सोमवार, 13 जुलाई 2009

आप सभी के प्रति आभारी हूँ

आदरणीय दिनेश राय द्विवेदी जी, अजित वडनेरकर जी,सर्वश्री अरविन्द मिश्रा,बालसुब्रमणियम जी, अनुनाद सिंह,अलबेला खत्री जी,स्वप्नदर्शी ,महामंत्री तस्लीम,राज भाटिया जी, मुरारी पारीक,महफूज़ भाई,मथुरा कलौनी,सुश्री लवली कुमारी,शोभना चौरे,सुमन जी,संगीता पुरी,अल्पना वर्मा जी,वन्दना जी,पाबला जी,भाई संजीव तिवारी और मेरे अन्य बहुत सारे मित्र । मेरे निवेदन “वैज्ञानिक चेतना के ब्लॉगर्स कृपया सलाह दें “ पर आप सभी की हार्दिक शुभेच्छाओं का मै स्वागत करता हूँ । आप लोगों के उत्साहवर्धन के फलस्वरूप मैने अपने अन्धश्रद्धा निर्मूलन सम्बन्धी क्रियाकलापों तथा व्याख्यानों को शब्द रूप देना प्रारम्भ कर दिया है ।और अभी तक लगभग तीस पृष्ठ मैं लिख चुका हूँ ।भारी भरकम वैज्ञानिक शब्दावली और सैद्धांतिक बातों से अलग हटकर इसे रोचक रूप में प्रस्तुत करने का मेरा प्रयास है । इस बात के लिये भी सतर्क हूँ कि सरलीकरण ऐसा भी ना हो कि यह बाल साहित्य लगने लगे । हमारे इधर लेखकों में यह उक्ति काफी प्रसिद्ध है कि कठिन लिखना तो सरल काम है लेकिन सरल भाषा में लिखना अत्यंत कठिन है । इस बात का अनुभव मुझे अब हो रहा है ।बहरहाल आप लोगों की प्रेरणा से मै इस महत्वपूर्ण काम में लगा हूँ और समाधानकारक स्थिति में पहुंचते ही इस लेखन को ब्लॉग पर देना प्रारम्भ करूंगा । इस बीच आप लोग इस ब्लॉग को विस्मृत न कर दें इसलिये अपने अनुभवों के भंडार से कुछ कथायें यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ । तो लीजिये प्रस्तुत है यह किस्सा

