फिर यह मस्तिष्क गुलाम कैसे हुआ ?
इस तरह मस्तिष्क की क्षमता का उपयोग कर मनुष्य द्वारा न केवल नये नये अविष्कार किये गये बल्कि इस तरह मनुष्यों ने आपसी संबंध भी कायम किये गए और पृथ्वी पर एक मनुष्य समाज की स्थापना हुई । सामाजिक विकास के साथ साथ मानव ने अपने मस्तिष्क की क्षमता पहचान ली थी और इसकी क्षमता का उपयोग वह न केवल अपने लिये सुख-सुविधायें जुटाने में कर रहा था अपितु समस्त प्राणियों के बीच अपना वर्चस्व कायम करने के लिये भी वह इसका उपयोग कर रहा था । यह तब भी होता था कि कुछ लोग जीवन को बेहतर बनाने के लिये मस्तिष्क का उपयोग करते थे और अन्य लोग उस जीवन का उपभोग करते थे । हालाँकि श्रम की महत्ता को नकारा नहीं गया लेकिन श्रम का बौद्धिक और शारीरिक रूप में विभाजन होने लगा था । जिन लोगों ने मस्तिष्क की क्षमता को पहचाना उन्हीके बीच ऐसे लोगों का उद्भव भी हुआ जिन्होने अन्य मनुष्यों पर शासन करने के लिये इसका उपयोग किया ।इस चालाक मनुष्य ने यह देखा कि समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जिन पर आसानी से शासन किया जा सकता है , तब उसने अपने बीच के मनुष्यों को ही अपना गुलाम बनाना शुरु किया । मनुष्यों में सत्ता की हवस , धन लोलुपता , जैसे विकारों ने जन्म लेना शुरु किया और घास के मैदानों और पशुओं के लिये किये जाने वाले युद्ध वर्चस्व की लड़ाई में तब्दील हो गए ।ऐसा दुनिया के हर समाज में हुआ ।
धीरे धीरे मनुष्यों में वर्ग विभाजन हुआ फिर काम के आधार पर जातियाँ बनीं ,हमारे यहाँ वर्ण व्यवस्था प्रारम्भ हुई सीधे-सादे मनुष्य को चालाक मनुष्य द्वारा यह बताया गया कि मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ है इसलिये कि वह परमपिता के मुख से पैदा हुआ है । सभी सभ्यताओं में जो अमीर थे उन्होने गरीबों को दास बनाया और उन्हे अमीरों की सेवा करने का काम सौंपा । मनुष्य को अपने अधीन करने के लिये आवश्यक था कि उसके मस्तिष्क को काबू में किया जाये । सभी तानाशाहों ने यही किया । मनुष्य के मस्तिष्क को धर्म , पाप पुण्य ,लोक-परलोक ,पुनर्जन्म,मोक्ष कर्मफल जैसी अवधारणाओं के आधार पर गुलाम बनाने की कोशिश की गई । उसे यथास्थिति में जीने का उपदेश दिया गया । इस मस्तिष्क में अज्ञात शक्तियों के प्रति भय को हवा दी गई तथा अंधविश्वास ठूंसे गये । मनुष्य के सोचने समझने व तर्क करने की शक्ति कमजोर कर दी गई । ऐसा नहीं कि मनुष्य ने इस शोषण के खिलाफ कभी सर नहीं उठाया । विश्व के अनेक भागों मे क्रांतियाँ हुईं ,रूस में ज़ारशाही के खिलाफ क्रांति हुई,ब्रिटेन में फ्यूडल सिस्टम के खिलाफ क्रांति हुई, अमेरिका में , फ्रांस में क्रांति हुई,ग्रीस में स्पार्ट्कस की क्रांति हुई आदि आदि। कहीं यह सफल हुई कहीं असफल हुई यह अलग बात है । लेकिन हमारे देश में ऐसा कभी कुछ नहीं हुआ । हमारे देश सहित विश्व के अनेक भू-भागों का मनुष्य आज पिछड़ा हुआ है या , दकियानुसी मान्यताओं से घिरा हुआ हैं तो उसके पीछे यही कारण है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व मनुष्य के मस्तिष्क को गुलाम कर दिया गया है । भाग्यवाद के नाम पर् उसे अकर्मण्य बना दिया गया है जाति व्यवस्था , वर्ण व्यवस्था व अर्थव्यवस्था के आधार पर उसे टुकडों टुकडों में बाँट दिया गया है । हम सभी जो अपने देश के सच्चे नागरिक हैं आज भी संगठित होकर अन्याय के खिलाफ नहीं लड़ते
