मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

कुत्ते जैसी हरकतें करने वाले इंसानों से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है ...

 लेखमाला मस्तिष्क की सत्ता -- जीवन में प्रोटीन और डी.एन.ए.  का अर्थ

पुरानी फिल्मों के दृश्यों को याद कीजिये ..कटघरे में एक स्त्री खड़ी है और वह चीख चीख कर कह रही है ..इस बच्चे का पिता यही है मी लॉर्ड” । दूसरे कटघरे में एक विलेन टाइप का पुरुष कुटिल मुस्कान के साथ खड़ा है । उसका वकील कह रहा है “ लेकिन इसका तुम्हारे पास क्या सबूत है ?” अब फिल्मों में ऐसा दृश्य नहीं होता इसलिये कि अब समय बदल गया है और विज्ञान ने साबित कर दिया है कि बच्चे के डी.एन.ए. से पिता का डी.एन.ए. मिलाकर यह जाना जा सकता है कि उसका वास्तविक पिता कौन है । अब तो टी.वी.धारावाहिक देखने वाले बच्चे भी इस बात को बखूबी जानते हैं कि बच्चे के पिता का पता लगाने के लिये दोनों के डी.एन.ए. का मिलान आवश्यक है ।
मनुष्य के व कुत्ते के तीन-चौथाई डी.एन.ए. एक जैसे हैं - इस तरह हम देखते हैं कि  जीवन के लिये दो रासायनिक व्यवस्थाएँ आवश्यक हैं प्रोटीन तथा डी.एन.ए ( डीआक्सीराइबो नयूक्लीइक एसिड )। हर व्यक्ति का डी.एन.ए. अलग होता है । आजकल के मानव शरीर के डी.एन.ए. अन्य प्राणियों के डी.एन.ए. से भी मिलते हैं जैसे चिम्पांजी और मनुष्य  के डी.एन.ए.  99.8 % मिलते हैं तथा कुत्ते व मनुष्य के 75% । (कुत्ते जैसी हरकतें करने वाले इंसानों से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है ) विभिन्न एमीनो एसिड्स के मेल से प्रोटीन बनता हैं तथा न्यूक्लीइक अम्ल न्यूक्लिओटाईड्स से बनता है । इनमें कार्बन नाइट्रोजन के यौगिक  शर्करा एवं फास्फेट से जुडे होते हैं । प्रोटीन जीवन की सुनियोजित संरचना का आधार है तथा  डी.एन.ए यह निर्धारित करता है कि शरीर में क्या बनाना है।
                    इस वैज्ञानिक सिद्धांत के प्रारम्भिक चरण में सन 1953 में मिलर नामक वैज्ञानिक ने एक प्रयोग किया था जिसमें उसने पृथ्वी के प्रांरभिक वायुमंडल में पाई जाने वाली जल वाष्प,मीथेन अमोनिया और हाइड्रोजन जैसी गैसों के मिश्रण में एक सप्ताह तक बिजली की चिनगारी प्रवाहित की जिसके फलस्वरूप एमिनो एसिड्स तैयार हुए । तत्पश्चात अनेक वैज्ञानिकों ने भी ऐसे ही प्रयोग किये जिससे राइबो शर्करा उनके फास्फेट तथा एडनिन जैसे अनेक जैव अणु तैयार हुए। ये अणु  न्यूक्लिओटाईड्स के मूल घटक हैं । इनके ही बहुलकीकरण  से  न्यूक्लीईक  एसिड बनता है ।
जल ही जीवन है क्यों कहा जाता है - हमारे सौर परिवार में केवल पृथ्वी पर ही जीवन सभंव हो सका इसका कारण यह है कि प्रोटीन की एंजाइमी किया के लिये मुक्तजल की उपस्थिति अनिवार्य थी । सूर्य से न अधिक दूर न अधिक पास होने की वजह से यहाँ वाष्पीकरण के  पश्चात भी काफी जल शेष रहता है । अब आप समझे वैज्ञानिक चन्द्रमा और मंगल  पर जीवन की सम्भावनाओं से पहले पानी की तलाश क्यों कर रहे हैं ।जब तक मनुष्य चन्द्रमा पर नहीं गया था वह चन्द्रमा पर दिखाई देने वाले धब्बों को पानी से भरी झीलें ही समझता था । पानी जीवन के लिये इतना ज़रूरी क्यों है यह अब आप जान गये होंगे।
उपसर्ग में आज प्रस्तुत है  कवि चन्द्रकांत देवताले की यह कविता " शब्दों की पवित्रता के बारे में "