ज़मीन से डेढ़ फूट उपर चलने वाले भूत का किस्सा

महाराष्ट्र के ही एक गाँव का यह किस्सा है । बिलकुल गाँव जैसा ही गाँव था वह । ज़्यादातर किसान और मज़दूर ,कुछ छोटे-मोटे दुकानदार और लोहा,लकड़ी,चर्म आदि का काम करने वाले शिल्पी इन्ही की बस्ती थी ।एक प्रायमरी स्कूल और एक मिडिल स्कूल । अपनी रोज़मर्रा की परेशानियों के अलावा कुल मिलाकर ठीक-ठाक ही बीत रहा था सबका जीवन । अचानक एक दिन गाँव में खबर फैल गई कि गाँव के ही एक लड़के रामू ने शुक्रवार की शाम नहर के पार एक बड़ा सा भूत देखा है । फिर क्या था अगले ही शुक्रवार नहर के करीब लोगों की भीड़ जुट गई। ठीक आठ बजे लोगों ने देखा कि नहर की मेढ़ के उस पार ज़मीन से लगभग डेढ़-दो फीट उपर एक सफेद रंग का साया चला जा रहा है । सब साँस रोके उसे देखते रहे । धीरे धीरे वह साया आंखों से ओझल हो गया । अब यह होने लगा कि शुक्रवार आते ही सुबह से सारे लोग किसी अज्ञात आशंका से भयभीत हो जाते । बच्चों को उस दिन स्कूल नहीं जाने दिया जाता और लोग सारे काम जल्द ही निपटाकर अन्धेरा होने से पहले ही घर में दुबक जाते ।कुछ साहसी लोग फिर भी नहर के किनारे खड़े रहते और उस साये को निकलता हुआ देखते ।हाँ यह तैयारी उनकी ज़रूर रहती कि यदि वो साया गाँव की तरफ रुख करे तो दौड़कर अपने घरों में घुस जायें।फिर क्या था गाँव में कोई बीमार हो,किसी का जानवर मर जाये ,कोई भी अनहोनी हो उसका कारण वह साया माना जाने लगा ।खबर फैली तो नागपुर से कुछ अन्धश्रद्धा निर्मूलन समिति के कार्यकर्ता वहाँ पहुंचे ।शुक्रवार की शाम से ही उन्होने गाँव भर के लोगों को अपने विश्वास में लेकर वहाँ इकठ्ठा कर लिया ।जैसे ही आठ बजे और वह विचित्र साया नहर के पार दिखाई दिया कार्यकर्ता उस ओर बढ़ने लगे ।बुज़ुर्गों ने मना किया “काहे भैया जान जोखिम में डालते हो” लेकिन पाँच मिनट बाद ही लोगों ने देखा कि वे कार्यकर्ता उस साये को साथ लिये चले आ रहे हैं ।करीब आने पर लोगों ने देखा कि वह एक साँवले रंग का एक जवान आदमी था जो घुटनों तक धोती पहने हुए था और उसके कन्धों पर एक बूढ़ा बैठा हुआ था ।‘लो भई यह रहा आपका भूत” कार्य कर्ताओं ने कहा । पूछने पर पता चला कि वह पास के ही गाँव का एक किसान था जो हर शुक्रवार अपने लकवाग्रस्त कमज़ोर पिता का इलाज़ कराने पड़ोस के गाँव में किसी वैद्य के पास उन्हे ले जाता था । घुटने तक धोती पहने होने की वज़ह से और नहर की मेड़ के कारण काली टांगों वाला उसके नीचे का हिस्सा अन्धेरे में नहीं दिखाई देता था फलस्वरूप वह हवा में चलता हुआ महसूस होता था और कन्धे पर बूढ़े के बैठे होने के कारण उसकी लम्बाई सामान्य मनुष्य से अधिक और अजीब सी दिखाई देती थी । बस यही है इस कथा में रहस्य । और सन्देश यह कि जब भी कोई अजीब सी आकृति दिखे भूत समझ कर उससे डरो नहीं ,हिम्मत करके पास जाओ रहस्य अपने आप समझ में आ जायेगा
आपका-शरद कोकास

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर ढंग से आप ने यह कहानी बता कर बहुत से अन्धविश्वासियो का डर दुर किया, ओर अकसर होता भी ऎसा ही है.
    धन्यवाद

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  2. बिल्कुल ही सही कहा है आपने, डर हर समस्या का हल नहीं।

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  3. किसी घटना के जड में जाने की कोई हिम्‍मत नहीं जुटा पाते हैं .. भ्रांतियां ऐसे ही फैल जाया करती हैं।

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  4. हाँ सचमुच अंधविश्वास तो इसी तरह फैलता है। अपने ग्राम्य जीवन काल की इस तरह की घटित कुछ घटनाएँ याद हैं जिससे अंधविश्वास फैला।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  5. बहुत अच्छा प्रयास है। कथा भी रोचक रही। वह एक सब-टेक्स्ट भी लिए हुए है। हमारे गांवों में अब भी अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं। शहरों के साथ गांव तक अच्छी सड़कें नहीं हैं। बीमारों को अस्पताल पहुंचाने की कोई व्यवस्था नहीं है। वह बूढ़ा व्यक्ति खुशकिसमत है कि उसका एक तंदुरुस्त जवान बेटा है जो उसे कंधे पर अस्पताल ले जा सकता है। जिनके पास ऐसा कोई नहीं है, वे तो अपनी बीमारी लिए गांव में ही बैठे रहने को मजबूर होंगे।

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  6. हा...हा.. भय के पास जाने से भय समाप्त हो जाता है, इसलिए पास मत जाओ दूर ही रहो!!कुछ सस्पेंस रहने दो यार !!

