकार डोमार सिंह , महिला कार्यकर्ता सुश्री उषा सिंह तथा सुषमा भंडारी के साथ हम लोग सुरेगाँव के लिये रवाना हो गये । रास्ते में हम लोगों ने ग्रामीण वेशभूषा धारण कर ली ताकि अजनबी से ना लगें । वहाँ जाकर हमें क्या करना है इसकी भी हमने तैयारी कर ली । रास्ते में ही बेशरम के पौधे से निकलने वाले दूध से हमने अपने हाथों पर नाग त्रिशूल जैसी आकृतियाँ बना लीं । हमने तय किया कि फिलहाल सिर्फ देखा जाये और यदि कुछ सकारात्मक हो सकता है तो विरोध किया जाये । इसके लिये हमने समिति के अध्यक्ष व जिलाधीश के सहयोग से स्थानीय पुलिस को भी साथ रख लिया था
जीप हमने गाँव के बाहर खड़ी कर दी और आम श्रद्धालुओं की तरह उस पंडाल में पहुंचे जहाँ वह स्त्री बैठी हुई थी । अद्भुत दृश्य हमने देखा ,एक स्त्री बाल खोले हुए झूम रही है ,उसके दोनो हाथ सामने हैं जिन पर उसे जलाये जाने के निशान मौजूद हैं , एक कुंड में अगर्बत्तियाँ जल रही हैं पास ही नारियल का ढेर लगा है, लोग साक्षात दंडवत कर रहे हैं , और रुपये चढा रहे हैं । हमने भी शंकर भगवान की जय कहकर लोगों से बात शुरू कर दी. अचानक हमारे एक कार्यकर्ता से रहा नहीं गया और उसने ज़ोरों से कहना शुरू कर दिया “यह सब बकवास है ,इसे कोई शंकर जी ने बाण-वाण नहीं मारा है, यह ढोंग कर रही है. ‘आदि आदि । हमारा प्लान यहीं गड़बड़ा गया । लोग हमारे विरोध
में खड़े हो गये । हाँलाकि हमने समझाने की कोशिश की । अपने हाथ पर बनाये अदृश्य निशानों पर राख रगड़कर बताया कि निशान ऐसे बनते हैं ,यहाँ तक कि शर्मा जी ने जलती अगरबत्ती लेकर अपने हाथों पर वैसे ही निशान बनाकर बता दिये । लेकिन अन्द्धश्रद्धालू जनता ने हमे कुछ कहने नहीं दिया । अंतत: पुलिस संरक्षण में हमें वहाँ से बचकर आना पड़ा ।
अगले दिन अखबारों में भी हमारी असफलता पर बहुत कुछ छपा लेकिन हम निराश नही हुए ।हमने जो कुछ देखा था वह तत्कालीन जिलाधीश श्री बसंत प्रताप सिंह को बताया । उन्होने अगले ही दिन वहाँ पुलिस भिजवाकर यह गोरखधन्धा बन्द करवा दिया । पुलिस की तफ्तीश से पता चला कि विगत पाँच वर्ष पूर्व उस स्त्री के पति ने उसे प्रताड़ित कर त्याग दिया था तथा वह अपने मायके में रह रही थी । वहाँ रहते हुए वह गर्भवती भी हो गई थी तथा इस वज़ह से मानसिक आघात लगने के कारण वह विक्षिप्तों की तरह व्यवहार करने लगी थी । उसे पुन: ससुराल में स्थापित करने और उसे मोहरा बना कर कमाई करने के उद्देश्य से उसके पिता तथा ससुर ने एक बैगा के साथ मिलकर यह षड़यंत्र किया तथा उसे जलती सलाख से दाग कर उसके शरीर पर नाग,त्रिशूल, डमरू जैसे निशान बनाये तथा प्रचारित किया कि उसे शंकर जी ने अग्निबाण मारा है तथा स्वयँ उसके गर्भ में आ गये हैं .अन्द्धश्रद्धालू जनता ने इसमे कहीं कोई तर्क नहीं किया और इस झूठी कहानी को आस्था वश सच मानकर उसकी पूजा करने लगी.पुलिस ने सच उगलवाया और सब दोषियों पर कार्यवाही कर केस दर्ज़ कर लिया.इस तरह यह सब बन्द हुआ ।
लेकिन ज़रा ,रूकिये अभी कथा का उपसंहार नहीं हुआ है .कुछ माह बाद ऐसे ही एक और स्थान पर जहाँ लता नामकी एक लड़की को हर सोम वार और गुरूवार को देवी आती थी (य़ह किस्सा अगली बार ) वह स्त्री हमे मिली तब तक उसकी मानसिक स्थिति सुधर चुकी थी और वह वहाँ अपनी रिश्तेदारी में आई थी ।उससे हमने पूछा “ क्यों शंकर जी का क्या हुआ ? तो उसने शरमाकर कहा , “लड़की हुई है “। हमने कहा कोई बात नहीं ,शंकर जी नहीं आये तो क्या हुआ पार्वती जी को तो भेज दिया ।चलो....खुश रहो ।
सावन के महीने में, इस किस्से में मज़ा आया हो तो अगली बार और सुनाऊँ ?
आपका शरद कोकास
(सभी चित्र गूगल से साभार )