यदि हमें अंधविश्वासों व अव्यवस्थाओं के खिलाफ अपनी लडाई लडनी है तो सबसे पहले मस्तिष्क की गुलामी से मुक्त होना पडेगा। अपनी चेतना , तर्क शक्ति व सोच को पुन: धारदार बनाना पडेगा । अब्राहम लिंकन ने कहा है कि “गुलाम को उसकी गुलामी का अहसास दिला दो तो वह बागी हो जाता है ।“ कहते हैं जब मनुष्य सोचना शुरू कर देता है तो वह तानाशाह के लिये खतरनाक हो जाता है । न सोचने वाला मनुष्य मृत व्यक्ति के समान होता है । कवि उदय प्रकाश की प्रसिद्ध कविता है
मरने के बाद आदमी कुछ नही बोलता
मरने के बाद आदमी कुछ नही सोचता
कुछ नहीं बोलने कुछ नहीं सोचने पर
आदमी मर जाता है
यदि यह बात हम समझ लें तो स्वतंत्र भारत का हर नागरिक मानसिक तौर पर स्वतंत्र हो जाये क्योंकि जिस तरह मानव विकास की हर प्रक्रिया का जन्म सबसे पहले मानव मस्तिष्क मे हुआ उसी तरह क्रांति या परिवर्तन भी सबसे पहले मानव मस्तिष्क में ही जन्म लेता है तत्पश्चात हम समाज में उसे प्रतिफलित होते देखते हैं ।जागृति के लिये हमें स्वयं शिक्षित होना होगा और लोगों को शिक्षित करना होगा । इसके लिये सबसे पहले ज़रूरी है मस्तिष्क की गुलामी से मुक्त होना ।
( छवि गूगल से साभार )
मरने के बाद आदमी कुछ नही बोलता
जवाब देंहटाएंमरने के बाद आदमी कुछ नही सोचता
कुछ नहीं बोलने कुछ नहीं सोचने पर
आदमी मर जाता है
kya simple logic hai....true.
देकार्ते का स्थापना वाक्य है - 'मैं सोचता हूं, इसलिए मैं हूं'.
जवाब देंहटाएंआस्था का क्षेत्र जहाँ समाप्त होता है ज्ञान का क्षेत्र वहाँ से प्रारम्भ होता है
जवाब देंहटाएंबिलकुल गलत
ज्ञान का क्षेत्र जहाँ से समाप्त होता है आस्था का क्षेत्र वाहन प्रारम्भ होता है !
कोरा अन्धविश्वाश गलत है, परन्तु आस्था की परिभाषा को तो आपने बिलकुल ही बदल कर रख दिया !
जो है, जिनका अनुभव इन्द्रियों, मन, और बुद्धि के द्वारा किया जा सकता है, उसे केवल स्वयं, अंशत: अथवा पूर्ण: जान लेना ज्ञान है !
ज्ञान को परिष्कृत कर विशुद्ध रूप में प्रस्तुत करना, जिसे की अन्य लोग भी स्वीकार कर सकें विज्ञानं है ! और
आस्था इन सबसे अलग और विपरीत है,
जहाँ मनुष्य का बस चलता है, वह ज्ञान और विज्ञानं का क्षेत्र है
परिस्थितियों के गुलाम मनुष्य का जहाँ वश नहीं चलता वहाँ आस्था स्वयं सुदृढ़ हो जाती है !
जो है उसे मानने को ज्ञान कहते हैं और जो है फिर भी दिखता नहीं है उसे मानने को आस्था कहते हैं !
http://search-satya.blogspot.com
and
http://meradeshmeradharm.blogspot.com
आप जब भी लिखते हैं डूब कर लिखते हैं
जवाब देंहटाएंउम्दा लिखते हैं और तर्कपूर्ण लिखते हैं
ख़ुशी होती है आपके आलेख बाँच कर ..............
कहते हैं जब मनुष्य सोचना शुरू कर देता है तो वह तानाशाह के लिये खतरनाक हो जाता है
वाह...........बहुत ख़ूब !
