गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

चन्दामामा के नाना सूरज तो हमारे कौन ?


पिछली पोस्ट से इतना ज़रूर याद रखें -                                                                                 
          आइये ,इस सिद्धांत के आधार पर देखें कि हमारी पृथ्वी कैसे बनी । साढ़े चार अरब वर्ष पूर्व सूर्य के निकट से एक पिन्ड गुजरा ,दोनों पिन्डों में आकर्षण हुआ । सूर्य से जो तंतु निकला कालांतर में उसके ठंडे  होने  पर तथा द्रव्य के शीतली करण के कारण उसके छोटे छोटे पिंड बने । ये तमाम पिंड उस सूर्य की परिक्रमा करने लगे जो उनका जनक था । यह सभी पिंड ग्रह कहलाये  जिनमें हमारी पृथ्वी भी एक ग्रह है और उसके भाई बहन हैं अन्य ग्रह । हमारे सबसे करीब यही ग्रह है जिस पर हम खड़े हैं लेकिन इसका हमारी कुंडली में कहीं कोई स्थान नहीं है । और वह पिन्ड जिसके आकर्षण के फलस्वरूप हमारे सौरमंडल की उत्पत्ति हुई हो सकता है अपनी संतानों के साथ बृह्मांड में कहीं विचरण कर रहा हो ।      
  और अब आज की कड़ी -  चन्दा का और हमारा रिश्ता मामा-भांजे का है यह बात हमे बचपन में ही बता दी जाती है ।बड़े होकर हम चांद सी महबूबा वगैरह ढूंढने लगते हैं । लड़कियाँ चांद सी सूरत पाने को बेताब रहती हैं वहीं लड़के भरी जवानी में सर पर चांद निकलने से घबरा जाते हैं । जो लोग बहुत महत्वाकांक्षी होते है उनके बारे में कहा जाता है कि वह चांद को छूने की कोशिश कर रहा है ।लेखक सुरेन्द्र वर्मा ने तो एक उपन्यास ही लिख डाला है “ मुझे चांद चाहिये “ ।इसी चांद के कैलेंडर पर हमारे सारे तीज त्योहार आधारित हैं ।“करवा चौथ " के चांद से तो आप भलिभाँति  परिचित हैं हमारी फिल्मों और धारावाहिकों ने इस पर्व का महत्व स्थापित कर दिया है । पति कैसा भी हो उसके लिये पत्नी व्रत ज़रूर रखती है । पत्नी के लिये पति द्वारा रखे जाने वाले व्रत का अभी तक अविष्कार नहीं हुआ है । यह भी आप जानते होंगे कि हिन्दू धर्म के अलावा इस्लाम में भी सारे त्योहार चांद के घटने - बढ़ने पर ही आधारित होते हैं ।चांद का कैलेंडर ही मनुष्य का पहला कैलेंडर था  ।  
चलिये देखते हैं कि जिस चांद का हमारे जीवन में इतना महत्व है उसका जन्म कैसे हुआ । सूर्य की बेटी पृथ्वी का जन्म हो चुका था फिर उसका अन्नप्राशन हुआ,नामकरण हुआ और वह धीरे धीरे बड़ी होने लगी । फिर उसकी भी संतान होने का समय आया । पृथ्वी और अन्य ग्रह अपनी उत्पत्ति के समय से ही अपने जनक सूर्य के चारों ओर एक कक्षा में परिक्रमा करने लगे थे । प्रारम्भ में  यह कक्षा पूरी तरह वृताकार या दीर्घ वृताकार नहीं थी, इसका कारण पिंडों का परस्पर आकर्षण व अन्य शक्तियों का होना था ।
यह कैसे हुआ होगा जानने के लिये चलिये एक धागे में कोई अंगूठी या भारी वस्तु लटकाईये और उसे गोल गोल घुमाईये,,हाथ सधने में कितनी देर लगती है देखिये । हाँ तो धीरे धीरे कक्षाएँ पूर्ण होती गईं । यह सम्भव है कि जब ग्रह सूर्य के चारों ओर अपूर्ण व अव्यवस्थित कक्षाओं में परिक्रमा लगा रहे थे , कोई ग्रह सूर्य के बहुत निकट पहुंच गया हो तथा गुरुत्वाकर्षण के कारण उसमें से कोई तंतु निकल पड़ा हो । कालांतर में यह तंतु ठंडा हुआ, उसके द्रव्य का शीतलीकरण हुआ तथा उसके छोटे छोटे पिंड बन गये । यही पिंड उपग्रह कहलाये जिस प्रकार ग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहे थे उसी तरह यह उपग्रह भी अपने ग्रह की परिक्रमा करने लगे । जैसे पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह चन्द्रमा जो पृथ्वी से चार लाख किलोमीटर दूर है अपनी जननी की परिक्रमा कर रहा है । शनि के उपग्रह उसकी परिक्रमा कर रहे हैं । पृथ्वी अपने जनक सूर्य की परिक्रमा कर रही है साथ ही अपने अक्ष पर भी परिक्रमा कर रही है । सभी ग्रह एक ही दिशा में सूर्य की परिक्रमा करते हैं तथा इनकी कक्षाएँ एक ही समतल में हैं ।
यह सब चक्कर हमारे जीवन में भी चलते है किसी काम को पूरा करवाने के लिये हम सरकारी दफ्तर में बाबू के चक्कर लगाते हैं, बाबू साहब के चक्कर लगाता है, साहब मंत्री के चक्कर लगाता है और मंत्री प्रधान मंत्री के चक्कर लगाता है । काम होता है या नहीं होता यह अलग विषय है ।
और हाँ.. आप आकाश में प्रतिदिन चांद की स्थिति देखना चाहते हैं तो ज़रा साइड बार में देखिये आपके आसमान पर आज चांद कैसा दिख रहा है दिख जायेगा ।


