यह मस्तिष्क कैसे काम करता है
हमारे शरीर में विभिन्न अंग हैं । हम दिन भर में कितनी बार उन अंगों का उपयोग करते हैं ,लेकिन क्या हम कभी सोचते हैं कि यह अंग किस तरह काम करते हैं ? यह कतई ज़रूरी नहीं है कि हाथ का उपयोग करने से पहले हम सोचे कि हाथ कैसे काम करता है ,या हमारे पाँव हमारे शरीर का भार किस तरह उठाते हैं । न दाँतों के बारे में सोचना ज़रूरी है कि वे अन्न किस तरह चबाते हैं और न आँखों के बारे में कि वे किस तरह देखती हैं । जब बाहरी अंगों के बारे में यह अनावश्यक है तो फिर भीतरी अंगों की कार्यप्रणाली के बारे में तो जानना तो बिलकुल भी आवश्यक नहीं है । लेकिन यदि हम केवल मस्तिष्क की कार्यप्रणाली के बारे मे ही जान लें तो समझ लीजिये कि आप आधे से अधिक तो जान ही गए क्योंकि बहुत सारे अंग तो इस मस्तिष्क से ही संचालित होते हैं । फिर मस्तिष्क की इस गुलामी से मुक्त होने के लिये भी हमें सबसे पहले जानना होगा कि मस्तिष्क कैसे काम करता है । विश्वास हो या अंधविश्वास यह हमारे मस्तिष्क में किस तरह घर करते हैं यह जानने के लिए भी हमें मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को जानना होगा । बेहतर होगा किसी बर्तन को खाली करने से पहले ,उसे भरा कैसे गया यह बात हम जान लें । लेकिन इस बात का आप बिलकुल टेंशन ना लें ,मैं आपको मेडिकल साईंस नहीं पढ़ाने जा रहा हूँ । मैं अत्यंत सरल भाषा में यह बताना चाहता हूँ कि हमारे दिन-प्रतिदिन के काम इस मस्तिष्क के द्वारा कैसे सम्पन्न किये जाते हैं । चलिए हम अपनी सुविधा के लिये सबसे पहले मस्तिष्क को कुछ भागों में विभाजित कर देते हैं ।
हमारे शरीर में विभिन्न अंग हैं । हम दिन भर में कितनी बार उन अंगों का उपयोग करते हैं ,लेकिन क्या हम कभी सोचते हैं कि यह अंग किस तरह काम करते हैं ? यह कतई ज़रूरी नहीं है कि हाथ का उपयोग करने से पहले हम सोचे कि हाथ कैसे काम करता है ,या हमारे पाँव हमारे शरीर का भार किस तरह उठाते हैं । न दाँतों के बारे में सोचना ज़रूरी है कि वे अन्न किस तरह चबाते हैं और न आँखों के बारे में कि वे किस तरह देखती हैं । जब बाहरी अंगों के बारे में यह अनावश्यक है तो फिर भीतरी अंगों की कार्यप्रणाली के बारे में तो जानना तो बिलकुल भी आवश्यक नहीं है । लेकिन यदि हम केवल मस्तिष्क की कार्यप्रणाली के बारे मे ही जान लें तो समझ लीजिये कि आप आधे से अधिक तो जान ही गए क्योंकि बहुत सारे अंग तो इस मस्तिष्क से ही संचालित होते हैं । फिर मस्तिष्क की इस गुलामी से मुक्त होने के लिये भी हमें सबसे पहले जानना होगा कि मस्तिष्क कैसे काम करता है । विश्वास हो या अंधविश्वास यह हमारे मस्तिष्क में किस तरह घर करते हैं यह जानने के लिए भी हमें मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को जानना होगा । बेहतर होगा किसी बर्तन को खाली करने से पहले ,उसे भरा कैसे गया यह बात हम जान लें । लेकिन इस बात का आप बिलकुल टेंशन ना लें ,मैं आपको मेडिकल साईंस नहीं पढ़ाने जा रहा हूँ । मैं अत्यंत सरल भाषा में यह बताना चाहता हूँ कि हमारे दिन-प्रतिदिन के काम इस मस्तिष्क के द्वारा कैसे सम्पन्न किये जाते हैं । चलिए हम अपनी सुविधा के लिये सबसे पहले मस्तिष्क को कुछ भागों में विभाजित कर देते हैं ।