जब से ब्लॉगवाणी बंद हुई है .. आपके इस ब्लॉग की इस श्रृंखला को पढने का मौका ही नहीं मिल पाया .. आज अनुसरण कर लिया है .. शीघ्र ही दूसरी कडियों को भी देखती हूं .. वास्तव में प्रत्येक मनुष्य में अलग अलग तरह की क्षमता होती है .. सभी की क्षमता को मिलाजुलाकर ही अर्थव्यवस्था को गति दी जा सकती है .. सबों के सहयोग के बिना विकास का क्रम जारी नहीं रखा जा सकता .. पर इसके लिए सबको उचित पारिश्रमिक दिया जाना चाहिए .. लालच ही तो मनुष्य के लिए घातक होता आया है अबतक .. इसी के कारण इतनी क्रांति हुई .. गुलामी का मुख्य कारण अज्ञानता नहीं , गरीबी है !!
जवाब देंहटाएंबड़ा ही ज्ञानवर्धक लेख। आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा आप ने जात पात तो सारे विश्व मै है, इस मै कोई बुराई नही, बुराई है जब हम जागरुक नही होते, जब तक हम एक दुसरे को छोटा बडा समझते रहेगे, ओर जब हम दिमाग से गुलामी की जंजीर तोड देगे, ओर जागरुक होंगे कि यह काम् जो हम कर रहे है, ओर कोई छोटा काम नही, ओर हम अपनी मेहनत का खाते है, किसी से क्यो दबे?? काश यह बात भारत मै सब उन लोगो की समझ मै आ जाये जो अपने को दबा कुचला समझते है, या वो जो इन्हे दबाते है उन्हे समझ आ जाये तो देश ऎशिया का सब से अमीर देश बन जाये, आप ने बहुत ही सुंदर लेख लिखा, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयदि यह बात हम समझ लें तो स्वतंत्र भारत का हर नागरिक मानसिक तौर पर स्वतंत्र हो जाये क्योंकि जिस तरह मानव विकास की हर प्रक्रिया का जन्म सबसे पहले मानव मस्तिष्क मे हुआ उसी तरह क्रांति या परिवर्तन भी सबसे पहले मानव मस्तिष्क में ही जन्म लेता है तत्पश्चात हम समाज में उसे प्रतिफलित होते देखते हैं ।जागृति के लिये हमें स्वयं शिक्षित होना होगा और लोगों को शिक्षित करना होगा । इसके लिये सबसे पहले ज़रूरी है मस्तिष्क की गुलामी से मुक्त होना ।
जवाब देंहटाएं.....bahut hi satik ..aapke vicharon se 100% sahamat.
कुछ नहीं बोलने कुछ नहीं सोचने पर
जवाब देंहटाएंआदमी मर जाता है
बिलकुल सही कहा आपने जागरुकता बहुत जरूरी है। संगीता जी की तरह जब से ब्लागवाणी बन्द हुयी है टिप्पणी करना मुश्किल और अनियमित सा हो गया है। अभी आपका ब्लाग लिस्ट मे दालती हूँ। धन्यवाद।
बहुत गंभीर लिखते हो जी........
जवाब देंहटाएंआपका हर एक पोस्ट बहुत ही गहरे भाव लिए और विचारणीय होता है! हर एक पोस्ट से मुझे बहुत ही महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त होती है! सठिक लिखा है आपने! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! शानदार लेख!
जवाब देंहटाएंमस्तिष्क का बहुत सारगर्भित विश्लेषण
जवाब देंहटाएंbahut sundar lekh hai sarad kokas ji..abhivadan
जवाब देंहटाएंग्राम चौपाल में तकनीकी सुधार की वजह से आप नहीं पहुँच पा रहें है.असुविधा के खेद प्रकट करता हूँ .आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ
जवाब देंहटाएंमरने के बाद आदमी कुछ नही बोलता
जवाब देंहटाएंमरने के बाद आदमी कुछ नही सोचता,
बहुत ख़ूब , धन्यवाद!!
आज दिनांक 18 सितम्बर 2010 के दैनिक जनसत्ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में आपकी यह पोस्ट बदलाव के बीज शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई। स्कैनबिम्ब देखने के लिए जनसत्ता पर क्लिक कर सकते हैं। कोई कठिनाई आने पर मुझसे संपर्क कर लें।
जवाब देंहटाएं@ अविनाश जी - बहुत बहुत धन्यवाद अविनाश जी ।
जवाब देंहटाएंमनुष्यों में सत्ता की हवस , धन लोलुपता , जैसे विकारों ने जन्म लेना शुरु किया और घास के मैदानों और पशुओं के लिये किये जाने वाले युद्ध वर्चस्व की लड़ाई में तब्दील हो गए
जवाब देंहटाएंसारगर्भित विश्लेषण