                         शब्दों की पवित्रता के बारे में

रोटी सेंकती पत्नी से हँसकर कहा मैने 
अगला फुलका बिल्कुल चन्द्रमा की तरह बेदाग़ हो तो जानूँ 

उसने याद दिलाया बेदाग़ नहीं होता चन्द्रमा 

तो शब्दों की पवित्रता के बारे में सोचने लगा मै 
क्या शब्द रह सकते हैं प्रसन्न या उदास केवल अपने से 

वह बोली चकोटी पर पड़ी कच्ची रोटी को दिखाते 
यह है चन्द्रमा - जैसी दे दूँ इसे क्या बिना ही आँच दिखाये 

अवकाश में रहते हैं शब्द शब्दकोष में टंगे नंगे अस्थिपंजर 
शायद यही है पवित्रता शब्दों की 

अपने अनुभव से हम नष्ट करते हैं कौमार्य शब्दों का 
तब वे दहकते हैं और साबित होते हैं प्यार और आक्रमण करने लायक 

मैंने कहा सेंक दो रोटी तुम बढ़िया कड़क चुन्दड़ीवाली 
नहीं चाहिये मुझको चन्द्रमा जैसी ।

( कविता चन्द्रकांत देवताले के संग्रह " उसके सपने " से व चित्र गूगल से साभार )

23 टिप्‍पणियां:

  1. सही है
    कुत्ते जैसी हरकतें करने वाले इन्सानों से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है।

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  2. चिम्पांजी और मनुष्य के डी.एन.ए. 99.8 % मिलते हैं तथा कुत्ते व मनुष्य के 75%
    ओह तभी इंसानों में भी ---त्तों वाले गुण पाये जाते है.

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  3. आप कैसे कह सकते हैं कि कुत्ते जैसी हरकतें करने वाले इंसानों से इस का संबंध नहीं है? इस का संबंध तो हर जीवित प्राणी और वनस्पति से है।

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  4. बड़ा घालमेल सा है!

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  5. कुत्तो जेसे गुण अगर इस इंसान मै आ जाये तो यह हेवान इंसान बन जाये, वेसे आप ने बहुत सुंदर लिखा

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  6. @Hindiblog Jagat -" हिन्दी ब्लॉग जगत " में इस ब्लॉग व मेरे अन्य दो ब्लॉग "शरद कोकास " व "पुरातत्ववेत्ता "को स्थान देने के लिये मैं आपके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ । ब्लॉग "पुरातत्ववेत्ता " में मेरा नाम टाइपिंग की गलती से गलत हो गया है कृपया उसे सुधार लें । मुझे उम्मीद है आपका यह मंच हिन्दी ब्लॉगरों के बीच लोकप्रिय होगा । मेरी शुभकामनायें ।

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  7. " sahi sirshak ke saath sahi post "

    ----- eksacchai {AAWAZ }
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  8. भैया... साइंस विषय पर यह लेख बहुत पसंद आया....

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  9. सचमुच घालमेल सा ही लग रहा है...

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  10. जल ही जीवन है और सूर्य उसे जीवन्त करने वाला।

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  11. इतनी अच्छी जानकारी देने के लिये धन्यवाद!

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  12. जल जीवन है..बेशक!
    कविता में चंदा ,रोटी और शब्दों की पवित्रता का सम्बन्ध बहुत प्रभावी laga.

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  13. जी हाँ! और देवताले जी कविता के साथ वैज्ञानिक जुगलबंदी भी अच्छी लगी।

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  14. बहुत ही सरल भाषा में ज्ञानवर्धक जानकारी मिली...
    कविता बहुत ही प्रभावी है...

    अवकाश में रहते हैं शब्द शब्दकोष में टंगे नंगे अस्थिपंजर
    शायद यही है पवित्रता शब्दों की
    अपने अनुभव से हम नष्ट करते हैं कौमार्य शब्दों का
    तब वे दहकते हैं और साबित होते हैं प्यार और आक्रमण करने लायक

    खासकर ये पंक्तियाँ सोचने पर विवश करती हैं..

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  15. वाह!बहुत सुन्दर पोस्ट!

    कुंवर जी,

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  16. नही‌ चाहिये चन्द्रमा जैसी? कौन सा चांद? चांद का तो दाग ही‌ प्रसिद्ध है।

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  17. अच्छी जानकारी मिली और साथ ही आपने बिल्कुल सही बात का ज़िक्र किया है! उम्दा प्रस्तुती!

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  18. बहुत बढ़िया लिखा अंकल जी...
    ______________
    'पाखी की दुनिया' में 'वैशाखनंद सम्मान प्रतियोगिता में पाखी'

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