सोमवार, 15 मार्च 2010

कौन थे जो मर गये पिछली सर्दियों में

पिछली पोस्ट से इतना ज़रूर याद रखें - सूर्य से निकला हुआ प्रकाश 8 मिनट में हम तक पहुंचता है । यह ऐसे होता है कि प्रकाश एक सेकंड में 3 लाख कि.मी. दूरी तय करता है, एक मिनट में (300000x60)कि.मी.,एक घंटे में (300000x60x60)कि.मी.,एक दिन में (300000x60x60x24)कि.मी.,तथा एक वर्ष में (300000x60x60x24x365) कि.मी. अर्थात 10लाख करोड़ कि.मी. यह दूरी एक प्रकाशवर्ष कहलाती है । इस तरह सूर्य हमसे 8 प्रकाश मिनट अर्थात(300000x60x8)=14.4 या लगभग 15 करोड़ कि.मी. दूर हुआ । और अब आगे...मस्तिष्क की सत्ता - सात 

                                  बृह्मांड में हमारी औकात क्या है

          रोजमर्रा की ज़िंदगी में हमारे धैर्य की रोज़ परीक्षा होती है । जब हमे पता चलता है कि किसी ने हमारी किसी बात को लेकर विपरीत टिप्पणी की है तो हम अपना आपा खो बैठते  हैं और गुस्से में कहते हैं “ आखिर उसकी औकात ही क्या है बड़ा आया हमे ज्ञान देने वाला “ ( मुझे पता है कुछ लोग मेरे बारे में भी यही सोच रहे होंगे ) लेकिन सच्चाई यह है कि इस दुनिया में हम अपनी ही औकात नहीं जानते ।जानते भी हैं तो सिर्फ अपने घर में या ज़्यादा से ज़्यादा पड़ोस में ।यह कहावत यूँही नहीं बनी है कि “अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है । “
खैर हम कुत्ते हों या शेर रहेंगे तो जानवर के जानवर ही ना । बेहतर है हम मनुष्य की तरह इस बारे में सोचें कि इस ब्रह्मांड में हमारी क्या औकात हो सकती है । आप कहेंगे ,यह तो हमने कभी सोचा ही नहीं । चलिये पहले देखें कि यह बृह्मांड क्या बला है । यह तो आप जानते ही हैं कि हमारी पृथ्वी,अन्य ग्रहों व सूर्य को मिलाकर एक सौरमंडल बनता है । ऐसे अनेक सौरमंडलों से बनती है आकाशगंगा और ऐसी अनेक आकाशगंगाओं से मिलकर बनता है बृह्मांड । इतने विशाल बृह्मांड के बारे में जानने के लिये एक जीवन बहुत छोटा है । लेकिन हमें यह एक जीवन ही मिला है और अगला जन्म होना नहीं है ,इसलिये थोड़ा बहुत तो हमें इसी जीवन में इस बारे में जानना ही चाहिये ।
यह तय करने के लिये कि इस बृह्मांड में हम कहाँ हैं चलिये एक छोटा सा गणित और हल करते हैं ।( फिर एक गणित ?? ) मान लीजिये हमारी पृथ्वी की आबादी लगभग छह सौ करोड़  है ,इस तरह   हम हमारी पृथ्वी के 600 करोड़वें हिस्से हैं । हमारा सौर परिवार हमारी आकाशगंगा का 64 करोड़वाँ हिस्सा है तथा हमारी पृथ्वी हमारी आकाशगंगा का 25 हज़ार करोड़वाँ हिस्सा है । अब बताइये इस आकाशगंगा में हम कहाँ हुए ? फिर ऐसी करोड़ों आकाशगंगाएं बृह्मांड में हैं तो हम बृह्मांड में कहाँ हुए ? गणना छोड़िये , यह सोचिये कि जब हम बृह्मांड में इतने नगण्य हैं तो मामूली कुत्ते,बिल्ली,चीटीं और मच्छरकी क्या स्थिति होगी ? उनसे भी छोटे हैं कीटाणु जो आकार में मिलीमीटर के हज़ारवें भाग तक होते हैं जो केवल माईक्रोस्कोप से देखे जा सकते हैं और जिन्हे माईक्रोमीटर में नापते हैं। इनसे भी छोटे होते हैं अणु । अणु के विभिन्न हिस्से हैं परमाणु जो पदार्थ का सूक्ष्मतम भाग है। समस्त बृह्मांड इन्ही अणुओं से बना है। परमाणु को इलेक्ट्रोन ,प्रोटान व न्यूट्रान में विभाजित कर सकते हैं । ये मूलभूत कण हैं , इलेक्ट्रोन इनमें सबसे छोटा कण है । यह वैज्ञानिक जानकारी है जिसे आपने किताबों में भी पढ़ा होगा ।