मस्तिष्क के क्रियाकलाप: हम किस तरह देखते हैं यह मस्तिष्क का एक रफ डायग्राम है जिसे मैने सरलता पूर्वक समझने के लिये बनाया है । कृपया इस आकृति का चिकित्सकीय मापदंडों के अनुसार विश्लेषण न करें । इसे हम एक चौकोर बॉक्स की तरह भी देख सकते हैं और कई कमरों वाले एक दफ़्तर की तरह भी । सबसे पहले हम पहले भाग पर नज़र डालते हैं यह है हमारा दृष्टि केन्द्र ,यह वह केन्द्र है जिसकी वज़ह से हम देख पाते हैं ।
1 देखना : एक कक्षा में मैने सवाल किया हमें देखने के लिये क्या ज़रुरी है ? उत्तर मिला आँखें , किसी ने कहा दिमाग , किसीने और बढ़ कर कहा दृष्टि । एक छात्र ने और बढ़ा-चढ़ा कर कहा मन की आँखें । अंत में विज्ञान के एक छात्र ने सही उत्तर दिया देखने के लिये सबसे ज़्यादा ज़रूरी है प्रकाश । यह हम सभी जानते ही हैं कि प्रकाश के अभाव में आँखें होने के बावज़ूद भी हम नहीं देख पाते हैं । आपको यह भी पता होगा कि यह कैसे होता है अगर आप जानते होंगे टी.वी पर चित्र कैसे आता है । हमारे दृष्टि केन्द्र में छवि निर्माण होने की भी ऐसी ही प्रक्रिया है । हमारी आँख में भी कैमरे की तरह ही एक लेंस होता है । किसी भी वस्तु पर जब रोशनी डाली जाती है वह रोशनी वस्तु से परावर्तित होकर नेत्र पटल पर पड़ती है , वहाँ से जैव रासायनिक विद्युत संवेग द्वारा मस्तिष्क के इस केन्द्र में आती है और इस तरह हम उसे देख पाते हैं । अभी मैं केवल देखने की बात ही कर रहा हूँ उस वस्तु या दृश्य को हम किस तरह पहचान पाते हैं वह आगे की बात है । देखने और पहचानने के बाद ही समझने की बारी आती है । इसीलिये कहा जाता है कि देखा हुआ हमेशा सच नहीं होता ।उपसर्ग : उपसर्ग में मैं अब तक महत्वपूर्ण कवियों की कवितायें देता रहा हूँ । इस विषय पर काम करते हुए मस्तिष्क के क्रियाकलाप पर बारह कविताएँ मैंने लिखीं । उनमे से एक कविता मस्तिष्क के क्रियाकलाप - देखने पर यह कविता । एक नये विषय पर लिखी इस कविता श्रंखला पर आपकी राय जानना चाहूँगा - शरद कोकास
एक बच्चे सा विस्मय था जब मनुष्य की आँखों में
रात और दिन के साथ वह खेलता था आँख मिचौली
समय की प्रयोग शाला में सब कुछ अपने आप घट रहा था
देखने के लिये सिर्फ आँख का होना काफी था
और प्रकाश छिपा था अज्ञान के काले पर्दे में
पृथ्वी से अनेक प्रकाश वर्षों की दूरी के बावज़ूद
सूर्य लगातार भेज रहा था अपनी शुभाशंसाएँ
अब जबकि ऐसा घोषित किया जा रहा है
कि ज्ञान पर पड़े सारे पर्दे खींच दिये गये हैं
और चकाचौन्ध से भर गई है सारी दुनिया
समझ के पत्थर पर लिख दी गई हैं इबारतें
आँख प्रकाश और दिमाग़ के महत्व की
जैसे कि धुप्प अन्धेरे में हाथ को हाथ नहीं सूझता
