शनिवार, 15 अगस्त 2009

जिसके नाम से ज्योत हिली वो डायन है





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महाराष्ट्र में वरुळ के पास चांदस- वाठोडा गाँव का यह कि
स्सा है । गाँव के लोग उस दिन सुबह से ही नहा धोकर तैयार बैठे थे । आज उनके गाँव मे ज्योत देखने वाला मांत्रिक आने वाला था । गाँव में पता नहीं कौनसी बीमारी फैली थी कि बच्चों को बुखार आने लगा था । गाँव वालों का ऐसा विश्वास था कि उन्ही के गाँव का कोई व्यक्ति बच्चों पर जादू टोना कर रहा है । दोपहर बाद मांत्रिक का आगमन हुआ । उसने गाँव के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के घर में पहले से लिपे–पुते स्थान पर अपना आसन जमाया । एक कोने मे सबसे पहले पानी छिड़ककर उस स्थान की पूजा की । जिस बच्चे को बुखार था उसके शरीर से अंजुलि भरकर ज्वार उतार कर उस कोने में रख दी और उस से बजरंग बली की आकृति बनाई । मराठी में इसे “जोन्धळ्याचा हनुमान काढ़णे “कहते हैं । फिर एक धागा लेकर उससे एक क्रॉस बनाया और उसके बीच मे एक दिया रखा । दिये मे ज्योत जला कर वह उकड़ूँ बैठ गया और अपने दाँयें हाथ की तर्जनी और अंगूठे के बीच उस धागे का सिरा पकड़ लिया । उस दिये को उसने अनाज के बनाये हनुमान के उपर अधर में रखा और मंत्र बुदबुदाने लगा साथ ही वह गाँव के विभिन्न लोगों के नाम भी लेने लगा । अचानक हिलती हुई ज्योत एक नाम के उच्चारण करते ही स्थिर हो गई । वह गाँव की एक स्त्री का नाम था
फिर उस स्त्री को डायन या “कर्नाटकी बताकर उसके साथ क्या हुआ यह बताने की आवश्यकता नहीं उस पर जादू टोने का आरोप लगाया गया । उसे अपमानित किया गया उसके साथ मारपीट भी की गई । अन्धश्रद्धा निर्मूलन समिती नागपुर के श्री हरीश भाई देशमुख को जब यह पता चला तो वे अपने कार्यकर्ताओं के साथ उस गाँव में गये और अपनी उपस्थिति में पुन: उस मांत्रिक से यह ज्योत हिलाने का कार्यक्रम करवाया । फिर उसकी पोल खोलते हुए उन्होने गाँव वालों को खुद ही यह क्रिया करके बतलाई । उन्होने बताया कि वास्तव मे यह दिया गुरुत्वाकर्षण के नियमानुसार पेंडुलम की तरह हिलता है । दिया अपने आप नहीं हिल सकता और उसे वह मांत्रिक ही अपनी मर्ज़ी के अनुसार हिलाता है और जिस नाम पर रोकना चाहे रोक सकता है । यह सब हाथ की चालाकी है । गाँव वालों ने भी यह क्रिया स्वयं करके देखी ।
हरीश भाई ने यह घटना बहुत पहले बताई थी और यह उनकी पुस्तक “शकुन अपशकुन में प्रकाशित भी हो चुकी है । लेकिन वास्तविकता यह है कि “ ज्योत पाहणे ” या ज्योत देखने का यह अन्धविश्वास अब भी पूरी तरह गाँवों से दूर नहीं हुआ है । यहाँ तक कि समाज के पढ़े-लिखे और प्रतिष्ठित लोग भी इसमें विश्वास करते हैं। कुछ लोग वास्तविकता जानते हैं लेकिन वे किसी को प्रताड़ित करने के लिये जानबूझ कर यह कार्य करवाते हैं । वे नहीं जानते कबीरदास जी ने कहा है..”निर्बल को न सताईये जाकी मोटी आह ..”
आपका- शरद कोकास
(छवि गूगल से साभार)

6 टिप्‍पणियां:

  1. वास्तविकता यह है कि “ ज्योत पाहणे ” या ज्योत देखने का यह अन्धविश्वास अब भी पूरी तरह गाँवों से दूर नहीं हुआ है । यहाँ तक कि समाज के पढ़े-लिखे और प्रतिष्ठित लोग भी इसमें विश्वास करते हैं।
    सही लिखा हॆ आपने

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  2. मैं ऐसे अंधविश्वासों की कठोरता के साथ निंदा करता हूँ!
    आपके इस अभियान में हम आपके साथ हैं!

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  3. भाई कोकास नासा युगों बाद शोध कर रहा है, पर वेद और पुराणों में जो संकेत हैं वे उन लोगों की स्मृति कथा हैं जिन्हें किसी शायद नष्ट होते ग्रह से ( संभवतः ब्रह्मलोक से धरती पर बसाया गया) जब हम सृष्टि निर्माण और समुद्र मंथन की कथा पढ़ते हैं तो काफी कुछ इस का आभास होता है। समुद्र मंथन की कथा तथा कुछ अन्य ऐसे प्रसंग मेरे इसी ब्लाग पर हैं, नासा की आधिकारिक साइट एक ही फिर भी जहां धूमकेतु से जीवन आने का लेख है उसका लिंक में आपको दे रहा हूं http://astrobiology.nasa.gov/
    इस पर यह दूसरा लेख है- जिसका शीर्षक है-
    NASA Researchers Make First Discovery of Life's Building Block in Comet

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  4. sarad ji mai bhi aap ke saath hun aur yaise kisi bhi andhviswaash ka virodh karta hun jisse maanvata ki haani hoti ho ,,,
    saadar 3

    praveen pathik .
    9971969084

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