ज़्यादा विस्तार में न जायें ,मूल प्रश्न यह है कि बृह्मांड में जब हमारी स्थिति इतनी नगण्य है तब अपनी स्थिति जानने के पश्चात भी हमारे में मन में अहंकार क्यों आता है ? अपनी क्षुद्रता को जानकर भी हम जाति ,धर्म ,नस्ल ,भाषा, क्षेत्र ,राज्य ,सम्पन्नता के नाम पर क्यों लड़ते हैं ? एक दूसरे के खून के प्यासे क्यों रहते हैं ? क्या यह हमारा अहंकार नहीं है जो हमे नई जानकारी प्राप्त करने,नई बातें सीखने से रोकता है , हम अपने आप को सर्वज्ञ समझने लगते हैं , हम सिर्फ अपनी कहना चाहते हैं और किसीकी कुछ नहीं सुनना चाहते । हम अपने विचार को ही अंतिम मानते हैं । हम अपना लिखा पत्थर की लकीर समझते हैं । हम अपने आगे हर किसी को तुच्छ समझते हैं । सोचकर देखिये यदि हमारे पूर्वज भी ऐसे ही अहंकारी होते तो क्या आज विज्ञान इतनी प्रगति कर पाता ? अगर हम यह मान लेते  कि हमें सब कुछ आता है और हम सबसे बड़े ज्ञानी हैं तो आज भी उसी तरह पेड़ की छाल लपेटे घूमते रहते और जानवरों का शिकार करते रहते । न विज्ञान की कोई बात अंतिम है न धर्म की ,इसलिये सबसे पहले अपने मन से इस अहंकार को निकाल फेंकिये कि आपस में  लड़- झगड़कर हम कुछ बड़ा काम कर जायेंगे । लड़ना ही है तो आततायियों से लड़िये ..भूख ग़रीबी बेरोजगारी और मनुष्य द्वारा पैदा की गई समस्याओं से लड़िये ।
खैर ..जबसे पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म हुआ है ,यह सब चल ही रहा है ..जाने कितने लोग इस पृथ्वी पर आये और चले गये किसको याद है ,वे कौन थे ? हम से ही कोई पूछे कि हमारे पिता के पिता के पिता के पिता कौन थे , क्या हमे याद है उनका नाम ? हमें भी कौन याद रखेगा ?और कितने साल याद रखेगा ? बृह्माण्ड की कथा यहीं समाप्त की जाये ..अगली बार बातें करेंगें इस पृथ्वी की ।
एक निवेदन - मेरा यह लिखने का उद्देश्य भी किसी की ओर इंगित करना नहीं है । मैं एक तुच्छ् प्राणि किसी को क्या कह सकता हूँ । इसलिये कृपया विषय से सम्बन्धित टिप्पणी ही करें जिसमे किसी व्यक्ति विशेष की ओर संकेत न हो


और अब उपसर्ग में कवि संजय चतुर्वेदी की यह छोटी लेकिन गम्भीर कविता उनके कविता संग्रह "प्रकाशवर्ष " (आधार प्रकाशन पंचकूला से वर्ष 1993 में प्रकाशित ) से साभार -डॉ.संजय चतुर्वेदी किंग जॉर्जेज़ मेडिकल कॉलेज (अब छत्रपति शाहू जी मे.कॉ.)लखनऊ से एम.डी. हैं ।
             जो मर गये पिछली सर्दियों में
लोग भूल जाते हैं 
कौन लोग थे 
जो उन्हे इतिहास से निकालकर लाये 
उन्हे खींचते रहे 
उनकी गर्म रज़ाइयों से बाहर 
लकड़ियाँ इकठ्ठा करते रहे 
कहीं मौसम ज़्यादा खराब न हो जाये 
उनके सहमे हुए घरों में आवाज़ बनकर रहे 