उपसर्ग में प्रस्तुत है एक गुमनाम से शायर शब्बीर अहमद ख़ान “ करार “ की यह कविता । करार साहब उन दिनों कामठी (महाराष्ट्र) में रहते थे और भोपाल के क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालय में एक वर्षीय बी.एड .के छात्र थे । उन दिनों कॉलेज की पत्रिका “प्रज्ञा” में यह कविता प्रकाशित हुई थी । इस पत्रिका के सम्पादक थे आज के प्रसिद्ध कवि श्री लीलाधर मण्डलोई । चांद पर मनुष्य की विजय पर तीखा व्यंग्य करती यह कविता पढ़िये ।

                                   धरती माँ के लाल गये थे
 
बहुत सभ्य कहलाने को
निज कौशल दर्शाने को
बुद्धि का लौह मनाने को
धरती माँ के लाल गये थे
चांद पे मिट्टी लाने को
धरती का बोझ बढ़ाने को ।

वियतकांग में आग लगाकर
जाने कितने बम बरसाकर
लाखों जीवन दीप बुझाकर
लाशों के अम्बार लगाकर
अपने ऐब छुपाने को
धरती माँ के लाल गये थे
चांद पे मिट्टी लाने को
धरती का बोझ बढ़ाने को ।

मिट्टी का पुतला मिट्टी से
जितनी दूर भी जायेगा
ऊपर-नीचे आगे-पीछे
मिट्टी ही तो पायेगा
मन मिट्टी हो जायेगा
करनी पर पछतायेगा
मिट्टी ही लेकर आयेगा
यह जग को समझाने को ।

धरती माँ के लाल गये थे
चांद पे मिट्टी लाने को
धरती का बोझ बढ़ाने को ॥

"मस्तिष्क की सत्ता "लेखमाला की यह कड़ी आपको कैसी लगी अवश्य बताइयेगा । - शरद कोकास
छवि गूगल से साभार

13 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi achha our vaigyaanik lekh.jaadu-tona our andhaviswas se vigyaan kaa sada hi yuddh chalaa hai lekin jaruri hai ki vigyan ki jeet ho,aisa hoga bhi.vigyan ki jeet me aapka sahayog prabhavi bhumika nivaahegi......subhakaamanaaye.

    pls is vaakya par vichar karen...इनकी कक्षाएँ एक ही समतल में हैं । shaayed sabhi graho ki kakshaaye samatal me nahi hai. lekin 2 dimensional papar par aise dikhanaa padataa hai. dhanyavaad.

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  2. खेल खेल में विज्ञान की कक्षा जैसा लगने लगा है ब्लॉग ...
    आप कितना ही बता दीजिये कि चाँद सिर्फ एक उपग्रह है ...हमें तो व्रत उपवास उसे देखकर ही खोलने हैं ....कौन रोज -रोज कुतर्की होने का उलाहना झेलेगा ...:):)

    विज्ञान को रोचक बनाने में आपकी भूमिका सराहनीय है ...!!

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  3. विज्ञान को रोचक बनाने में आपकी भूमिका सराहनीय है ...!!

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  4. "
    "
    बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
    ढेर सारी शुभकामनायें.

    संजय कुमार
    हरियाणा
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  5. आपका समझाने का तरीक़ा बहुत बढ़िया है!

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  6. बढ़िया लिखा है शरद जी ..रोचक ..

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  7. बहुत रोचकता से विषय वस्तु प्रस्तुत की है, आभार आपका!

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  8. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! रचना की हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी! इस बेहतरीन रचना एवं ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए बधाई !

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  9. 阿彌陀佛 無相佈施


    不要吃五辛(葷菜,在古代宗教指的是一些食用後會影響性情、慾望的植
    物,主要有五種葷菜,合稱五葷,佛家與道家所指有異。

    近代則訛稱含有動物性成分的餐飲食物為「葷菜」,事實上這在古代是稱
    之為腥。所謂「葷腥」即這兩類的合稱。 葷菜
    維基百科,自由的百科全書
    (重定向自五辛) 佛家五葷

    在佛家另稱為五辛,五種辛味之菜。根據《楞嚴經》記載,佛家五葷為大
    蒜、小蒜、興渠、慈蔥、茖蔥;五葷生啖增恚,使人易怒;熟食發淫,令
    人多慾。[1]

    《本草備要》註解云:「慈蔥,冬蔥也;茖蔥,山蔥也;興渠,西域菜,云
    即中國之荽。」

    興渠另說為洋蔥。) 肉 蛋 奶?!











    念楞嚴經 *∞窮盡相關 消去無關 證據 時效 念阿彌陀佛往生西方極樂世界











    我想製造自己的行為反作用力
    不婚 不生子女 生生世世不當老師








    log 二0.3010 三0.47710.48 五0.6990 七0.8451 .85
    root 二1.414 1.41 三1.732 1.73五 2.236 2.24七 2.646
    =>十3.16 π∈Q' 一點八1.34

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  10. धरती माँ के लाल गये थे
    चांद पे मिट्टी लाने को
    धरती का बोझ बढ़ाने को ॥
    Waqayi..seedhe,saral tareeqese wagyanik baaten aap likh jate hain!Aalkh bahut hi achha hai!

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  11. इस लेख को तैयार करने में बहुत अध्ययन और परिश्रम कर डाला सर जी

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अन्धविश्वासों के खिलाफ आगे आयें