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  7. अच्छा प्रयास...अन्धविश्वासों का तो निर्मूलन होना ही चाहिए किन्तु ये भी ध्यान रखना आवश्यक है कि अन्धविश्वास को मिटाने के चक्कर में कहीं अपने विश्वासों को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचे।

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  8. Qissa abhi nahee padha..!
    Meree jeevani to blog pe bikharee padee hai..! Profile me links hain...wo sabhi kuchh kartee hun..!
    Haan, kahaneee ki kitab publish ho chukee hai..kahaniyan maasikon me bhi chhap chukee hain..

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  9. मै वैसे ही ज़िंदगी मे कई बार ख़ुद उल्लू बनाई जा चुकी हूँ ..! मैंने तो केवल धागों से 'उल्लू ' बनाये हैं !!
    खैर...अब जो चाहे कहें,मै तो निशाचर बन चुकी हूँ...! ज़िंदगी के तक़ाज़े कुछ ऐसे ही रहे,कि, ये सृजनात्मक काम मुझे,रातों को जाग के ही करने पड़े...!
    Haan...ab ye aalekh padha..!

    Isee tarah kaa ek mazedaar qissa maine apne sansmaron me likha tha...!
    Phir kabhi dohra doongee..!

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  10. Aur ek 'bhoot'ke baareme padhen:

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    is blog pe.."bole too kaun-see bolee?' 1 pe..!

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  11. सन्देश यह कि जब भी कोई अजीब सी आकृति दिखे भूत समझ कर उससे डरो नहीं ,हिम्मत करके पास जाओ रहस्य अपने आप समझ में आ जायेगा....

    सही कहा आपने ....कुछ ऐसी ही टिप्पणी आपकी हेम जी के ब्लॉग पे भी देखी थी अच्छी लगी ......!!

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  12. जनाब आपने ," बोले तू कौन -सी बोली "का पहला भाग तो पढ़ा ही नही ...!

    "असली भूत " तो वहाँ है ...वैसे तो मेरे सारे blogs "भूतों के "(अतीत ) के साथ ही वास्तव्य करते हैं ..लेकिन ये भूत कुछ और ही है ...और यक़ीनन, इसके साथ आप सभी पाठक वाबस्ता हैं......! अब तो....नही,इसके आगे नही बता सकती..पढने का मज़ा ख़त्म हो जाएगा..!
    आप मराठी जानते हैं, तो इसकी अगली चंद कड़ियाँ आपको ज़रूर हंसां देंगी... ये वादा रहा...!

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  13. अपने ब्लॉग पर आपकी टिप्पणि के बाद आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया.आपका ब्लॉग और आपका प्रयास सराहनीय है. लेकिन जैसा आपने बताया था और मैंने आशा की थी, मेरी दुविधा(आपके अनुसार) का हल नहीं मिला. मैं प्रचलित अंधविश्वासों का समर्थक नहीं हूँ ,जैसा कि अपने लेख में मैंने कहा है. मेरा मानना है कि -
    १- प्रचलित अंधविश्वास के अनुसरण से किसी का कोई अहित न होता हो तो उसे मानने में कोई हर्ज नहीं.' यह मान्यता या प्रथा अंधविश्वास है, मैं इसे इसीलिए नहीं मानूंगा ,भले ही इससे मेरा लाभ होता हो.' यह धारणा भी अपने आप में अंधविश्वास है.
    २-यह सर्वज्ञात है और आपने भी अपने पिछले लेखों में कहा है कि अनेक विश्वास वैज्ञानिक खोजों के बाद कालांतर में गलत निकले .उसी तरह यह भी सभव है कि अनेक बातें जिन्हें आज हम अंध विश्वास मानते हैं भविष्य में वैज्ञानिक सत्य निकल आयें. इसलिए यदि उस अंधविश्वास को अपनाने से कोई नुक्सान नहीं तो अपना लेना चाहिए.

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  14. Aisi aneko ghatnae hoti hai sirf mati bhram hai.par bhole log imhe alokik man lete hai.

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अन्धविश्वासों के खिलाफ आगे आयें