अन्धेरे में बस दिखाई देता है अन्धेरा
कोई फर्क नहीं पड़ता आँखें खुली या बन्द होने से
यह मस्तिष्क ही है जो अन्धेरे से बाहर सोच पाता है
दृश्य और आँखों के बीच प्रकाश के रिश्तों में
अन्धेरे से बाहर झाँकता है विस्मय से भरा संसार
दृश्य के समुद्र में तैरता है वर्तमान
यह दृष्य में रोशनी की भूमिका है
जो अदृष्य है विचारों के दर्शन में
यहाँ रोशनी का आशय भौतिक होने में नहीं है
अन्धेरे में भटकते बेशुमार विचारों की भीड़ में
दृष्टि तलाश लेती है अक्सर कोई चमकता हुआ विचार
मानव मस्तिष्क के विशाल कार्यक्षेत्र में
जहाँ समाप्त होती है ऑप्टिक नर्व्स की भूमिका
वहाँ दृष्टि की भूमिका शुरू होती है
ज्ञान की उष्मा में छँटती जाती है असमंजस की धुन्ध
यहाँ मस्तिष्क प्रारम्भ करता है
दृश्य में दिखाई देते विचार का विश्लेषण
यही से शुरू होती है
मुक्तिबोध की कविता अन्धेरे में ।
-- शरद कोकास
(चित्र गूगल से साभार )
" gyanvardhak post "
जवाब देंहटाएं---- eksacchai {AAWAZ}
http://eksacchai.blogspot.com
ज्ञानवर्धक जानकारी..आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई शरद जी! धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ग्यानवर्द्धक प्रस्तुती। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंवाह भाई साहेब वाह !
जवाब देंहटाएंदिमाग खोल कर रख दिया आज तो आपने.........
बहुत कुछ जानने को मिला
धन्यवाद !
अब जबकि ऐसा घोषित किया जा रहा है
जवाब देंहटाएंकि ज्ञान पर पड़े सारे पर्दे खींच दिये गये हैं
और चकाचौन्ध से भर गई है सारी दुनिया
समझ के पत्थर पर लिख दी गई हैं इबारतें
आँख प्रकाश और दिमाग़ के महत्व की
जैसे कि धुप्प अन्धेरे में हाथ को हाथ नहीं सूझता
अन्धेरे में बस दिखाई देता है अन्धेरा
कोई फर्क नहीं पड़ता आँखें खुली या बन्द होने से
यह मस्तिष्क ही है जो अन्धेरे से बाहर सोच पाता है
bahut achchhi aur sahi baat kahi hai .
एक प्रश्न मेरा भी ...
जवाब देंहटाएंसपने में आँखे बंद होती हैं , प्रकाश भी नहीं ...फिर सपने कैसे दिखते हैं ...?
रोचक ज्ञानवर्धक जानकारी ...!!
सार्थक पोस्ट - साधुवाद.
जवाब देंहटाएं...बहुत ही बढिया जानकारी दी है आपने!....आप का यह विज्ञान संबधित ब्लोग अलग ही अहमियत लिए हुए है....बधाई एवं धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"@वाणी जी सपनों का सम्बन्ध हमारे अवचेतन में स्थित छवियों से होता है । आँख से उनका कोई सम्बन्ध नही है वैसे ही जैसे हम आँखें बन्द कर किसी भी दृश्य की कलपना कर सकते हैं लेकिन दिखाई वही देता है सपने मे जो हमने किसी न किसी रूप मे अनुभव किया हो अपनी इन्द्रियों के माध्यम से
जवाब देंहटाएंबहुत ज्ञानवर्धक जानकारी।
जवाब देंहटाएंAabhar.
जवाब देंहटाएंyeh sab badi achhi jankari hai....
जवाब देंहटाएंsharad uncle thanks
बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी धन्यवाद
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