लोग भूल जाते हैं वसंत आते ही 
कौन थे जो मर गये पिछली सर्दियों में ।

सस्नेह आपका - शरद कोकास  
( चित्र गूगल से साभार )                                                                                                                            
 

29 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी ज्ञानवर्धक पोस्ट्।
    बधाई

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  2. वाकई सोचने योग्य है कि ब्रह्मांड में हमारी औकात क्या है...मगर इस जरुरी बात को भूल बस...

    उम्दा आलेख.

    संजय चतुर्वेदी जी रचना बहुत पसंद आई:

    लोग भूल जाते हैं वसंत आते ही
    कौन थे जो मर गये पिछली सर्दियों में ।

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  3. लोग भूल जाते हैं
    कौन लोग थे
    जो उन्हे इतिहास से निकालकर लाये
    उन्हे खींचते रहे
    उनकी गर्म रज़ाइयों से बाहर

    .........लाजवाब पंक्तियाँ ..........

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  4. Aap pakke wale bade bhai ho ekdam.. aaj ki ek-ek baat lagta hai soch meri aur shabd aapke hain..
    jane kitni baar yahi baaten socha hoon

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  5. शरद जी एक सी गणना सोचने पर मजबूर कर देती है की सच में इस ब्रम्‍हांड में हम तो गायब से ही है और फिर भी छोटी छोटी बात पर झूठे अहम की लड़ाई लड़ते रहते है...बहुत बढ़िया बात कही आपने..

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  6. सुंदर और ज्ञानवर्धक। इस वास्तविकता के बाद भी लघुत्तम जीवन भी जीवन है। वह महत्वपूर्ण है।

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  7. जाने कितने लोग इस पृथ्वी पर आये और चले गये किसको याद है ,वे कौन थे ? हम से ही कोई पूछे कि हमारे पिता के पिता के पिता के पिता कौन थे , क्या हमे याद है उनका नाम ? हमें भी कौन याद रखेगा ?और कितने साल याद रखेगा
    लोग भूल जाते हैं वसंत आते ही
    कौन थे जो मर गये पिछली सर्दियों में ।


    बेहद शानदार प्रस्तुती , कितनी सच्चाई है इस आलेख में......जिन्दगी की भागम भाग में इन बातो पर ध्यान ही नहीं जाता.....सोचने को मजबूर करती हैं पंक्तियाँ....
    regards

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  8. बृह्मांड में जब हमारी स्थिति इतनी नगण्य है तब अपनी स्थिति जानने के पश्चात भी हमारे में मन में अहंकार क्यों आता है ? अपनी क्षुद्रता को जानकर भी हम जाति ,धर्म ,नस्ल ,भाषा, क्षेत्र ,राज्य ,सम्पन्नता के नाम पर क्यों लड़ते हैं ?
    काश लोगों को इसका अहसास हो पाता !!

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  9. एक सार्थक पोस्ट के लिये हार्दिक धन्यवाद
    प्रणाम स्वीकार करें

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  10. लोग भूल जाते हैं वसंत आते ही ...
    क्या कह रहे हैं शरदजी ...शमशान से बाहर आते ही भूल जाते हैं ...मौसम बदलने का इन्तजार कौन करता है ....

    ब्रह्माण्ड में हम सबकी क्या औकात है ...अच्छा परिभाषित कर दिया है आपने ...
    ज्ञानवर्धक प्रविष्टि के लिए आभार ....!!

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  11. Apne aap ko Mayawati ke qahar se bachaiye.. King George medical college(KGMC) ab Chhatrapati Shahu ji Maharaj(CSJM)medical college ho chuka hai.. :)

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  12. @धन्यवाद दीपक , वांछित परिवर्तन कर दिया है । अब तो बच जाउंगा ना ???

