शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

मस्तिष्क की सत्ता - मनुष्य जाति का शैशव काल


 विकास की पूरी फिल्म का ट्रेलर है छोटा बच्चा
मनुष्य की प्रारम्भिक अवस्था में भाषा के विकास को हम शिशु के भाषा ज्ञान के विकास के साथ जोड़कर देख सकते हैं । अपनी आयु के पहले वर्ष में शिशु सही सही शब्दों का उच्चारण नहीं कर पाता । दूसरे तीसरे वर्ष में वह शब्दों के साथ छोटे सरल वाक्य बोलना सीखता है तथा पाँच छह वर्ष की आयु तक पूरी तरह वाक्य रचना सीख जाता है ।बच्चा भाषा के पहले से बने मानकों को ग्रहण करता हैं ।वह उसे उस रुप में सीखता है जिस रुप में उसे उसका परिवेश प्रदान करता है ।उसी तरह प्रांरभिक वर्ष में शिशु पत्थर या कोई वस्तु ठीक से पकड़ नहीं सकता धीरे धीरे वह सीखता है । प्राचीन मानव का यह शैशव काल हजारों वर्षों तक चला । धीरे धीरे सब कुछ उसके मस्तिष्क में दर्ज होता गया ।
          उस प्रकार हाथ, जिव्हा व गले के प्रयोग के साथ साथ मनुष्य के मस्तिष्क की क्षमता भी बढ़ती गई ।उसने आग की खोज की, आग जलाकर तापना ,माँस भूनना ,खाल व पत्तियों से तन ढंकना उसने सीख लिया । हजारों वर्षों तक वह उसी  अवस्था  में रहा । फिर उसने पत्थर के औजार व हथियार बनाये । हडडी की चीजें ,बरछी  भाले ,सूजे, सूजियाँ बनाई । गुफाओं में चित्र बनाये  । तत्पश्चात वह पशुपालन व खेती की अवस्था तक आया ।
          तात्पर्य यह कि विकास के हर चरण के साथ साथ , पर्यावरण के साथ खुद को ढालते हुए वह अपने मस्तिष्क का विकास करता गया । आज हम मानव जीवन में मस्तिष्क की अहम भूमिका को स्वीकार करते हैं ।आज हमारी प्रत्येक क्रिया प्रतिक्रिया पर मस्तिष्क का सीधा नियंत्रण है । जिस मानव को पत्थर पकड़ना तक नहीं आता था वह यान में सवार होकर अनंत ब्रम्हांड के रहस्य खोजने निकला है ।वह बिजली जिसे आकाश में देखकर वह डर जाया करता था , उसका प्रयोग वह अपनी सुख सुविधाओं के लिये कर रहा है ।मनुष्य जाति की संपूर्ण प्रगति , समस्त परिवर्तन इसी मस्तिष्क की देन है । हर परिवर्तन के पीछे हमारे हाथ हैं जिन्हे हमारा मस्तिष्क संचालित करता है । टेलीविजन ,कम्प्यूटर या एरोप्लेन का अविष्कार ध्यानावस्था में नहीं हुआ, लगातार चलने वाले  प्रयोगों और मस्तिष्क की क्षमता की वज़ह से यह अविष्कार सम्भव हुए । हमारी इंद्रियों से प्राप्त सभी अनुभूतियाँ इस मस्तिष्क में दर्ज हुई जिससे कला साहित्य संस्कृति का विकास हुआ। सारी अच्छाईयाँ और बुराइयाँ भी इसी मस्तिष्क की उपज हैं । यदि मस्तिष्क नहीं होता तो हम सचमुच जानवर के जानवर रहते ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. किसी नाज़ुक विषय पर रोचकता के साथ साथ मार्मिक लेखन करना तो कोई आपसे सीखे शरद जी !

    सचमुच .....जब भी पढता हूँ आपको...कुछ भीतर जाता हुआ प्रतीत होता है ..

    नमन आपको और आपके समर्पण को

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  2. बहुत बढ़िया और बिल्कुल सठिक लिखा है आपने! आखिर मनुष्य के तेज़ मस्तिष्क के कारण ही टेलीविजन ,कम्प्यूटर इत्यादि सारी नयी इलेक्ट्रोनिक चीज़ों का अविष्कार हुआ है और उसका लुत्फ़ हम सब उठा रहे हैं! उम्दा पोस्ट!

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  3. फिल्‍म बन सकने लायक ट्रेलर.

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  4. शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

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  5. ek parangat teacher kee tarah aapne mashtishk ko rochak tareke se define diya .. bahut achha laga.. bahut achhi jankari mili..
    Shikshak diwas kee haardik shubhkammayen

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  6. ...बहुत अच्छी जान्कारी दी है आपने...धन्यवाद!

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