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  13. शरद कोकास लेकिन भुलना ही पडता है उन्हे, लेकिन दिल मे फ़िर भी बसे रहते है, अगर ना भुले तो जीना कठिन हो जाये....

    लेकिन जिस आंदाज मै आप ने लिखा वो भी काबिले तारीफ़ है, ओर आप की रचना सोचने पर मजबूर करती है कि.... हम कोन है क्या है हमारी ऒकात, क्यो हम बात बात पर दुसरो को झुकाने पर मारने पर उतारू है.... कोन रखे गा हमे याद??????
    धन्यवाद

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  14. बहुत ही गंभीर विषय है और ब्रह्माण्ड में हमारी क्या जगह है ये सोचने की बात है! बहुत ही बढ़िया और ज्ञानवर्धक पोस्ट! बधाई!

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  15. स्थिति इतनी नगण्य है तब अपनी स्थिति जानने के पश्चात भी हमारे में मन में अहंकार क्यों आता है ? अपनी क्षुद्रता को जानकर भी हम जाति ,धर्म ,नस्ल ,भाषा, क्षेत्र ,राज्य ,सम्पन्नता के नाम पर क्यों लड़ते हैं ? एक दूसरे के खून के प्यासे क्यों रहते हैं ? क्या यह हमारा अहंकार नहीं है जो हमे नई जानकारी प्राप्त करने,नई बातें सीखने से रोकता है ,waah kya kahne laazwaab ,samjhne ki jaroort hai sirf kahne ki nahi ,sharad ji bahut sundar .

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  16. लोग भूल जाते हैं
    कौन लोग थे
    जो उन्हे इतिहास से निकालकर लाये
    उन्हे खींचते रहे
    उनकी गर्म रज़ाइयों से बाहर
    लकड़ियाँ इकठ्ठा करते रहे
    कहीं मौसम ज़्यादा खराब न हो जाये
    उनके सहमे हुए घरों में आवाज़ बनकर रहे


    लोग भूल जाते हैं वसंत आते ही
    कौन थे जो मर गये पिछली सर्दियों में ।dono cheeje itni behtar lagi ki tippani bhi khsiyat bataane ke liye alag alag kiya .laazwaab rachna

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  17. अच्छा चिंतन.

    मन का संकरापन ही हमारे अंदर के सत्य को मेनिफ़ेस्ट होने नहीं देता.

    गुडी पाडवा पर आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.

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  18. sharad ji vigyan aur khas taur par antriksh vigyan me aapki gehri ruchi lagti hai... bahut gyanvardhak... aam aadmi ka bhi sarokar hona chahiye.. upsarg aapka bahut saarthak hai.. badhiya prastuti..

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  19. ज्ञान पिपासा में वृधि कर खुद को आगे और आगे बढ़ाते जा रहे हैं वरना आपका कथन उचित है ... ब्रह्माण्ड में हमारा अस्तित्व ही क्या है ....

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  20. kokasji,
    behatreen jaankaariyaa he..., bahut kuchh padhhi hui bhi, kintu yaaddasht taazaa ho rahi he.../ majedaar, aour bahut hi jaanane samjhane laayk...likhate rahiye..

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  21. Bahut achi jankari mili..sath hi rachna bhi lajavab ha bahut2 badhai..

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  22. लोग भूल जाते हैं वसंत आते ही
    कौन थे जो मर गये पिछली सर्दियों में ।
    Bahut khoob!

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  23. दूर से तस्वीर ऐसे लग रही है मानो..लाखों फूल खिले हों कहीं....

    और अगर इस बाग़ में सही में हमें उतार दिया जाए...
    तो कसम से दम घुट जाएगा...

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  24. Achhi chot kee hai Sharad Babu 'main' par!
    Na kuchh tera, na kuchh mera!
    Ye duniya ek rain basera!!!
    Phir kahe ko saari umariya,
    Paap ki gathri dhoye!!!
    --Tuchh 'main'!!!

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